जायकाराजस्थानी कुल्हड़ में 13 वैरायटी की चाय और कॉफी:चायवाला पूछेगा- कौन सी पीएंगे- व्हिस्की, रम, वोडका या केसर पिस्ता कुल्फी

अजमेर4 महीने पहलेलेखक: भरत मूलचंदानी
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कड़ाके की ठंड में चाय पीने की इच्छा भला किसकी नहीं करती। कई लोगों को तो भयंकर तलब लगती है।

लेकिन कैसा लगेगा कि आप किसी चाय की थड़ी पर जाकर ऑर्डर करें और चायवाला आपसे पूछे, भाई साहब कौन सी पीएंगे... व्हिस्की, रम, वोदका, केसर पिस्ता कुल्फी, रोज, चॉकलेट।

एक बार तो चौंक जाएंगे।

लेकिन ये सच है, राजस्थानी मिट्टी से बने कुल्हड़ों में चाय के शौकीन व्हिस्की, रम, वोदका, ब्रांडी का स्वाद ले सकते हैं। घबराइए नहीं, इसमें अल्कोहल बिल्कुल नहीं होता। इसके साथ ही आप रोज, चॉकलेट, पान, केसर पिस्ता कुल्फी जैसे फ्लेवर की चाय का मजा कुल्हड़ में ले सकते हैं।

दरअसल, शौकीनों ने चाय के ऐसे-ऐसे स्टार्टअप खड़े कर दिए हैं कि अब ये ब्रांड बन चुके हैं। देसी थड़ियां अब चाय के अड्डों में तब्दील हो गई हैं। अजमेर में जायका टीम ऐसे ही एक टी-पॉइंट पर पहुंची, जहां 13 फ्लेवर की चाय मिलती है। इन फ्लेवर के नाम सुनकर ही यूथ की भीड़ यहां उमड़ती है।

JLN हॉस्पिटल रोड पर बने कैफेटेरिया पर चाय पीने पहुंचे अजमेर के पंचशील क्षेत्र में रहने वाले डॉक्टर दिनेश ने बताया कि पूरे दिन में एक बार अपने ग्रुप के साथ यहां जरूर आते हैं। यहां मिलने वाली अलग-अलग वैरायटी की चाय पीते हैं। पहली बार जब ऐसी वैरायटी का नाम सुना तो हमारा पूरा ग्रुप चौंक गया था, लेकिन बेहतरीन टेस्ट के चलते अब हमें ये फ्लेवर पसंद आने लगे हैं।

छूटी 3.5 लाख महीने की नौकरी
कैफेटेरिया चलाने वाले संचालक संदीप खटवानी ने बताया कि 15 सालों तक वह अपने परिवार के साथ दुबई में रहकर मार्केटिंग की जॉब कर रहे थे। वहां हर महीने 3.5 लाख रुपए कमा रहे थे। कोविड-19 की फर्स्ट वेव में कोरोना की चपेट में आने के बाद सब कुछ बदल गया। जॉब भी खोनी पड़ी और बीमारी से उभरने में 10 लाख से ज्यादा का खर्च हो गया। इससे काफी तनाव में आ गए। ऐसे में दुबई से फैमिली के साथ वापस अजमेर शिफ्ट हो गए।

पत्नी ने दिया साथ तो खोला कैफे
संदीप ने बताया कि पत्नी भावना खटवानी का ड्रीम था कि वह कोई कैफे या रेस्टोरेंट खोलें। फिर 27 मार्च 2022 को पत्नी की मदद व आइडिया से चाय का कैफेटेरिया ओपन किया।

संदीप के अनुसार उन्होंने कैफे खोलने से पहले इसकी पूरी स्टडी की थी। 5 से 6 महीने तक लोकेशन ढूंढने में लग गए थे। बाद में कैफे चाय सुट्टा बार (CSB) की फ्रेंचाइजी ली। इसके लिए 20 दिन तक ट्रेनिंग भी हुई। स्टाफ के 4 लोगों को भी ट्रेनिंग दिलवाई। करीब 2 महीने में कैफे तैयार हो गया।

आगे बढ़ने से पहले देते चलिए एक आसान से सवाल का जवाब।

13 वैरायटी की मिलती है चाय
संदीप के अनुसार अजमेर में सिर्फ उनके पास ही 13 तरीके की चाय मिलती है। जिसमें अदरक, रोज, चॉकलेट, पान, मसाला, केसर, इलायची, तुलसी, केसर पिस्ता कुल्फी, लेमन, शुगर फ्री चाय मिलती है। यह सभी चाय 15 से लेकर 20 रुपए तक में बेची जाती है। थड़ी पर चाय का लुत्फ उठाने पहुंचीं दिल्ली निवासी डॉ. नम्रता सोनी ने बताया कि ऑर्डिनरी चाय हर जगह मिलती है, लेकिन कुछ नया ट्राई करने के लिए वे यहां पहुंची हैं। यहां चॉकलेट, जिंजर, इलायची जैसी वैरायटी की चाय उन्हें पसंद है।

