श्री मोहन जगदीश्वर आश्रम कनखल हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी महाराज ने प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को कर्म में स्वयं को निमित्त मात्र मानना चाहिए, क्योंकि कर्ता तो प्रभु स्वयं हैं। यदि प्रभु को कर्ता मानकर कर्म करेंगे तो लाभ और खुशी होगी। अगर कुछ हानि भी होती है तो व्यक्ति को दु:ख नहीं होगा। इसलिए कहते हैं जो कार्य नहीं हो पा रहा उसे भगवान पर छोड़ दो, भगवान खुद कृपा करेंगे और कार्य निर्विघ्न पूरा होगा।
महामंडलेश्वर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने ये विचार अबोहर रोड स्थित श्री मोहन जगदीश्वर दिव्य आश्रम में माघ महोत्सव के दौरान श्रद्धालुओं के समक्ष रखे। स्वामी जी महाराज ने कहा कि किष्किंधा कांड में सुग्रीव और हनुमान हैं। महाराज ने ऋष्यमूक पर्वत का अर्थ बताते हुए कहा कि जिस पर्वत के ऊपर ऋषि हमेशा सत्संग, उच्च कोटि की साधना व मौन होकर निरंतर प्रभु ध्यान में मग्न रहते हैं उस स्थान को ऋष्यमूक कहा जाता है। ऐसे स्थान पर बाली कभी आ नहीं सकता। महाराज ने बताया कि बाली कर्म है, सुग्रीव जीव है, हनुमान संत हैं और श्री राम भगवान है।
यदि सुग्रीव जैसा जीव हनुमान जैसे संतों की संगति में रहेगा तो बाली रूपी कर्म उसको विक्षेप नहीं करेगा एवं ईश्वर रूपी श्री राम स्वयं उस स्थल पर चले आएंगे। महाराज जी ने कहा कि सूरदास जी एक बार लालटेन लेकर ठाकुर जी का दर्शन करने आए। किसी ने यह दृश्य देखकर व्यंग कर दिया अरे सूरदास जी! आपको लालटेन की क्या आवश्यकता है! आपको तो दिखाई ही नहीं देता। सूरदास जी ने कहा कि मुझे भले ही दिखाई नहीं देता है, लेकिन लालटेन के प्रकाश में भगवान को तो मैं दिखाई दे जाऊंगा कि मेरा सूरदास यहां खड़ा है। भगवत कृपा दृष्टि की अनुभूति चाहिए।
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