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आंदोलन में शिक्षा:एमए व पीएचडी होल्डर 7 युवाओं ने बॉर्डर पर शुरू किया स्कूल, 200 से ज्यादा बच्चों को करवा रहे पढ़ाई, स्किल सुधारने पर फोकस

राजेश खोखर | कुंडली बॉर्डर2 वर्ष पहले
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कुंडली बॉर्डर पर आंदोलन के दौरान बच्चों को पढ़ाते युवा। इनसेट में एक बच्चा अंग्रेजी में कविता सुनाते हुए। - Dainik Bhaskar
कुंडली बॉर्डर पर आंदोलन के दौरान बच्चों को पढ़ाते युवा। इनसेट में एक बच्चा अंग्रेजी में कविता सुनाते हुए।
  • पंजाब के अलग-अलग जिलों के रहने वाले हैं सातों युवा, कुंडली बॉर्डर पर आने के बाद पहली बार मिले

तीनों कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन जारी है। जहां सड़कों पर बैठकर किसान दिनभर प्रदर्शन कर करते नजर आते हैं। वहीं, 7 युवाओं ने मिलकर एक नई पहल की है। केएफसी मॉल के ठीक आगे टेंट के अंदर काफी बच्चे बैठे दिखाई दिए। अंदर जाने लगे तो गेट पर रोक लिया और कहा कि पहले जूते बाहर निकालो और फिर रजिस्टर में एंट्री करो। उसने बताया कि अंदर स्कूल चल रहा है। अंदर देखा तो 150 से ज्यादा बच्चे बैठे पढ़ाई कर रहे थे। सामने खड़ी दो युवतियां इन बच्चों को पढ़ा रही थीं। बीच-बीच में एक-एक बच्चा खड़े होकर अंग्रेजी में कविता सुना रहा था।

हर 15 मिनट में दूसरा युवक या युवती पढ़ाने के लिए आ रहे थे और अलग- अलग विषय पर पढ़ा रहे थे। क्लास में बच्चों को सामने आकर बोलना, गाने गाना और डांस आदि करना भी सिखाया जा रहा था।इस समूह में 450 सदस्य हो गए हैं। इसमें हरियाणा व पंजाब के अलावा अन्य जगहों के युवा भी हैं। एक दिन सुझाव आया कि आंदोलन के मंच पर सभी को बोलने का मौका नहीं मिलता। इसलिए अपनी चौपाल शुरू की जाए। इसे सांझी सत्थ नाम भी दिया। दिन में यहां स्कूल चलता और शाम को 6 से 8 बजे तक 300 से ज्यादा युवाओं और बुजुर्गों की चौपाल लगती है।

एक दूसरे से अनजान थे, लेकिन सोच ने एक बनाया

यह सब देख हमें उत्सुकता हुई तो हमने बात की। पंजाब के सुखविंदर सिंह बढ़वा ने बताया कि हमारी कोई एनजीओ नहीं है। पंजाब से अलग-अलग जिलों से आए हम 7 युवा सुखविंदर सिंह बढ़वा, गैरी बड़ेंग, दिनेश चड्ढा, परमिंदर गोल्डी, सतनाम सिंह, बलकार सिंह व गुरपेज सिंह का आइडिया है। हम आंदोलन की शुरुआत में ही आ गए थे। आंदोलन से पहले हम सभी एक दूसरे से बिल्कुल अनजान थे। एक दिन बैठे थे तो पता चला कि कोई एमए किए हुए है तो किसी ने पीएचडी की हुई है। कुछ अलग करने को पहले लाइब्रेरी शुरू की। सभी भाषाओं के लिटरेचर लेकर आए, जिसको पढ़ना हो एंट्री कराए और पढ़ने को ले जाए।

इसमें लोगों को रुचि दिखाई दी। फिर चार्ट और पेंटिंग का सामान ले आए और लोगों को ड्राइंग या पेंटिंग बनाने को प्रेरित किया। फिर हमने स्कूल शुरू करने को सोचा। जब तक यहां हैं बच्चों को ही पढ़ा लें। आंदोलनकारियों के साथ लंगर में आने वाले स्लम एरिया के बच्चों को भी पढ़ाना शुरू किया। अब रोज 200 से ज्यादा बच्चे हो जाते हैं। हम किसी सब्जेक्ट की जगह अंग्रेजी और स्किल सुधारने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।