अमरनाथ यात्रा के लंगरों में सेहत का ख्याल:अब सिर्फ पौष्टिक खाना मिलेगा; चिप्स-समोसा, कोल्ड ड्रिंक समेत फ्राइड और जंक फूड बैन
लुधियाना9 महीने पहलेलेखक: सुनील कुमार
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2 साल बाद शुरू होने जा रही अमरनाथ यात्रा के दौरान लंगरों में फ्राइड फूड, जंक फूड, स्वीट डिश, चिप्स, समोसे जैसी चीजें नहीं मिलेंगी। ऐसी दर्जनों चीजें बैन कर दी गई हैं। श्राइन बोर्ड ने सभी लंगर कमेटियों को पत्र लिखा है कि यात्रियों को हरी सब्जियां, सलाद, मक्के की रोटी, सादी दाल, लो फैट दूध और दही जैसी पौष्टिक चीजें ही दी जाएं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय पर लिए गए इस फैसले में बताया गया है कि हेल्दी फूड यात्रियों की सेहत ठीक रखेगा। उनका एनर्जी लेवल ठीक रहेगा, जिससे यात्रा में परेशानी नहीं होगी।
इस बीच, श्री अमरनाथ गुफा के रास्ते में लगातार मौसम बदल रहा है, दो दिन से बर्फबारी जारी है। ऐसे में यात्रा शुरू करने में देरी भी हो सकती है। श्राइन बोर्ड ने 7 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद जताई है। 2019 में कुल 3.5 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे।
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इन पर पाबंदी मांसाहार, शराब, तंबाकू और गुटखा पर पाबंदी रहती ही है, लेकिन इस बार पुलाव, फ्राइड राइस, पूरी, भटूरा, पिज्जा, बर्गर, तले पराठे, डोसा, तली हुई रोटी, ब्रेड बटर, अचार, चटनी, पापड़, नूडल्स, कोल्ड ड्रिंक, हलवा, जलेबी, चिप्स, मठ्ठी, नमकीन, मिक्सचर, पकोड़ा, समोसा और हर तरह की डीप फ्राइड चीजें नहीं मिलेंगी।
120 संस्थाएं लगाएंगी लंगर देशभर से 120 समाजसेवी संस्थाएं यात्रा मार्ग पर लंगर लगाएंगी। ये लंगर बालटाल कैंप, बालटाल-डोमेल के बीच, डोमेल, रेलपत्री, बरारीमार्ग, संगम, नुनवान, चंदनवाड़ी, चंदनवाड़ी-पिस्सूटॉप के बीच, पिस्सूटॉप, जोजीबल, नागाकोटी, शेषनाग, वावबल, पोषपत्री, केलनार, पंचतरणी व पवित्र गुफा के पास लगेंगे।
2022 की अमरनाथ यात्रा से जुड़ी जरूरी बातें
2022 की अमरनाथ यात्रा 30 जून से 11 अगस्त तक चलेगी।
सभी श्रद्धालुओं को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना होगा।
13 साल से कम और 75 वर्ष से अधिक और 6 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंट महिला को यात्रा करने की अनुमति नहीं होगी।
श्राइन बोर्ड ने पहलगाम और बालटाल दोनों यात्रा मार्गों पर प्रतिदिन 10 हजार श्रद्धालुओं की संख्या तय करने पर सहमति दी है, इनमें हेलिकॉप्टर से यात्रा करने वालों की संख्या शामिल नहीं होगी।
इस बार फ्री बैट्री व्हीकल सुविधा का विस्तार बालटाल से डोमेल के 2 किलोमीटर लंबे यात्रा मार्ग पर करने का फैसला किया गया है।
अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए सुरक्षाबलों की 250 कंपनियों के करीब 1 लाख जवानों को तैनात करने की योजना है। इसमें CRPF के जवान प्रमुख होंगे।
एक अनुमान के मुताबिक, इस बार की अमरनाथ यात्रा में 10 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हो सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा शुरू करने के बाद इन 10 बातों का रखें ध्यान
महिलाओं के लिए साड़ी पहनना सुविधाजनक नहीं होगा, वे सलवार-कमीज, पैंट-शर्ट या फिर ट्रैक सूट पहनकर यात्रा करें।
चप्पल पहनकर अमरनाथ ट्रैकिंग बिल्कुल न करें। रास्ते फिसलन भरे होते हैं, इसलिए फीते वाले ट्रैकिंग शूज का इस्तेमाल करें।
आपका सामान लेकर चल रहे कुली के आसपास ही रहें, जिससे किसी चीज की जरूरत होने पर तुरंत उसे बैग से निकाल सकें।
पहलगाम और बालटाल से आगे की यात्रा में अपने साथ एक वाटरप्रूफ बैग में एक्स्ट्रा कपड़े और खाने की चीजें रखें। भीगने पर इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
पानी की बोतल, कुछ स्नैक्स जैसे- भुने चने, ड्राय फ्रूटस, टॉफी, चॉकलेट आदि जरूर लेकर चलें।
सनबर्न से बचने के लिए अपने पास कोई भी मॉइश्चराइजर क्रीम और वैसलीन लेकर चलें।
आप गुम न हो जाएं, इसके लिए कभी भी अकेले न चलें और हमेशा साथी यात्रियों के साथ रहें।
इमरजेंसी को देखते हुए अपनी जेब में हमेशा अपना नाम, पता और घर का फोन नंबर लिखकर रखें। किसी साथी के साथ या ग्रुप में जा रहे हैं तो उनका भी फोन नंबर लिखकर रखें।
बेस कैम्प से निकलते वक्त आपका कोई साथी खो गया है तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस को दें और व्यक्ति के खो जाने की घोषणा करवा दें।
