मेरी जीवन यात्रा पर मुनि श्री ने दिए प्रवचन चाह की आग और उसकी दाह से ही हर व्यक्ति दुखी है। सबके पास 99 है लेकिन 100 पूरे करने के चक्कर में अपना संपूर्ण जीवन निकाल देते हैं। उपरोक्त उद्गार मुनि सुप्रभ सागर महाराज ने श्री शांतिनाथ जिनालय स्टेशन जैन मंदिर में मेरी जीवन यात्रा पर विशेष प्रवचन करते हुए प्रातः कालीन प्रवचन सभा में व्यक्त किए। मुनि श्री ने कहा कि जिस सामग्री को त्रियंच नहीं खाता उस तंबाकू और गुटके की चाह को व्यक्ति नहीं छोड़ पाता।
उन्होंने कहा कि व्यसन की चाह और दाह इतनी मजबूत होती है कि करोड़पति भी रोड पर पड़ी हुई बीड़ी को चुपचाप सुलगा लेता है और जिसको तंबाकू की तलब लगती है वह किसी से भी चूना लगवा लेता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति छोटा सा त्याग क्या करता है उस त्याग को कह कह कर सुनाता है चाय तो छोड़ दी लेकिन चाय की चाह को छोड़ नहीं पाते। मुनि श्री ने कहा कि आज कल व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया है कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति और इन्द्रिय विषय की चाह के लिए अपनी जन्मदात्री मां और पिता को भी छोड़ देता है।
ग्यारहवें दिन सुबह ही आते हो चाट के ठेले पर नजर
मुनि श्री ने कहा कि पर्वराज पर्युषण आते हैं दस दिन का एकासन उपवास करते हैं और ग्यारहवें दिन सुबह सुबह ही चाट के ठेले पर नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे उपवास और एकासन करने से आपको कोई फायदा होने वाला नहीं है। यह तो गज स्नान के बराबर है। जैसे हाथी नदी तालाब में उतरता है और बाहर निकलकर अपनी सूंड से उतनी ही धूल अपने शरीर पर डाल लेता है। मुनि श्री ने कहा कि विपरीत श्रद्धान और भोगों के प्रति आशक्ति पर चर्चा करते हुए कहा कि आज कल चौका तो रह नहीं गए किचन में शोले की चप्पल चलने लगी हैं।
यहां तक कि धोती दुपट्टा पहन कर चप्पल पहन कर भगवान के अभिषेक और मुनिराजों को आहार देने चले जाते हैं और वहां पर मन शुद्धि वचन शुद्धि और काय शुद्धि बोलकर आप उन निर्ग्रन्थ मुनिराजों को आहार दे देते हैं। इससे आपको पुण्य बंध होने वाला नहीं है बल्कि आप पाप का आश्रव कर उन तपोधन के तप में बाधक बन रहे हो।
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