कृषि कानून वापस लेने का फैसला नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ले लिया है। इस फैसले के बाद पंजाब की राजनीति में शिरोमणि अकाली दल बादल (SAD) फिर से बैकफुट आ गया। अब अकाली दल की जगह कैप्टन अमरिंदर सिंह ले सकते हैं और इन मुद्दों पर छिटके वोट बैंक को अपने पक्ष में एकजुट कर सकते हैं। कैप्टन ने भाजपा के साथ जाने का खुलकर ऐलान भी कर दिया है।
पंजाब के चुनावी परिदृश्य को देखकर SAD ने कृषि कानूनों को आधार बनाकर भाजपा से गठजोड़ तोड़ लिया था। वहीं बेदअबी के मुद्दे पर भी शिरोमणि अकाली दल पहले से गांवों में अपनी जमीन तलाश रहा है। ऐसे में भाजपा के कृषि कानून वापस लेने फैसले के बाद पंजाब की राजनीति में उफान आना लाजिमी है। क्योंकि इस फैसले से भाजपा सहानुभूति का वोट हासिल करने का प्रयास करेगी। पहले इस वोट बैंक को संभालने के लिए SAD भाजपा के साथ था। गठबंधन टूटने के बाद अब SAD फिर से बैकफुट पर है। क्योंकि पहले से तय था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह कृषि कानून वापस करवाने के लिए गृह मंत्री अमित शाह के साथ काम कर रहे थे।
1996 में हुआ गठबंधन, सितंबर 2020 में टूटा
शिरोमणि अकाली दल बादल ने 1996 में बहुजन समाज पार्टी से अपना गठबंधन तोड़कर भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गए थे। तब से वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ते आ रहे थे। सितंबर 2020 में अकाली दल ने इसे तोड़ दिया था और वह फिर से बसपा के साथ आ गए थे। शिरोमणि अकाली दल ने बसपा के साथ सीट शेयरिंग भी कर ली है और टिकटों को ऐलान भी हो चुका है।
वापस आना मुश्किल, सुलह की गुंजाइश नहीं
शिरोमणि अकाली दल बादल को लग रहा था कि भाजपा कभी कृषि कानून वापस नहीं लेगी, इसलिए SAD ने छह माह पहले ही चुनाव प्रचार शुरू कर दिया था। कभी भी भाजपा के साथ आने से मना कर दिया था। अब अकाली दल बेहद आगे निकल चुका है और भाजपा से सुलह होनी बेहद मुश्किल है। कैप्टन ने कांग्रेस से विवाद के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेहद कुशलता से इस मौके को कैप्चर किया और भाजपा से हाथ मिलाया है।
शहरी वोट बैंक संभालने में लगा है अकाली दल
ग्रामीण वोट बैंक हाथ से जाता देख सुखबीर सिंह बादल ने अपने प्रोग्राम बदल लिए थे। वह अब पूरी तरह से शहरी वोट बैंक को अपने हाथ में करने में लगे हुए हैं। गांवों में उनका जबरदस्त विरोध भी हो रहा है। अब जब कृषि कानून वापस हो रहे हैं तो देखना होगा कि अकाली दल गांवों में किस ढंग से अपना प्रचार शुरू करता है।
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