किसी शॉर्टकट रास्ते से यात्रा पूरी करने की कोशिश न करें। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।
मार्ग पर सख्त पहरा, श्रद्धालुओं की ट्रैकिंग के लिए RFID सिस्टम
सरकार श्रद्धालुओं के लिए एक RFID प्रणाली शुरू करने की भी योजना बना रही है, जिससे हर श्रद्धालु की आवाजाही पर नजर रखी जा सके।
जम्मू से लेकर घाटी में पूरे यात्रा रूट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाएंगे। अर्धसैनिक बलों की 60 कंपनियां तैनात की जाएंगी।
यात्रा मार्ग पर स्निफर डॉग तैनात होंगे। महिलाओं की दो कंपनियां भी रहेंगी।
पर्वतीय बचाव दल को तैनात करने के अलावा, प्रशासन यात्रियों के लिए स्वास्थ्य शिविर भी लगाएगा।
क्या है अमरनाथ धाम और उसका महत्व?
अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र गुफा है, जो हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है।
माना जाता है कि अमरनाथ स्थित इस पवित्र गुफा में भगवान शिव एक बर्फ-लिंगम यानी बर्फ के शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बर्फ से शिवलिंग बनने की वजह से इसे 'बाबा बर्फानी' भी कहते हैं।
पवित्र गुफा ग्लेशियर, बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई है। गर्मियों के कुछ दिनों को छोड़कर यह गुफा साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है। गर्मियों के उन्हीं दिनों में यह तीर्थयात्रियों के दर्शन के लिए खुली रहती है।
खास बात ये है कि इस गुफा में हर साल बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। यह गुफा की छत में एक दरार से पानी की बूंदों के टपकने से बनता है। बेहद ठंड की वजह से पानी जम जाता है और बर्फ का शिवलिंग आकार ले लेता है।
यह एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है। यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा होता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी घट जाता है। ऐसा हर साल होता है।
इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं।
बर्फ के शिवलिंग के बाईं ओर दो छोटे बर्फ के शिवलिंग बनते हैं, उन्हें मां पार्वती और भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है।
कहां स्थित है अमरनाथ की पवित्र गुफा?
अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में 17 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले अमरनाथ पर्वत पर स्थित है।
अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में है। यह गुफा लिद्दर घाटी के सुदूर छोर पर एक संकरी घाटी में स्थित है। ये पहलगाम से 46-48 किमोमीटर और बालटाल से 14-16 किलोमीटर दूर है।
गुफा समुद्र तल से 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां केवल पैदल या टट्टू से ही पहुंचा जा सकता है।
तीर्थयात्री पहलगाम से 46-48 किलोमीटर या बालटाल से 14-16 किलोमीटर के फासले वाले खड़े और घुमावदार पहाड़ी रास्ते से पहुंचते हैं।
क्या है अमरनाथ गुफा से जुड़ी कथा?
अमरनाथ गुफा से जुड़ी कथा के मुताबिक, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी अमरता की वजह पूछी, इस पर भोलेनाथ ने उन्हें अमर कथा सुनने के लिए कहा।
पार्वती जी अमर कथा सुनने को तैयार हो गईं। इसके लिए वे एक ऐसी जगह तलाशने लगे, जहां कोई और ये अमर होने का रहस्य न सुन पाए। आखिरकार वह अमरनाथ गुफा पहुंचे।
अमरनाथ गुफा पहुंचने से पहले शिवजी ने नंदी को पहलगाम में, चंद्रमा को चंदनवाड़ी में, सर्प को शेषनाग झील के किनारे, गणेशजी को महागुण पर्वत पर, पंचतरणी में पांचों तत्वों (धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश) को छोड़ दिया।
पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा पहुंचकर शिवजी ने समाधि ली। फिर उन्होंने कालाग्नि को गुफा के चारों ओर मौजूद हर जीवित चीज को नष्ट करने का आदेश दिया, जिससे कोई और अमर कथा न सुन सके।
इसके बाद शिवजी ने पार्वती को अमरता की कथा सुनाई, लेकिन कबूतर के एक जोड़े ने भी ये कथा सुन ली और अमर हो गया। आज भी कई श्रद्धालु कबूतर के जोड़े को अमरनाथ गुफा में देखने का दावा करते हैं। इतने ऊंचे और ठंड वाले इलाके में इन कबूतरों का जीवित रहना हैरान करता है।
अंत में, शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने लिंगम रूप में प्रकट हुए, जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है और श्रद्धालु उसी के दर्शन के लिए जाते हैं।
कब शुरू हुई थी अमरनाथ यात्रा?
