मेयर जगदीश राज राजा के हाउस के 5 साल के कार्यकाल में अधिकतर समय स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से आने वाले विकास की उम्मीद में ही गुजर गया। इन वर्षों में निगम ने 2340.68 करोड़ के बजट बनाए, जिनमें से 1115.96 करोड़ रुपए आमदनी हुई। इनमें से 641.87 करोड़ रुपए वेतन-पेंशन आदि में चले गए। जबकि इन पांचों बजटों में 1224.04 करोड़ रुपए के विकास कार्यों के प्रस्ताव रखे गए, लेकिन इनके मुताबिक रेगुलर ग्रांट नहीं मिली।
इन वर्षों में सिर्फ लोकसभा चुनाव से पहले 45 करोड़ व विधानसभा चुनाव से पहले 135 करोड़ की पंजाब निर्माण प्रोग्राम की ग्रांट ही निगम को मिली। इस तरह वार्डों में कुल 180 करोड़ रुपए के ही विकास कार्य हो सके। प्रदेश सरकार का फोकस स्मार्ट सिटी पर था। इसमें 1446 करोड़ के डीपीआर पर काम चल रहा है, पंजाब सरकार ने अपने हिस्से के 723 करोड़ रुपए केंद्र सरकार के बराबर एलोकेट किए हैं। स्मार्ट सिटी के सारे के काम देरी से चल रहे हैं। इनमें सरफेस वाटर प्रोजेक्ट, स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स, कमांड एंड कंट्रोल सेंटर और बायोमाइनिंग प्रोजेक्ट शामल हैं।
अगर 5 साल में योजनाओं पर खर्च का एनालिसिस करें तो पता चलता है कि पूरे कार्यकाल निगम की अपनी ग्रांट के इंतजार में गुजर गया व स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नतीजे आए नहीं, जिससे शहर के हालात खराब हैं। मेयर जगदीश राज राजा के हाउस को विरासत में 2,52,27,991 रुपए खाते में बतौर एफडीआर मिले थे। इसके साथ ही 27,83,19,338.25 रुपए का हुडको का कर्ज भी था। स्मार्ट सिटी में शहर के लिए 1446 करोड़ के 22 प्रोजेक्ट मिले, लेकिन कोई भी पूरा नहीं हो पाया।
विकास योजनाओं के लिए उपलब्ध फंड की हकीकत
2018 : हाउस के पहले वित्तीय साल में राज्य सरकार से कोई ग्रांट नहीं मिली।
2019 : 45 करोड़ रुपए ग्रांट मिली। लोकसभा चुनाव का साल था।
2020 : 22.90 करोड़। सारे पैसे ठेकेदारों के पुराने पेमेंट चुकाने में गए।
2021 : आमदनी 10.89 करोड़ रुपए। कोरोना के कारण विकास योजनाओं पर बजट खर्च ही नहीं हो पाया। इसके साथ ही पंजाब निर्माण प्रोग्राम लांच हुअा। इसमें 135 करोड़ रुपए मिले।
2022 : नई सरकार का गठन हुआ। ग्रांट का इंतजार रहा।
बजट का आधा हिस्सा इस्टेब्लिशमेंट पर खर्च
निगम हर साल जो बजट तैयार करता है, उसका आधा हिस्सा सैलरी व पक्के खर्चों में जाता है। निगम के बजटों का एनालिसिस करें तो पता चलता है कि प्रॉपर्टी टैक्स इकलौती खुद की कमाई की मद है, जोकि 35 करोड़ रुपए तक है। विकास कार्यों की जो योजनाएं बनाई गई हैं, वे 300 करोड़ तक हैं। जालंधर में स्मार्ट सिटी का भी प्रोजेक्ट चल रहा है, लेकिन इसका हिसाब निगम बजट डॉक्यूमेंट में शामिल नहीं रखा गया। हर बजट में निगम ने जायदादें बेचकर कमाई की आस रखी, लेकिन बिक्री नहीं की गई।
जो टैक्स कलेक्शन हुई या फिर सरकार से ग्रांट मिली इसके खर्च का हिसाब अलग-अलग मद के हिसाब से नहीं दिया गया। अकाउंटिंग की भाषा में इसे डबल एंट्री सिस्टम कहते हैं। निगम का बजट केवल हुई कमाई व खर्च का हिसाब देता है। आमदनी में ही ग्रांट के पैसे जोड़े जाते हैं। -सीए शशि भूषण, चेयरमैन सीए इंस्टीट्यूट जालंधर ब्रांच
स्मार्ट सिटी पर उम्मीद थी, आज हालत खराब
सिटी के पास बड़ा मौका था लेकिन विकास योजनाएं लटक गईं। क्यों लटकीं, इसका एक कारण तालमेल की कमी है। बर्ल्टन पार्क में 77 करोड़ का स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स प्रोजेक्ट बना। जिसने इसे डिजाइन किया, उसने फुटबाल ग्राउंड जिस जगह पर प्रस्तावित की है, वहां पर स्मार्ट सिटी से ही जुड़े सरफेस वाटर प्रोजेक्ट का पानी का टैंक बनाने की मंजूरी साथ में दे दी। जब स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स की लाॅन्चिंग हुई तो पानी के टैंक के लिए फुटबाल मैदान को छोटा करना पड़ा।
इसकी खातिर स्पोर्ट्स प्रोजेक्ट की ड्राइंग बदलनी पड़ी व प्रोजेक्ट लेट हो गया। निगम को अतिरिक्त से फंड मिला नहीं और सारी उम्मीद स्मार्ट सिटी पर लगा रखी थी। आज सड़कें टूटी हैं, लाइटें-सफाई की हालत खराब है। अब दो काम करने होंगे। पहला- सरकार युवा अफसरों की तैनाती करे व उन्हें काम करने का लंबा टेन्योर दे। दूसरा- सियासी इच्छाशक्ति चाहिए। -इकबाल सिंह संधू, रिटायर्ड पीसीएस अफसर
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