पंजाब के चुनावी माहौल में दबाव की राजनीति जोरों पर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कृषि कानूनों पर गठबंधन से किनारा करने वाले शिरोमणि अकाली दल (SAD) को पहले छोटे भाई की तरह साथ आने का न्योता दिया। जब बात नहीं बनी तो सबक सिखाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल का सहारा लिया। कुछ हासिल नहीं हुआ तो अब सेंधमारी का सियासी खेल शुरू हो गया।
चाहे केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) हो या फिर दूसरा कोई दल, सब अपना हित साधने के लिए दबाव की नीति का सहारा ले रहा है। भाजपा जिस तरह से खेल खेल रही है, उससे साफ है कि पार्टी पंजाब में विधानसभा चुनाव में एंट्री की फिराक में है। पार्टी की नीति इशारा कर रही है कि इस बार वह अपनी छाप के मुताबिक हिंदू चेहरों पर ही नहीं करेगी बल्कि पंजाब में उसी के स्वभाव के अनुरूप सिख चेहरों को आगे करेगी।
भाजपा का आर्थिक रीढ़ तोड़ने का दांव
चाणक्य नीति कहती है कि यदि किसी को तबाह करना है तो उसकी आर्थिक रीढ़ तोड़ दो। विश्लेषक केंद्रीय जांच एजेंसियों के पिछले दिनों लुधियाना के वरिष्ठ अकाली नेता मनप्रीत सिंह अयाली और फास्ट-वे केबल के मालिक गुरदीप सिंह के ठिकानों पर छापे को भाजपा के इसी दांव के साथ जोड़ रहे हैं।
दोनों अकाली नेताओं पर पहले प्रवर्तन निदेशालय और फिर इनकम टैक्स विभाग ने दबिश दी। हालांकि दोनों के ठिकानों पर एजेंसियों को क्या मिला इसका कोई खुलासा नहीं हुआ है। वहीं दोनों नेता दावा कर रहे हैं कि 3-4 दिन लगातार पूछताछ और रिकॉर्ड को खंगालने-तलाशने के बाद भी एजेंसियां खाली हाथ लौटी हैं।
पहले ही लिखी जा चुकी थी पटकथा
अकाली दल को गठबंधन टूटने के बाद सबक सिखाने की पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी। इसे मूर्त रूप देने के लिए भाजपा ने कृषि बिल रद्द करने से पहले ही कमर कसनी शुरू कर दी। पंजाब भाजपा प्रभारी दुष्यंत कुमार ने बयान दिया कि वह पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन इस बार अकाली दल को छोटे भाई के रूप में आना होगा।
बयान के बाद अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बाद ने भी कह दिया कि वह भाजपा से कोई समझौता नहीं करेंगे। सुखबीर बादल के बयान को महज एक-दो दिन बाद ही केंद्रीय जांच एजेंसियों ने अकाली दल के नेताओं के ठिकानों पर दबिश दी। ये नेता ऐसे हैं जो अकाली दल को फंडिंग का जुगाड़ करते हैं।
भाजपा ने अब दवाब की नीति इस्तेमाल करते हुए बड़े अकाली नेताओं को तोड़ना शुरू कर दिया है। भले ही इसकी शुरुआत भाजपा ने दिल्ली से की है, लेकिन इसका सीधा असर पंजाब पर पड़ेगा। आने वाले समय में भाजपा पंजाब में भी कई नए सियासी खुलासे कर सकती है।
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