कहते हैं कि इंसान अपने सारे पारिवारिक रिश्ते साथ में लेकर आता है, लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे वह दुनिया में आकर ही बनाता है। फ्रेंडशिप-डे के मौके पर आज हम आपको बता रहे हैं, उज्जैन के दो ऐसे दोस्तों की कहानी, जिन्होंने नौकरी एक जगह की, घर एक जगह खरीदा, यहां तक कि दूसरी मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ी भी एक ही बनवाई। ये दोनों मोबाइल-गाड़ी भी एक ही इस्तेमाल करते हैं। शादी-पार्टी में कपड़े भी एक जैसे पहनकर जाते हैं। दोस्ती के 56 साल होने के बाद भी दोनों के बीच इतना सम्मान है कि कभी एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर बात नहीं की।
दोस्ती की ये कहानी है ऋषि नगर में रहने वाले कैलाश सिंह राजपूत (81 साल) और राधेश्याम शर्मा (79 साल) की। जिसकी शुरुआत साल 1966 में रतलाम में सरकारी नौकरी के दौरान हुई थी। तब दोनों की पोस्टिंग रजिस्टर कोऑपरेटिव सोसाइटी में सब ऑडिटर के पद हुई थी।
एक ही साइकिल पर बैठकर जाते थे ऑफिस
1978 में रतलाम से जब उज्जैन ट्रांसफर हुआ तो दोनों ने अब्दालपुरा इलाके में किराए पर घर लिया। इस घर में दोनों के परिवार रहते थे। तब कैलाश राजपूत को साइकिल चलाना नहीं आती थी, राधेश्याम रोजाना साइकिल चलाकर नौकरी पर ले जाते थे। ये याराना इतना गहरा होता चला गया कि अब सुबह की चाय से लेकर शाम का टहलना तक साथ होता है। किसी एक को तकलीफ होती है, तो दूसरा डॉक्टर के पास लेकर जाता है।
घर का नाम 'मित्र सदन', दोनों के घर का रास्ता भी एक
कैलाश सिंह राजपूत बताते हैं- अब्दालपुरा से अब हमने ऋषि नगर में मकान लिए हैं। मुझे गांव में रहना था, लेकिन दोस्त नहीं माना। आज हमारे घर एक-दूसरे के ठीक आगे पीछे हैं। हमने दूसरी मंजिल पर जाने के लिए दोनों घरों के बीच एक ही सीढ़ी बनवाई है। घर का नाम मित्र सदन रखा है। दोनों घरों के बीच दीवार नहीं बनवाई। दोनों के बीच के घर का दरवाजा सुबह खुलता है तो रात को ही बंद होता है।
दोस्ती ऐसी कि मोबाइल और गाड़ी भी एक ही
राधेश्याम शर्मा ने बताया- हम हमेशा सुख-दुख में एक-दूसरे के काम आते-आते रिटायर्ड हो गए। हम एक जैसे एंड्रॉइड मोबाइल यूज करते हैं। हमारी गाड़ी भी एक जैसी ही है। बाजार का कोई भी काम दोनों साथ जाकर पूरा करते हैं। रिटायर्ड होने के बाद अब दोनों साथ घूमने जाते हैं।
शादियों में कपड़े भी एक जैसे, गुरु भी एक को बनाया
दोनों दोस्तों की दोस्ती ऐसी है कि परिवार के बच्चे बड़े होने के बाद भी आज बड़े ताऊजी और चाचा का ही संबोधन कर बुलाते हैं। परिवार के कार्यक्रम के दौरान दोनों एक जैसे कपडे़ बनवाकर पहनते हैं। एक-दूसरे के परिवार में सम्मान भी वो ही मिलता है, जो परिवार के किसी बड़े को मिलना चाहिए। आध्यात्म से जुड़ने के बाद दोनों ने गुरु भी एक ही बनाया है।
ये भी पढ़िए:-
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.