पत्थर की नाव खुद तो डूबती ही है साथ में जो उस पर बैठता है उसको भी ले डूबती है। जिसके अंदर राग द्वैष की गांठ है वह कभी सच्चा गुरु नहीं हो सकता। मिथ्यात्व को छोड़कर सद्आचरण करना चाहिए। उक्त बात आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सुप्रभ सागर महाराज ने श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में प्रातः कालीन प्रवचन सभा में कही।
उन्होंने सच्चे गुरु की परिभाषा बताते हुए कहा कि जिसने राग द्वैष और कामादिक विषयों से अपने आपको दूर कर लिया वही सच्चा गुरु है। मुनि श्री ने कहाकि मात्र जैन लिखने से या जैन कुल में जन्म लेने से आप जैन नहीं बन सकते।
जैन कुल में जन्म लिया है तो मिथ्यात्व को छोड़कर सद आचरण करना चाहिए। मुनि श्री ने कहाकि इस बृह्मांड में यदि किसी के पास ज्ञान है तो वह निर्गन्थ गुरु के पास ही मिलेगा। जो राग द्वैष से दूर रहकर कभी किसी को श्राप या वरदान नहीं देते।
मुनि श्री का चल रहा है विहारसकल
दिगंबर जैन समाज के प्रवक्ता अविनाश जैन ने बताया कि संत शिरोमणि आचार्य विद्या सागर महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि विमल सागर महाराज ,मुनि अनन्त सागर महाराज, मुनि धर्म सागर महाराज, मुनि भावसागर महाराज ससंघ का मंगल विहार भोपाल की ओर चल रहा है। मंगल आहारचर्या हिरनई में हुई। मुनिसंघ का विहार बाइपास से रात्रि विश्राम होकर 30 जून की आहार चर्या सांची में होगी।
कोई शिक्षा गुरु है तो कोई दीक्षा
गुरुमुनि श्री ने कहाकि भले ही वीतरागी भगवान हाथ पर हाथ धरे बैठे हों लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके पास शक्तियां नहीं होती। उनके पास जो शक्तियां हैं वह बृह्मांड में किसी के पास नहीं होती। यह बात अलग है कि वह उन शक्तियों का अकारण उपयोग नहीं करते। संसार में अनेक गुरु हो सकते हैं।
कोई शिक्षा गुरु है तो कोई दीक्षा गुरु हो सकता है, कोई प्रतिष्ठाचार्य है तो कोई आचार्य हो सकता है लेकिन वह सद्गुरु नहीं हो सकता। मात्र दिगंबर भेष पूज्यनीय नहीं है। उस भेष के साथ अंतरंग और वहिरंग परिग्रह को छोड़ना आवश्यक है।
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