सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शनिवार रात को देश की सबसे बड़ी शाही देग पकाई। देग में तैयार किया गया पांच हजार किलो लंगर रविवार तड़के जायरीन को बांटा गया। इसके लिए 25 हजार पैकेट लंगर के तैयार किए।
शाही देग को पकाने से पहले दरगाह में स्थित बादशाह अकबर की भेंट की गई बड़ी देग को फूलों से सजाया गया। इस सजावट के लिए भी विशेष स्टैंड तैयार कराया गया है। देग में लंगर पकाने की शुरूआत के मौके पर बैंडवादन कराया गया। इस मंजर को देखने के लिए दरगाह में बड़ी संख्या में अकीदतमंद जुटे।
खादिम सैयद गनी गुर्देजी व सैयद यासिर गुर्देजी ने बताया कि इस शाही देग में 5 हजार किलो खाना पकाया गया। इसमें 120 किलो देसी घी और 250 किलो ड्राई फ्रूट्स जिसमें 25 किलो बादाम, 20 किलो काजू, 20 किलो अंजीर, 20 किलो चेरी, 20 किलो अखरोट, 20 किलो खोपरा, 20 किलो छुहारे डाले गए हैं। इसके साथ ही एक हजार किलो शक्कर और शेष चावल डाले गए।
चांदी के वर्क लगा कर तकसीम किए पैकेट
सैयद यासिर गुर्देजी ने बताया कि हैदराबाद के याकूब अली ख्वाजा अहमद ने यह देग पकवाई है। उनकी ख्वाहिश थी कि गरीब नवाज के दरबार की जैसी आली शान है, उसी अंदाज में देग पकाई जाए। आशिकान-ए-ख्वाजा को जिन पैकेट में लंगर दिया गया, उसमें चांदी के वरक लगे। दरगाह में तकसीम के साथ ही कायमपुरा, हटूंडी और गगवाना आदि आसपास के गांवों में भी लंगर पहुंचाने की व्यवस्था की गई। इसके लिए अलग से वाहन लगाए गए।
अजमेर में सबसे बड़ी देग
भारत की सबसे बड़ी देग अजमेर में महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में है। अकबर बादशाह चित्तौडग़ढ़ विजय के बाद पैदल अजमेर आए और दरगाह में हाजिरी दी। इसके बाद उन्होंने यह बड़ी देग बनवाई। इस देग में 80 मन लंगर एक साथ पकता है। लंगर चावल, मेवे, दूध और शक्कर आदि मिलाकर पकाते हैं। इस देग में मांसाहारी लंगर कभी नहीं पकता। उर्स के दौरान बड़ी देग खासतौर से पकती है। आम दिनों में छोटी देग में ही लंगर पकाया जाता है।
(इनपुट-आरिफ कुरैशी)
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