यूनिक कॉफी भी उपलब्ध
संदीप के अनुसार उनके कैफे में 0% अल्कोहल वाली यूनिक कॉफी मिलती है। जिसमें बियर कॉफी, व्हिस्की, रम, वोडका, रेड वाइन, ब्रांडी, स्कॉच, जिन व जेडी फ्लेवर की कॉफी मिलती है। युवा नए-नए फ्लेवर की काॅफी पीना पसंद करते हैं। सभी फ्लेवर का एक ही दाम है। 30 रुपए में यह कॉफी बेचते हैं। कॉफी भी लोकल मिट्टी से बने कुल्हड़ में परोसी जाती है।

यूथ में चाय और कॉफी के ये फ्लेवर काफी फेमस हैं। जेएलएन अस्पताल के डॉक्टर्स भी चाय की चुस्कियों का आनंद लेने आते हैं।
यूथ में चाय और कॉफी के ये फ्लेवर काफी फेमस हैं। जेएलएन अस्पताल के डॉक्टर्स भी चाय की चुस्कियों का आनंद लेने आते हैं।

बिस्किट की जगह मस्का बन खाते हैं लोग
संदीप ने बताया कि हर कोई चाय के साथ बिस्किट खाता है, लेकिन उनके यहां चाय के साथ लोग मस्का बन खाना पसंद करते हैं। मस्का बन प्योर बटर में तैयार कर ग्रिल करके दिया जाता है। इसकी कीमत कुल 25 रुपए होती है। कॉम्बो में दो मस्का बन और दो अदरक चाय 59 रुपए में दिया जाता है। लोग चाय के साथ शौक से मस्का बन खाना पसंद करते हैं।

रोजाना 30 हजार की चाय की सेल
संदीप ने बताया कि रोज के 2000 से ज्यादा कुल्हड़ चाय और कॉफी के ऑर्डर मिलते हैं। रोजाना की सेल 30 हजार रुपए से ज्यादा की होती है। चाय में प्योर दूध और चाय पत्ती का उपयोग किया जाता है। संदीप के अनुसार करीब डेढ़ लाख रुपए के सरस के दूध की चाय शहरवासी पीते हैं।

खरीदते हैं लोकल मिट्टी से बने कुल्हड़
संदीप बताया कि चाय पत्ती भले ही राजस्थान में पैदा नहीं होती, लेकिन राजस्थानी स्वाद यहां की मिट्टी बढ़ाती है। इसलिए वे चाय सर्व करने के लिए लोकल कुम्हारों से ही मिट्टी के बने कुल्हड़ खरीदते हैं। संदीप के अनुसार उनके कैफे में पिज्जा, सैंडविच, मैगी, चीज गार्लिक ब्रेड सहित कई फास्ट फूड भी मिलते हैं।

हल्दीघाटी वाले पंडित जी की लेमन टी
उदयपुर में एक पंडित जी की लेमन-टी ने देशी-विदेशी पर्यटकों में खासी पहचान बनाई है। मूलरूप से हल्दीघाटी के रहने वाले प्रेमपुरी गोस्वामी उदयपुर शहर में सहेलियों की बाड़ी के सामने बीते 20 साल से चाय की थड़ी लगा रहे हैं।

चाय की इस थड़ी का नाम भी उन्होने 'पंड़ित जी लेमन टी' हल्दीघाटी वाले रखा है। गूगल में 'famous tea in udaipur' सर्च करने पर पहला रिजल्ट 'पंड़ित जी लेमन टी' का ही आता है। इनकी लेमन टी की कीमत 10 रुपए ही है। यहां जो भी चाय पीने आता है, रेटिंग देकर जाता है। पंडित जी की इस लेमन टी में नींबू के अलावा भी कई सीक्रेट मसाले डालते हैं जो इस चाय के जायके को बढ़ा देते हैं।

ये हैं प्रेमपुरी गोस्वामी। इनकी चाय की स्टॉल पर क्या फिल्म स्टार और क्या आम आदमी। हमेशा भीड़ जुटती है।
ये हैं प्रेमपुरी गोस्वामी। इनकी चाय की स्टॉल पर क्या फिल्म स्टार और क्या आम आदमी। हमेशा भीड़ जुटती है।

नाथद्वारा की पुदीना चाय पी क्या? अंबानी भी इसके मुरीद
राजस्थान की धर्मनगरी नाथद्वारा की पुदीना चाय का कहना ही क्या! इसका स्वाद लेने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और अंबानी जैसे बिजनेस क्लास के लोग भी आते हैं। श्रीनाथजी प्रभु की मंगला झांकी दर्शन के बाद भक्तों की भीड़ पुदीने की चाय वाली थड़ियों पर उमड़ती है। खास बात यह है कि पुदीना चाय सुबह केवल चार घंटे ही मिलती है। आइए बताते हैं इसकी शुरुआत कैसे हुई....

