कैप्टन अमरिंदर सिंह के अगले सियासी दांव से कांग्रेस हाईकमान चिंतित है। इस दांव को फेल करने का जिम्मा अब हरीश रावत को सौंपा गया है। रावत लगातार अमरिंदर सिंह पर हमला कर रहे हैं। वे वही बातें उठा रहे हैं, जो साढ़े 4 साल मुख्यमंत्री रहते हुए कैप्टन की कमजोरी बने रहे। इनमें बेअदबी, उससे जुड़े गोलीकांड और ड्रग्स माफिया पर कार्रवाई न करने का मुद्दा शामिल है। कैप्टन और रावत के बीच लगातार जुबानी जंग चल रही है। कांग्रेस हाईकमान अभी तक कैप्टन के अपमानित करने के आरोप पर चुप है। वहीं रावत लगातार कैप्टन को BJP से जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं।
हरीश रावत को ही जिम्मा सौंपने की वजहें
सवाल उठता है कि हरीश रावत ही क्यों? इसकी भी वजहें हैं। रावत पंजाब कांग्रेस के इंचार्ज रहे हैं। वे पंजाब की राजनीति को समझते हैं। पंजाब कांग्रेस के इंचार्ज हैं। कांग्रेस के हमले में तथ्यात्मक कमी न रहे, इसलिए वे हाईकमान के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं। यह बात इसलिए अहम है, क्योंकि हाल ही में रणदीप सुरजेवाला गलती कर बैठे थे। रावत ने कहा था कि अमरिंदर के खिलाफ 43 MLA थे तो सुरजेवाला यह गिनती 78 बता गए, जिससे अमरिंदर सिंह को पलटवार का मौका मिला। उन्होंने यहां तक कह दिया कि कांग्रेस के भीतर तो कॉमेडी चल रही है।
कुछ खास मुद्दे ही क्यों उठा रहे रावत?
रावत वही मुद्दे उठा रहे, जिन पर कैप्टन के खिलाफ विधायक नाराजगी का दावा करते रहे। श्री गुरू ग्रंथ साहिब की बेअदबी और ड्रग्स माफिया से जुड़े बड़े चेहरों पर कार्रवाई के मुद्दे पर 2017 में कांग्रेस सत्ता में आई थी। अमरिंदर का तर्क है कि यह मामले कोर्ट में हैं, वे सिर्फ पैरवी कर सकते हैं। महंगी बिजली वाला पावर परचेज एग्रीमेंट (PPR) पंजाब में बड़ा मुद्दा है। रावत अमरिंदर के खिलाफ माहौल बनाने के लिए बादल परिवार से साठगांठ और भाजपा के दबाव में होने का मुद्दा भी उठा रहे हैं। अमरिंदर को लेकर बड़ी बात विधायकों से न मिलने की थी, इसे भी रावत बार-बार उठाने में लगे हैं।
रावत की सियासी साख और समझ भी दांव पर
रावत सियासी दिग्गज हैं। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रहे रावत कांग्रेस हाईकमान के करीबी हैं। रावत ही वह शख्स हैं, जिन्होंने अमरिंदर से नाराज होकर घर बैठे सिद्धू को पंजाब की राजनीति में सक्रिय किया। पंजाब प्रधान बनाने के लिए लॉबिंग की। अमरिंदर की CM कुर्सी से विदाई के लिए हाईकमान को राजी किया। अब अगर अगली बार पार्टी सत्ता में न आई तो यह कांग्रेस के लिए सेल्फगोल जैसी स्थिति है।
अमरिंदर के दांव से चिंतित क्यों हाईकमान?
कैप्टन अमरिंदर सिंह 52 साल से सियासत में हैं। करीब 42 साल कांग्रेस में गुजारे। 3 बार कांग्रेस के प्रधान और दो बार साढ़े 9 साल CM रहे। उनका बड़ा सियासी आधार है। अमरिंदर कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में न जाने की बात कह चुके हैं। साफ है उनका अलग सियासी संगठन आएगा, जिसकी नींव कांग्रेस में टूट-फूट होगी। ऐसे में अमरिंदर के दांव खेलते ही संगठन में बगावत शुरू होगी। अमरिंदर भले अपने दम पर सत्ता न पा सकें, लेकिन कांग्रेस को रोकने का पूरा जोर लगाएंगे। पंजाब ऐसा प्रदेश था, जहां अब तक कांग्रेस वापसी करती नजर आ रही थी। 2024 में लोकसभा चुनाव हैं, हर राज्य की जीत राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए संजीवनी है, जिसे अमरिंदर अब कतई नहीं होने देना चाहते।
पार्टी जो भी कहे, सियासी आंकड़े अमरिंदर के पक्ष में
कांग्रेस हाईकमान ने भले ही विधायकों की नाराजगी के बहाने अमरिंदर की विदाई कर दी, लेकिन उनका चुनावी रिकॉर्ड बेहतर है। 2017 में माहौल था कि आम आदमी पार्टी सत्ता में आ रही है। अचानक अमरिंदर सिंह अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में ले आए। इसके बाद उपचुनाव में 4 में से 3 सीटें जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव में 13 में से 8 सीटें पार्टी ने जीती। उस वक्त तो पूरे देश में भाजपा की लहर चल रही थी। इसी साल फरवरी में 7 नगर निगमों के चुनाव हुए। कांग्रेस ने 350 में से 281 यानी 80.28% सीटें जीती। 109 नगर कौंसिल के चुनाव हुए। इनमें 109 पार्षदों में से 97 कांग्रेसी जीते। 2,165 में से 1,486 यानी 68% वार्ड कांग्रेस जीती।
पंजाब कांग्रेस की मुसीबत, संगठन बना नहीं, प्रधान बात-बात पर रूठ रहे
अमरिंदर की विदाई के बावजूद पंजाब में कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हो रहीं। सिद्धू को प्रधान बने करीब ढाई महीने हो चुके। अब तक जनवरी 2020 में भंग संगठन दोबारा नहीं बना। इसकी जगह सिद्धू बात-बात पर रूठ रहे हैं। अब भी वह इस्तीफा देकर घर बैठे हुए हैं। जमीनी स्तर पर संगठन तैयार न किया तो फिर मायूस बैठे कार्यकर्ता और नेता अमरिंदर के साथ जा सकते हैं। सिद्धू जिस तरीके से सियासत करना चाहते हैं, उसमें अमरिंदर के करीबियों के साथ उनके हलके के विरोधियों को भी कांग्रेस में जगह न मिलनी तय है। ऐसे में टिकट न मिलने से नाराज नेता भी अमरिंदर का दामन पकड़ेंगे।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.