इस बात का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है कि अमरनाथ यात्रा कब से शुरू हुई। 12वीं सदी में लिखी गई कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ का जिक्र मिलता है।
माना जाता है कि 11वीं सदी में रानी सूर्यमती ने अमरनाथ मंदिर को त्रिशूल, बाणलिंग समेत कई अन्य पवित्र चीजें दान की थीं।
एक मान्यता के अनुसार, अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले ऋषि भृगु ने की थी। दरअसल, जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था। पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए थे।
आधुनिक रिसर्चर्स के मुताबिक, 1850 में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिये ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी।
सिस्टर निवेदिता ने 'नोट्स ऑफ सम वांडरिंग विद स्वामी विवेकानंद' में 1898 में स्वामी विवेकानंद के अमरनाथ गुफा जाने का जिक्र किया है।
कब बना श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड
लंबे समय तक बूटा मलिक के परिजन, दशनामी अखाड़ा के पंडित और पुरोहित सभा मट्टन इस तीर्थस्थल के पारंपरिक सरंक्षक रहे।
2000 में जम्मू कश्मीर की फारूक अब्दुल्ला सरकार ने यात्रा की सुविधा को बढ़ाने के लिए श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड का गठन किया, जिसका मुखिया राज्यपाल को बनाया गया। श्राइन बोर्ड से मलिक के परिवार और हिंदू संगठनों को हटा दिया गया।
कब होती है अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ यात्रा आमतौर पर जुलाई-अगस्त के दौरान होती है, जब हिंदुओं का पवित्र महीना सावन पड़ता है।
शुरू में तीर्थयात्रा 15 दिन या एक महीने के लिए आयोजित होती थी। 2004 में, श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने तीर्थयात्रा को लगभग 2 महीनों तक आयोजित करने का फैसला किया।
1995 में अमरनाथ यात्रा 20 दिनों तक चली थी, जबकि 2004 से 2009 के दौरान यात्रा 60 दिनों तक चली थी। इसके बाद के वर्षों में यात्रा 40 से 60 दिन तक चली थी।
2019 में ये यात्रा 1 जुलाई से शुरू होकर 15 अगस्त तक चलनी थी, लेकिन आर्टिकल- 370 हटाए जाने से कुछ दिनों पहले सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रद्द कर दी गई थी।
पिछले कुछ वर्षों में अमरनाथ तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ती गई है। 1990 के दशक में हजारों की संख्या से अगले कुछ वर्षों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की यात्रा पर गए। 2011 में रिकॉर्ड 6.34 लाख श्रद्धालुओं ने अमरनाथ के दर्शन किए थे।
क्या है अमरनाथ यात्रा का पुराना और नया रास्ता?
अमरनाथ यात्रा का मार्ग समय के साथ बदलता रहा है। इस इलाके में सड़कों के निर्माण के साथ ही यात्रा मार्ग में भी बदलाव हुआ है। अब अमरनाथ की यात्रा के लिए दो रास्ते हैं।
एक रास्ता पहलगाम से शुरू होता है, जो करीब 46-48 किलोमीटर लंबा है। इस रास्ते से यात्रा करने में 5 दिन का समय लगता है।
दूसरा रास्ता बालटाल से शुरू होता है। यहां से गुफा की दूरी 14-16 किलोमीटर है, लेकिन खड़ी चढ़ाई की वजह से इससे जा पाना सबके लिए संभव नहीं होता। इस रास्ते से यात्रा में 1-2 दिन का समय लगता है।
देश के कुछ बड़े शहरों से अमरनाथ की दूरी
दिल्ली से 631 किलोमीटर
भोपाल से 1234 किलोमीटर
रायपुर से 1561 किलोमीटर
जयपुर से 812 किलोमीटर
बेंगलुरु से 2370 किलोमीटर
मुंबई से 1702 किलोमीटर
लखनऊ से 970 किलोमीटर
पटना से 1332 किलोमीटर
अमरनाथ यात्रा पर हुए हैं 36 आतंकी हमले
अमरनाथ तीर्थयात्रियों को पहली धमकी 1993 में पाकिस्तान स्थित हरकत-उल-अंसार आतंकी संगठन की ओर से दी गई थी।
अमरनाथ यात्रा पर पहला आतंकी हमला 2000 में हुआ था। इनमें 32 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें 21 तीर्थयात्री थे।
2001 में तीर्थयात्रियों के कैंप पर आतंकियों के ग्रेनेड हमले में 13 लोगों की मौत हो गई थी।
2002 में दो आतंकी हमलों में 11 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। 2017 में आतंकियों की गोलीबारी में 8 तीर्थयात्री मारे गए थे।
2017 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि 1990 से 2017 तक यानी 27 वर्षों में अमरनाथ यात्रा पर 36 आतंकी हमले हुए, जिनमें 53 तीर्थ यात्रियों की मौत हुई, जबकि 167 घायल हुए।