वैष्णव संप्रदाय के सबसे बड़े मंदिर श्रीनाथजी में मंदिर के पास चौपाटी पर कभी चाय की कुछ दुकानें ही हुआ करती थीं। तकरीबन चार दशक पहले गुजरात से आए भक्तों के दल के एक सदस्य ने जब पुदीने की चाय की डिमांड की तो अगले दिन एक थड़ी संचालक घनश्याम पुदीना और लेमन ग्रास ले आया। उसने श्रद्धालु के बताए अनुसार मसालों का मिश्रण किया और फिर उन्हें वो चाय बनाकर पिलाई।

श्रद्धालु के जाने के बाद चाय वाले ने खुद टेस्ट किया तो उसे भी पसंद आई। बस यहीं से सिलसिला चल पड़ा और पुदीने की चाय नाथद्वारा की ब्रांड बन गई। वह चाय वाला रोज पुदीना लेकर आने लगा और स्पेशल चाय बनाकर बेचने लगा। धीरे-धीरे इसमें कई प्रयोग हुए। केसर भी मिलाया जाने लगा। पुदीना चाय की बढ़ती डिमांड देखकर दूसरे थड़ी वालों ने भी बनाने का तरीका सीखा। आज नाथद्वारा में करीब 100 से ज्यादा थड़ियों (टी स्टॉल) पर यह पुदीना और केसर वाली स्पेशल चाय बिकती है और सालाना 5 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार होता है।

गुलाब जी की चाय : यहां फ्री में पी सकते हैं चाय
यह जयपुर ही नहीं राजस्थान की पहली थड़ी है जहां लोग मुफ्त में भी चाय पी सकते हैं। सुनने में ये बात भले ही मजाक लगता हो, लेकिन सच है। चाय की इस थड़ी की शुरुआत 75 साल पहले गुलाब सिंह धीरावत ने की थी। पूर्व उपराष्ट्रपति और राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे भैरोंसिंह शेखावत भी इनके स्टॉल पर चाय पीने आते थे।

चेतन सिंह बताते हैं कि उनकी चाय पीने लोगों की लाइन लगती थी। उसमें कई गरीब और जरूरतमंद भी होते थे जिनके लिए गुलाब जी फ्री में चाय बनाते थे। फिर उन्होंने इसे परंपरा ही बना दिया कि सुबह का पहला पतीला वे गरीबों के लिए बनाने लगे। गुलाब सिंह तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी लेगेसी को आज उनका गोद लिया हुआ बेटा शिवपाल सिंह और उनके बेटे यानी पोते चेतन सिंह आगे बढ़ा रहे हैं।

गुलाब जी के बाद 2017 में उनके पोते चेतन सिंह ने 24 साल की उम्र में बिजनेस की कमान संभाली। इस नाम की वैल्यू को समझते हुए चेतन ने 'गुलाब जी' को एक ब्रैंड बनाया। चेतन एमबीए हैं और उन्होंने अपनी स्किल्स के बलबूते शहर में 4 आउटलेट खोले हैं।

69% जायका पाठकों ने एकदम सही जवाब दिया है। ये मारवाड़ की सदियों पुरानी खोबा रोटी है। ये खास रोटी मारवाड़-गोड़वाड़ अंचल के 500 साल से भी पुराने इतिहास से जुड़ी है। राजपूताने (अब राजस्थान) में जब कोई युद्ध छिड़ता था तब सैनिक इसी रोटी को अपने साथ ले जाते थे। बड़े-बड़े व्यापारी रेगिस्तान में ऊंटों से सफर पर निकलते तो ये रोटी साथ ले जाना नहीं भूलते थे। एक रोटी का वजन 350 ग्राम से लेकर 2 किलो तक हो सकता है।

ये खोबा रोटी बनाने का प्रोसेस है। खास बात ये है कि इसकी मिट्‌टी के तवे पर सिकाई की जाती है। इसके अलावा इसे चूल्हे पर सेंका जाता है।
ये खोबा रोटी बनाने का प्रोसेस है। खास बात ये है कि इसकी मिट्‌टी के तवे पर सिकाई की जाती है। इसके अलावा इसे चूल्हे पर सेंका जाता है।

ऐसे पड़ा इस रोटी का नाम 'खोबा'
खोबा शब्द की उत्पत्ति गोबा से हुई है। अंगूठे से टीज करने को मारवाड़ में गोबा कहते हैं। इन रोटियों को ऐसे ही बनाया जाता है। अंगूठे से दबाव देकर छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं। इसलिए इसे पहले गोबा रोटी कहा जाने लगा। वक्त के साथ-साथ नाम बिगड़ा और अब 'खोबा रोटी' नाम ज्यादा लिया जाता है।

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2. इतनी बड़ी रोटी, अंग्रेज समझते थे थाली:पांच दिन तक खराब नहीं होती, 500 ग्राम का लड्‌डू, पिज्जा जैसा पापड़

क्या आपने ऐसी रोटी का स्वाद चखा है जो 5 दिन तक खराब नहीं होती। और तो और रोटी बिल्कुल नरम रहती है और स्वाद भी वैसा ही बना रहता है। आपका अगला सवाल होगा- 'ये रोटी मिलती कहां है...?' ये खास रोटी मारवाड़-गोड़वाड़ अंचल के 500 साल से भी पुराने इतिहास से जुड़ी है...(CLICK कर पढ़ें पूरी स्टोरी)