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तीनों कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन लंबा होता जा रहा है। सर्दियों की शुरुआत में शुरू हुए आंदोलन ने मौसम के अनुसार कई तरह की दिक्कतें झेली हैं। किसानों ने 4 डिग्री की ठंड और सर्द हवाओं में आग के सहारे रातें काटीं तो कभी सर्दियों की बारिश झेली। अब गर्मी आ चुकी हैं। अप्रैल में ही असर आंदोलन में दिखाई देने लगा है।
दिन में 35 डिग्री तापमान वाली गर्मी परेशान करती है तो धूल भरी आंधी दिक्कतें बढ़ाती हैं। सफाई न होने से रात की नींद मच्छर उड़ा देते हैं। केएमपी के पास से दिल्ली की तरफ आंदोलन की ओर बढ़ते ही जून वाली गर्मी का अहसास होने लगता है। मोबाइल में तापमान देखा तो हैरान रह गए कि 35 डिग्री तापमान और हवा बिल्कुल नहीं थी, लेकिन सामने ही किसान भट्ठी में लंगर तैयार करते दिखे।
लुधियाना से आए किसान प्रभजोत सिंह ने कहा कि गर्मी और सर्दी तो आती-जाती रहेंगी, लेकिन हमारा लक्ष्य तय है और वो हुए बिना हम यहां से नहीं जाएंगे। थोड़ा आगे बढ़े तो आंदोलन पर फसल कटाई का असर दिखाई दिया। दोनों तरफ सड़कों पर जहां दिनभर भीड़ रहती थी, वो दोपहर में खाली थी, लेकिन ट्राॅलियों और झोपड़यों में किसान डटे हुए थे।
दूर से देखकर लगा कि यह सर्दियों वाला आंदोलन बिल्कुल नहीं है, जिसमें ट्रैक्टर व ट्राॅली बड़ी संख्या में सड़क पर खड़े थे। अब यहां ट्रैक्टर नाममात्र के बचे थे, ट्राॅलियां थीं, वह भी बहुत कम संख्या में। ट्रैक्टरों की जगह अलग-अलग तरह की झोपड़ियों ने ले ली है। दूर तक देखने में लग रहा है कि जैसे पुराने समय के किसी बड़े गांव के अंदर आ गए हैं।
एक झोपडी के बाहर ताश खेल रहे बुजुर्गों के पास जाकर बैठे और इस बदलाव की वजह पता कि तो उन्होंने कहा कि खेत में फसल कटाई का समय है और उसमें किसान व ट्रैक्टर दोनों की जरूरत है। इसलिए काफी ट्रैक्टर खेतों में चले गए हैं और किसान भी गांव अनुसार लगी ड्यूटी के हिसाब से सप्ताह अनुसार आ रहे हैं।
साथ बैठे एक ताऊ फूलसिंह ने कहा कि बेटा 15 दिन की लामणी सै, एक बै दाणे काट कै घरां गेर दें, फेर देखिए पहलयां तै भी ज्यादा किसान बैठे पावैंगे। हम थोड़ा आगे बढ़े तो देखा कि लगातार झोपड़ियों का निर्माण जारी है। कोई पंखे लगवा रहा है तो कोई कूलर-एसी की व्यवस्था करने में लगा था। वहीं कुछ महिलाएं तो हाथ के पंखे से ही हवा कर रही थीं।
हिसार से आई महिला रामरति से पूछा तो उसने बताया कि वाटर कूलर तो दूर-दूर लगे हैं और उन पर बार-बार पानी पीने नहीं जा सके इसलिए मटकों में पानी लाकर भर लेते हैं। वहीं बैठे बुजुर्ग रामकिशन बोले- पानी का तो हम कैसे भी करके काम चला लेते हैं, लेकिन मच्छरों का क्या करें। रात को कई बार बिजली भी कट जाती है।
मंच के अंदर दो-तीन बड़े कूलर और काफी पंखे लग गए हैं। किसान नेताओं की सोच और आम किसानों की सोच में कुछ अंतर नजर आया। मंच से लगातार किसान एक ही बात कह रहे थे कि हमारे नेताओं को अब पंचायतें बंद कर देनी चाहिएं और बॉर्डर पर आंदोलन को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए।
वहीं मंच के सामने बैठे किसानों से बात करने पर सामने आया कि गर्मी और मच्छरों से बड़ा दर्द उनके लिए सरकार से वार्ता का न होना है। किसानों ने कहा कि जब तक वार्ता हो रही थी तो उम्मीद बंधी हुई थी, लेकिन अब पता नहीं चल रहा कि अंत कब, कैसे और क्या होगा। बीच सड़क में किसानों ने पार्क बना दिया है।
इसके अंदर बैठने के लिए सीमेंट के बैंच, ऊपर घास और पराली से बनी छाया के लिए छत, चारों तरफ घास और हरियाली थी। वहीं ऊपर की तरफ कई लेयर में छोटे-छोटे फव्वारे लगे थे, जिनसे बोछारें गिर रही थीं। यहां जाकर लगा कि गर्मी अचानक से कहीं गायब हो गई हो। कुछ किसान जेनरेटर, इनवर्टर व बैटरी की व्यवस्था करने में जुटे थे। रात को जानबूझकर बिजली काट देते हैं, इसलिए व्यवस्था कर रहे हैं।
गर्मी की बीमारियां बढ़ीं
बॉर्डर पर बने अस्थाई अस्पताल और कम ही बचे मेडिकल कैंपों के अंदर डाॅक्टरों से बात की तो सामने आया कि फरवरी और आधे मार्च तक बीमारियां कम थी, क्योंकि मौसम सामान्य था, लेकिन जिस तरह सर्दियों में सर्दी की बीमारियां आ रही थीं, वैसे ही अब गर्मी की बीमारियां शरू हो गई हैं। सबसे ज्यादा मच्छरों के काटने से परेशानी वाले लोग आ रहे हैं।
बुखार के मरीज बढ़ गए हैं। खतरा डेंगू और मलेरिया का ज्यादा है। पिछले 10 दिन में ही 30 से ज्यादा ऐसे किसान हैं, जिनके टेस्ट करवाए तो उनके प्लेटलेट्स काफी कम मिले। गर्मियों को देखते हुए अस्थाई अस्पताल में अब टेस्टिंग की भी सुविधा शुरू करने पर विचार हो रहा है।
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