कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता ना होने के कारण अमृतसर में वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी हो चुकी है। एक तरफ कोविशील्ड का स्टॉक सप्ताह में एक या दो बार ही पहुंच रहा है, वहीं को-वैक्सीन आने पर भी लोग उसे लगवाना नहीं चाहते। जिसके पीछे बढ़ा कारण, डब्ल्यूएचओ की तरफ से इसे अभी तक प्रमाणित न करना है। फिलहाल सरकारी अस्पतालों में को-वैक्सीन की 1200 डोज ही बची है।
सेहत विभाग के अनुसार, रविवार को शहर के सभी केंद्रों पर कोवैक्सीन की 4 हजार डोज पहुंचा दी गई थी। इसके अलावा कुछ कोविशील्ड की एमरजेंसी डोज ही थी। सोमवार को पूरे दिन में 3123 डोज ही लोगों को लगी। जिनमें से 283 डोज प्राइवेट अस्पतालों में लगाई गई। सरकारी अस्पतालों में कोवैक्सीन की 2930 डोज लगी। जिनमें से 2013 पहली डोज और 913 दूसरी डोज लेने वाले लोग थे। जिसके बाद शहर के सरकारी अस्पतालों में 1200 डोज ही बची है। अनुमान है कि कोविशील्ड आज रात तक शहर में पहुंच जाएगी।
लोगों को डब्ल्यूएचओ की एप्रूवल का इंतजार
कोविशील्ड को डब्ल्यूएचओ प्रमाणित कर चुकी है। कोविशील्ड की डोज अगर रोज आती रहे तो रोजाना 10 हजार से अधिक डोज आसानी से लगाई जा सकती है। लेकिन उपलब्धता में दिक्कत धीमी वैक्सीनेशन का कारण है। वहीं दूसरी तरफ शहर में कोवैक्सीन जब भी आती है, लाेग उसे लगवाना नहीं चाहते। इसका कारण है कि डब्ल्यूएचओ ने अभी इसे प्रमाणित नहीं किया है और इसकी एप्रूवल का मामला फिलहाल डब्ल्यूएचओ के पास पैंडिंग है। कोवैक्सीन की डोज वही लगवाने पहुंच रहे हैं, जिन्हें इसकी पहली डोज लगी है। इसके इलावा प्राइवेट या सरकारी कार्यालयों में कार्यरत लोग ही इसे लगवा रहे हैं, क्योंकि मैनेजमेंट की तरफ से वैक्सीनेशन का दबाव कर्मचारियों पर बनाया गया है।
भरत बायोटैक घोषित कर चुका है तीसरे फेज के परिणाम
भरत बायोटैक ने इसी माह की शुरुआत में कोवैक्सीन के परिणाम घोषित कर दिए थे। जिसमें कोवैक्सीन ने गंभीर संक्रमणों के खिलाफ 93.4% सक्षमता दिखाई है। इसके अलावा डैल्टा वेरिएंट के खिलाफ कोवैक्सीन 65.2 % प्रभावी रही। वहीं रोगसूचक संक्रमण के खिलाफ इसकी संपूर्ण क्षमता 77.8% रही है। यह पूरा डाटा डब्ल्यूएचओ के पास भेजा जा चुका है।
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