धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी के नाम से मशहूर उज्जैन शहर में श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने-कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता है। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के किनारे स्थित सिद्धवट घाट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और पिंड दान कराने पंहुचते हैं। शहर के अति प्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। यहां लोग प्राचीन वटवृक्ष का पूजन-अर्चन कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। यहां पर श्राद्ध कराने आए लोगों की 500 साल पुरानी वंशावली तीर्थ पुरोहितों के पास है।
सिद्धवट पर पितरों के निमित्त कर्मकांड और तर्पण का यह कार्य 16 दिनों तक चलता रहेगा। पितृ मोक्ष हेतु श्रद्धालु इन 16 दिनों की विभिन्न तिथियों में ब्राह्मण को भोजन दान, गाय दान, कौओं को भोजन कराते हैं। मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने से पितरों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
पंडित राजेश त्रिवेदी ने बताया कि उज्जैन अवंतिका नगरी बाबा महाकाल के नाम से जानी जाती है। सतयुग से बाबा महाकाल के रूप में शिव का यहां पर आगमन हुआ और सतयुग से ही तर्पण श्राद्ध के लिए यह जगह जानी जाती है। जब उनकी सेना भूत-प्रेत पिशाच ने उनसे अपने मुक्ति का स्थल मांगा था तो शिव ने उन्हें सिद्धवट क्षेत्र पहुंचाया था। तब से सिद्धवट को भूत-प्रेत पिशाच को मुक्ति की प्रेत शिला के रूप में जाना जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, मां सीता और लक्ष्मण के साथ अपने मृत पिता दशरथ का यहीं तर्पण व श्राद्ध किया था। जिस प्रकार से गया में तर्पण का फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि पूरे देश भर से श्रद्धालु उज्जैन में पूर्वजों की मुक्ति के लिए आते हैं।
अब ऑनलाइन तर्पण भी शुरू
कोरोना गाइडलाइन के चलते कई श्रद्धालु उज्जैन नहीं आ पा रहे हैं। उनके लिए पंडितों ने ऑनलाइन पूजा-पाठ और तर्पण की व्यवस्था की है। सिंगापुर से जुड़े शर्मा परिवार और असम से जुड़े सक्सेना परिवार ने सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़कर घर बैठे तर्पण किया। उज्जैन में पंडित ने ऑनलाइन मंत्र पढ़े और दूसरी ओर घर पर बैठे श्रद्धालु पूर्वजों के निमित्त पूजन पाठ करते रहे। फेसबुक के माध्यम से कई परिवारों ने ऑनलाइन तर्पण बुक कराया है। श्रद्धालु दान-दक्षिणा भी ऑनलाइन पंडित के खाते में जमा करा देते हैं।
500 साल पुराना रिकॉर्ड देखने के लिए के केवल पोथी का सहारा
पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध की विधि में कुल के नाम के साथ पूर्वजों के नाम का उल्लेख का विशेष महत्व है। आम लोगों के कई पीढ़ी और पूर्वजों के नाम याद रखना आसान नहीं होता है। इसमें तीर्थ पुरोहितों के पास उपलब्ध पोथी सहायक होती है। उज्जैन के अधिकांश तीर्थ पुरोहितों के पास पूर्व के अनेक परिवार के पूर्वजों के नामों की पोथी बनी हुई है। यहां 400 से 500 साल पुराने पूर्वजों के रिकॉर्ड भी उपलब्ध हैं।
पंडित दिलीप डब्बेवाला तीर्थ गुरु ने बताया कि 150 साल पुराना रिकॉर्ड सभी पंडितों के पास है। कोई भी कंप्यूटर नहीं चलाता है। इस युग में भी कुछ ही समय में बही खाते नुमा पुस्तक में देखकर कई पीढ़ियों का नाम, उम्र, उनकी मृत्यु दिनांक, वंशावली आदि सामने रख देते हैं।
कई सौ वर्ष पुराना रिकॉर्ड केवल चंद मिनटों में देख देते हैं
पंडित दिलीप गुरु के अनुसार, इतना पुराना रिकॉर्ड रखने के लिए किसी भी कंप्यूटर का सहारा नहीं लिया जाता है। सिर्फ पोथी में इंडेक्स, समाज का नाम, गांव या शहर का नाम या गौत्र बताने से ही ये बता देते हैं कि उनकी पीढ़ी में यहां कौन-कौन और कब आए थे। किसका तर्पण किया गया था ये सब चुटकियों में बता देते हैं। यही नहीं वर्षों पुराने इस बही खाते को कोर्ट भी मान्य करता है। भाई-भाई के जायदाद के विवाद में कोर्ट ने भी इसे मान्यता दी है और कई बार फैसले यहीं के बही खातों के आधार पर हुए हैं।
300 पुजारी करवाते हैं पूजन
उज्जैन शहर में 12 पंडे प्रमुख हैं जो श्राद्ध पक्ष में पूजन करवाते हैं। जिसमें तर्पण, विष्णु पूजा, देव पूजा, ऋषि मनुष्य और पितृ तर्पण आदि की पूजन होता है। इसके अलावा 300 से अधिक पंडित इन दिनों में रामघाट, सिद्धवट घाट, गया कोठा, सहित अन्य जगहों पर पूजन करवाते हैं। यहां पूजन की विधि में सम्पत्ति के लिए दूध, संतति संतान के लिए और सद्गति के लिए श्राद्ध तर्पण किया जाता है।
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