कोरोना के बदले स्ट्रेन के कारण मरीजों की रिकवरी लेट हो गई है। अस्पताल में दाखिल संक्रमिताें की छाती का एक्सरे मरीज को स्वस्थ बता रहा है लेकिन घटती सेचुरेशन के साथ चेस्ट की सीटी स्कैन कुछ और कहानी बयां कर रही है। डॉक्टरों का कहना है कि बदले स्ट्रेन के कारण इन्फेक्शन भी तेजी से फैल रहा है। इसके चलते 5-10 दिन के भीतर मरीज के लंग्स (फेफड़े) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। निमोनिया के कारण लंग्स फाइब्रोस भी कर रहे हैं। यानी फेफड़ों के काम करने की क्षमता कम हो रही है। संक्रमित मरीजों में से 80% की मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बन रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण दिमाग और शरीर की खून की नाड़ियों में क्लाॅटिंग है।
ऐसा कोरोना की पहली पीक सितंबर और नवंबर में भी हो रहा था लेकिन मौजूदा संक्रमितों में क्लाॅटिंग दिमाग और नाड़ियों में ज्यादा हो रही है। हाई फ्लो ऑक्सीजन पर भी मरीज आने के बाद फेफड़ों तक सही तरह से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही जिस कारण शरीर का ऑक्सीजन स्तर कम होने के कारण मरीज की मौत हो रही है। कई मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव और एक्सरे में धाग नहीं हैं लेकिन इसके बावजूद इलाज कोरोना के मरीजों के साथ हो रहा है। इनकी चेस्ट की सीटी स्कैन से पता चलता है कि 60% तक इंफेक्शन हो चुका है। सीटी स्कोर 20 होता है। मरीज को अस्पताल में भर्ती करना लाजिमी हो जाता है।
हालत बिगड़ने का बड़ा कारण- आरटीपीसीआर टेस्ट पॉजिटिव आने पर मरीज खुद ही सीटी स्कैन करवा रहे क्योंकि वे सीटी स्कोर और सीटी वैल्यू नहीं समझ पा रहे
कोरोना वायरस के उस मरीज का टेस्ट पॉजिटिव आता है जिसकी टेस्ट में सीटी वेल्यू यानी (साइकिल थ्रेश होल्ड) 35 से कम होता है। अगर यह वेल्यु 35 से ज्यादा आती है तो व्यक्ति की रिपोर्ट निगेटिव आएगी। वहीं, चेस्ट सीटी स्कैन में मरीज के फेफड़ों के हालात को सीटी स्काेर में बताया जाता है। अगर वह 35 से कम आता है तो मरीज की हालत खराब होती जाती है और मरीज को अलग-अलग सीटी स्काेर के दौरान अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है। लेकिन हकीकत में हो यह रहा है कि जिस मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो उसी समय अपना सीटी चेस्ट करवाता है और खुद ही सीटी स्काेर से खुद को सही मानता है। इस पर डॉ. विनीत का कहना है कि हर संक्रमित मरीज को चेस्ट सीटी स्कैन करवाने की जरूरत नहीं है। जितनी देर तक सेचुरेशन 94 से कम नहीं हो जाती है। लोग समय से पहले लक्षण आने से पहले चेस्ट की सीटी करवाते हैं तो रिपोर्ट ठीक आती है और जब हालत खराब होती है तो मरीज पुरानी रिपोर्ट के सहारे ही रह जाता है।
जानिए- क्या है सीटी वेल्यू
सीटी वैल्यू स्थिति
35 या कम पॉजिटिव
23 से 34 स्थिति खतरे से बाहर
22 से कम भर्ती होने की जरूरत
15 से कम ऑक्सीजन बेड की जरूरत
10 से कम आईसीयू बेड की जरूरत
लक्षण खत्म होने में 10 से 12 दिन फेफड़े साफ होने में लगेंगे 3 महीने
कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज कर रहे डॉ. परमजीत सिंह का कहना है कि अगर कोई मरीज अस्पताल में गंभीर लक्षणों के साथ आता है जिसे भूख और प्यास नहीं लग रही। साथ ही शरीर में कमजाेरी आने पर अगर कोई अस्पताल में दाखिल होता है तो उसे रिकवर करने में 10 से 12 दिन लगते हैं। साथ ही अगर मरीज के लंग्स में 60 फीसदी तक इंफेक्शन आती है और धब्बे दिखाई देते हैं तो उसे ठीक करने में तीन महीने से भी अधिक समय लगता है। चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ. विनीत महाजन का कहना है कि कोरोना वायरस के इलाज के दौरान मरीज की अचानक मौत होने का कारण कार्डियक अरेस्ट है। इसका सबसे बड़ा कारण मरीज के शरीर में ज्यादा जल्दी क्लाॅटिंग होना है जो ज्यादा दिमाग और खून की नाड़ियों में हो रही है क्योंकि संक्रमण होने पर खून गाढ़ा हो रहा है और क्लाॅटिंग हो रही है। इसके चलते मरीज के दिमाग और दिल को ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाने के कारण मरीज की कार्डियक अरेस्ट के कारण मौत हो रही है। हालांकि मरीज हाई फ्लो ऑक्सीजन पर होता है। इसके बावजूद भी वह रिकवर नहीं कर पाता क्योंकि क्लाॅटिंग के कारण नाड़ियों और फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच नहीं पाती।
कोरोना अपडेट
एनआईटी करतारपुर से 24 लाेगाें समेत 449 संक्रमित, 4 की माैत
शनिवार को कोरोना के 449 मामले सामने आए। सबसे अधिक मरीज 24 एनआईटी करतारपुर से मिले। मास्टर तारा सिंह नगर, मिलिट्री अस्पताल, बॉम्बे नगर, कोर्ट कांप्लेक्स, न्यू बशीरपुरा, गुरु नानकपुरा, मॉडल टाउन, अर्बन एस्टेट फेज-1, जेपी नगर, मास्टर मोता सिंह नगर, शाहकोट, फिल्लौर के चौधरियां मोहल्ला, निजात्म नगर के अलावा अन्य इलाकों से संक्रमित मिले हैं। साथ ही जिले में कोरोना के कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 36280 पर पहुंच गई है। जबकि इलाज के दौरान 55, 65, 71 और 66 साल के मरीज की मौत हुई है। इसके साथ ही जिले में कोरोना के इलाज के दौरान 1010 की मौत हो गई है।
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