पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी:मक्की को आर्मीवर्म कीड़े से बचाने के लिए किए जा सकते हैं प्रबंध: डॉ. मक्कड़

रोपड़3 वर्ष पहले
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  • कहा- किसानों को जागरुक रहने की जरूरत

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के अंतर्गत स्थापित कृषि विज्ञान केंद्र रोपड़ से डॉ. गुरप्रीत सिंह मक्कड़ डिप्टी डायरैक्टर(ट्रेनिंग) ने जानकारी देते हुए बताया कि फाल आर्मीवर्म कीड़े का साउणी ऋतु तथा चारे वाली मक्की पर हमला आने का डर है। इस कीड़े की सुंडी की पहचान पिछे की ओर चार वर्ग बनाते बिंदूओं और सिर पर सफेद रंग के अंग्रेजी के वाई(Y) अक्षर के उल्टे निशान से होती है। इस कीड़े की सही पहचान के लिए खेतों का लगातार सर्वेक्षण और समय पर रोकथाम जरूरी है।

फाल आरमीवर्म की सुंडीयां हरे से हल्के भूरे या सुरमई रंग की होती है। उन्होंने कहा कि एक मादा पतंगा अपने जीवन काल में 1500-2000 अंडे दे सकती है। अंडे झुंडों के रूप में(100-150 अंडे प्रति झुंड) पत्ते ही उपरी तथा निचली पर्त पर होते हैं। हमले की शुरुआत में छोटी सुंडीयां पत्ते को खुर्च के खाती हैं। जिस कारण पत्तों पर लंबे आकार के कागजी निशान बनते हैं। बड़ी सुंडीयां पत्तों पर बिना किसी ढंग से, गोल या अंडाकार मोरीयं बनाती हैं।

10 से 40 दिन की फसल है इसकी मनपसंद खुराक
डॉ. मक्कड़ ने जानकारी देते हुए कहा कि इस कीड़ी की विशेष तौर पर 10 से 40 दिनों तक की फसल मनपसंद खुराक है। इस समय किसानों को इस कीड़े के हमले प्रति पूरी तरह जागरुक रहने की जरूरत है। क्योंकि फसल की यह अवस्था कीड़े के हमले के लिए अनुकूल है। चारे वाली मक्की की बिजाई आधी अगस्त तक जरूरी पूरी कर लें।

गत वर्ष बीजी फसल पर इस कीड़े का हमला अधिक था। उन्होंने कहा कि साथ लगते खेतों में मक्की की बिजाई थोड़ी थोड़ी दूरी पर ना करें। ताकि कीड़े के लिए फसल की अधिक अनुकूल हालात लगातार मुहैया ना हो सके। चारे वाली मक्की के लिए अधिक संघनी बिजाई ना करें और सिफारिश की बीज की मात्रा(30 किलो प्रति ऐकड़) कतारों में बिजाई के लिए प्रयोग करें।