कोरोना महामारी के कारण डेढ़ साल बंद ऐतिहासिक स्मारक जलियांवाला बाग खुलने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 अगस्त को वर्चुअली इसका उद्धाटन करेंगे। 13 अप्रैल 1919 के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने एक नरसंहार को अंजाम दिया था। इस हत्याकांड को 102 साल हो गए हैं, वहीं ब्रिटिश सरकार ने नरसंहार के 100 साल बाद गहरा अफसोस व्यक्त किया था। इस क्रूर घटना के जख्म इतने गहरे हैं कि जलियांवाला बाग की प्राचीर में आज भी मौजूद हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग आते हैं। इसलिए आज जलियांवाला बाग एक टूरिस्ट स्पॉट भी है। पंजाब सरकार की तरफ से 20 करोड़ रुपए की लागत से इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं। हालांकि रेनोवेशन का काम पिछले साल पूरा हो जाना था, लेकिन कोरोना के कारण इसमें देरी हो गई। अब तकरीबन डेढ़ साल बाद इसके दरवाजे फिर से खुलने जा रहे हैं, वो भी बदलावों के साथ एक नए रूप में। आइए तस्वीरों में देखते हैं जलियांवाला बाग का नया रूप...
शाम 5 बजे बंद हो जाने वाला जलियांवाला बाग अब देर शाम तक खुला रहेगा। यहां लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाएगा। एक बार पहले भी अमिताभ बच्चन की आवाज में एक लाइट एंड शो शुरू किया गया था, लेकिन वह सफल न हो सका। अब एक डिजिटल डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई है, जिसे जलियांवाल बाग में बनी गैलरी में बैठकर 80 के करीब लोग देख सकेंगे।
एंट्रेंस- जहां से अंग्रेजों की सेना घुसी थी
अब जलियांवाला बाग में आते ही सबसे पहले सैलानियों का ध्यान एंट्रेंस पर जाने वाला है। यह वही तंग रास्ता है, जहां से जनरल डायर ने सेना को अंदर जाने के लिए कहा था। यहां अब खूबसूरत हंसते-खेलते लोग दिखाए गए हैं। यह दरवाजा उन शहीदों को समर्पित है, जो 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन हंसते हुए अपने परिवार के साथ जलियांवाला बाग में पहुंचे थे।
शहीदों को समर्पित तीन गैलरियां
जलियांवाला बाग के नरसंहार और शहीदों को समर्पित तीन गैलरियों का निर्माण किया गया है। इस गैलरी में शहीदों से संबंधित दस्तावेज रखे गए हैं। जिनसे आज की युवा पीढ़ी शहीदों को दी जाने वाली यातनाओं के बारे में जानेगी। शहीदों की वीरता के किस्से भी देखेंगे और पढ़ेंगे। एक गैलरी बुलेट मार्क लगी गैलरी के साथ बनाई गई है। जहां इस नरसंहार के बाद ब्रिटिश राज में क्या-क्या हुआ और डायर को अंग्रेजों ने कैसे बचाया आदि ब्रिटिश राज के क्रूर कामों के बारे में बताया गया है।
कुएं का नया रूप
जिस समय वो जघन्य हत्याकांड अंजाम दिया गया था, उस समय यह कुआं खुला ही होता था। इंदिरा गांधी के समय इस पार्क को पहली बार रेनोवेट किया गया था, तब इस कुएं पर छत बनाई गई थी। अब इसकी रूपरेखा में और भी बदलाव किया गया है। कुएं के चारों तरफ गैलरी बनाई गई है और सुरक्षा के लिए कांच लगाया गया है, जिससे कुएं को गहराई तक देखा जा सकता है।
सुरक्षित की गई है दीवार
कुएं से थोड़ा आगे जाएंगे तो आपको एक दीवार दिखाई देगी। यह वो दीवार है, जिस पर गोलियों के निशान आज भी हैं, ताकि आज की युवा पीढ़ी उस समय मारे गए लोगों के दुख दर्द को समझ सके। इसे संरक्षित करने के लिए दीवार के आगे रेलिंग लगा दी गई है, ताकि लोग इसे देख सकें, लेकिन छू न सकें।
शहीदी लाट को भी बनाया गया आकर्षक
पार्क के बीचों-बीच बनी शहीदी लाट में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके आसपास इतना सुंदर पार्क बना दिया गया है कि घंटों तक कोई भी यहां बैठकर इसकी खूबसूरती को निहार सकता है। लाट के आगे लगे फव्वारों की जगह पानी भरा गया है और उसमें पानी पर तैरने वाले फूल पत्ते लगाए गए हैं। पार्क के चारों तरफ भी सुंदर फूल लगाए गए हैं और छोटे-छोटे बगीचे तैयार किए गए हैं। सैलानी आएं और शहीदों को नमन करने के साथ-साथ सुंदर वातावरण का भी आनंद ले।
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