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गुरुघर में रखी थी हस्तलिखित कुरान शरीफ:इमाम नासिर मस्जिद के प्रबंधकों को सौंपी गई, बंटवारे के वक्त मुस्लिम परिवार छोड़ गया था

जालंधर8 महीने पहले
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गुरुद्वारा बुट्टरां में इमाम नासिर मस्जिद के मौलानाओं को पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ सौंपते हुए। - Dainik Bhaskar
गुरुद्वारा बुट्टरां में इमाम नासिर मस्जिद के मौलानाओं को पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ सौंपते हुए।

भारत देश में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है, जहां धर्म, जात-पात से ऊपर उठकर लोगों की आपस में भाईचारक सांझ दिखाई जाती है। इसकी जीती-जागती मिसाल जिला जालंधर एवं उपमंडल भोगपुर के तहत आने वाले गांव बुट्टरां में देखने को मिली। गांव के गुरुद्वारे में मुस्लिमों के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ का भी उतना ही सम्मान था, जितना सिखों के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब का होता है।

गुरघर में पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ के लिए बनाया गया सुखासन
गुरघर में पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ के लिए बनाया गया सुखासन

गरुद्वारा सिंह सभा बुट्टरां में बंटवारे के वक्त से सहेज कर रखा हस्तलिखित पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ जालंधर की सबसे बड़ी मस्जिद इमाम नासिर में पहुंच गया है। गुरुघर में पहले पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ को पढ़ने के लिए लोग आते थे, लेकिन अब कोई नहीं आता था, इसलिए उन्होंने पवित्र ग्रंथ मुस्लिम समुदाय को सौंप दिया।

गुरुद्वारा सिंह सभा बुट्टरां की देखरेख करने वाले ग्रंथी गुरमेज सिंह ने बताया कि उनके बुजुर्ग बताते हैं कि गांव में एक मुस्लिम परिवार रहता था। आजादी से पूर्व जब विभाजन हुआ, तब भारत और पाकिस्तान अलग-अलग देश बन गए और परिवार यहां से पाकिस्तान चला गया। जाने से पहले पवित्र ग्रंथ को गुरुघर में छोड़ गया।

यह 1938 का हस्तलिखित पवित्र ग्रंथ है। गुरुघर में पवित्र कुरान शरीफ को पूरी मर्यादा के साथ सहेज कर रखा गया था। जिस तरह से गुरुघर में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के लिए सुखासन लगाया जाता है। वैसे ही सुखासन पवित्र कुरान शरीफ के लिए भी लगाया गया था। समय-समय पर पवित्र ग्रंथ के वस्त्र बदले जाते थे।

गुरुघर में सिरोपे डालकर कर मुस्लिम मौलानाओं को सम्मानित करते सिंह
गुरुघर में सिरोपे डालकर कर मुस्लिम मौलानाओं को सम्मानित करते सिंह

ग्रंथी ने कहा कि पहले कुछ कुरान शरीफ पढ़ने वाले गुरुघर में आते थे, लेकिन अब अगली पीढ़ी में से कोई नहीं आता। अगली पीढ़ी को उर्दू और फारसी की जानकारी नहीं है। गुरुघर के प्रबंधकों ने पवित्र ग्रंथ का पाठ न होने पर पहले सोचा कि गांव में जो मुस्लिम गुज्जर परिवार रहते हैं, उन्हें ग्रंथ सौंप दिया जाए।

लेकिन बाद में इसकी पवित्रता को देखते हुए फैसला लिया गया कि इसे किसी बड़ी मस्जिद को सौंपा जाए, जहां पर इसका निरंतर पाठ भी हो और इसकी पवित्रता भी बनी रही। इसके बाद गुरुद्वारा के प्रबंधकों ने जालंधर की सबसे बड़ी मस्जिद इमाम नासिर में जाकर वहां के प्रबंधकों से संपर्क साधा।

उन्हें पवित्र ग्रंथ के बारे में जानकारी दी। इसके बाद मस्जिद इमाम नासिर से मौलाना अदनान जामई, मौलाना शमशाद, मोहम्मद कलीम सिद्दकी इत्यादि बुट्टरां स्थित गुरुघर पहुंचे। गुरुघर में सभी मुस्लिम समुदाय के मौलानाओं का सिरोपा डालकर कर सम्मान किया गया। इसके बाद पूरी मर्यादा-विधि विधान से पवित्र कुरान शरीफ इमाम नासिर मस्जिद के मौलानाओं को सौंपा गया।

मौलाना अदनान जामई ने गुरुघर मे ही पवित्र ग्रंथ की आयतें पढ़कर सुनाई और कहा कि यह पवित्र ग्रंथ हस्तलिखित है और 1938 में लिखा गया है। इसे पाकिस्तान की मलिकदीन पब्लिशिंग कंपनी ने तैयार किया था। मुस्लिम समुदाय ने पवित्र ग्रंथ को सहेज कर रखने और समुदाय को सौंपने के लिए आभार भी जताया।