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(सुनील)
ट्रेन बंद होने का सबसे ज्यादा असर वेंडर और कुलियों की जिंदगी पर पड़ रहा है। इन लोगों का हाल यह है कि इनको परिवार पालने के लिए अब कामकाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। बात वेंडरों की करें तो इनमें 80 फीसदी तो ऐसे हैं, जिनकी उम्र 60 से ज्यादा है और वह कोई और काम करने की हालत में ही नहीं। उधार मांग, गहने बेच या दिहाड़ी पर मजदूरी कर यह सब किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं। ऐसा ही आलम कुलियों का भी है। सालों से रेल के यात्रियों का बोझ उठाने वालों को अब रेल बोझ समझने लगी है तो यह लोग भी मजदूरी कर, सब्जी बेच या फिर फैक्ट्रियों में काम कर अपने परिवारों का गुजारा कर रहे हैं। सालों से यात्रियों के लिए दिन-रात एक कर मेहनत करने वाले वेंडरों-कुलियों की न तो सरकार ने सुध ली और न ही रेलवे ने।
वेंडरों को डर, लाइसेंस रिन्यू फीस न मांग ले रेलवे
वेंडरों का कहना है कि उनको तो डर सता रहा है कि लाइसेंस रिन्यू करने के लिए रेलवे कहीं फीस ही न मांग ले। वेंडरों का मानना है कि ट्रेनें कब शुरू होंगी, इस बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता, जबकि उनको स्टॉल लगाने के लिए रेल नई शर्तें भी लगा सकता है। सालों से रेल में ठेकेदारी पर काम कर रहे इन वेंडरों की सुध किसी अफसर ने नहीं ली। एक बार फिर से सामान्य रूप में रेल शुरू होने से एक उम्मीद जागी थी, लेकिन किसान आंदोलन ने फिर से परेशान कर दिया है। बता दें कि स्टेशन पर खाने पीने का सामान बेचने वाला हर वेंडर रेलवे से मान्यता प्राप्त होता है। इसका लाइसेंस हर साल रिन्यू होता है, जिसके लिए इनको मोटी फीस जमा करनी होती है।
कुछ कुली कर रहे मजदूरी, कई लौटे गांव: रेलवे स्टेशन पर 54 कुली थे। लॉकडाउन और अनलॉक के दौरान इनमें से कुछ कुली तो अपने मूल गांव (यूपी, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल) लौट गए हैं। जो कुली अपने परिवारों सहित लुधियाना में रहते हैं, वह मजदूरी कर अपना और परिवार का पालन कर रहे हैं। इन कुलियों ने बताया कि कोरोना के बाद जो 14 ट्रेन चलाई गई थी, उन ट्रेनों से रोजगार मिलना शुरू हो गया था। अब किसानों के रेल रोको आंदोलन ने एक बार फिर से बेरोजगार कर दिया है। अब हम लोग मजदूरी कर, ठेला चला, सब्जी बेच या फैक्ट्रियों में काम कर अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी का प्रबंध कर रहे हैं।
कोरोना के बाद बाजार में काम मिला तो ट्रेनें शुरू हो गईं। काम छोड़कर दोबारा स्टेशन पर बतौर कुली काम करने लगे। अब फिर से ट्रेनें बंद हो गई हैं तो बाजार में दोबारा काम करने लगे हैं। कई को काम मिला, जबकि कई अब भी बेरोजगार घूम रहे हैं। -सुरेश, कुली
7 माह से हाथ पर हाथ धरे रेल की तरफ देख रहे हैं। हर बार रेल चलाने की नई तारीख की घोषणा होते ही उम्मीद जागती है, जबकि फिर उस पर पानी फिर जाता है। अब 4 नवंबर को उम्मीद है कि ट्रेनें चलाई जाएंगी। हमें तो यहां तक डर है कि हमारे लाइसेंस रिन्यू करने को रेलवे बकाया राशि या उसका कुछ फीसदी न मांग ले। -राम स्वरूप, वेंडर
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