जायकाग्राहक की डिमांड पर दिया रसगुल्ले को नया अवतार:रेलवे की नौकरी छोड़ बने हलवाई; राजस्थानी स्टाइल वाला सिगड़ी पापड़

अजमेर3 महीने पहलेलेखक: भरत मूलचंदानी
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रसगुल्ला, वो मिठाई है जिस पर हक जताने के लिए दो स्टेट आपस में झगड़ पड़े थे। मामला कोर्ट तक भी पहुंच गया था। खैर राजस्थान में ऐसा नहीं है।

यूं तो राजस्थान में रसगुल्लों का गढ़, बीकानेर है। लेकिन अजमेर में एक हलवाई ने ग्राहक की डिमांड पर रसगुल्ले को ऐसा अवतार दिया कि उसकी शक्ल ही नहीं, टेस्ट भी बदल गया। ऑरेंज का टेस्ट देने वाला ये रसगुल्ला, बीकानेरी सफेद रसगुल्ले से हटकर है।

ओरेंज रसगुल्ला अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका है। लोग दूर-दूर से इसे खाने के लिए पहुंचते हैं। इसे बनाने वाले शख्स तो खान-पान के इतने शौकीन थे कि रेलवे की सरकारी नौकरी ही छोड़ दी और हलवाई बन गए।

अजमेर में इस स्पेशल मिठाई के अलावा एक चपपटे स्वाद वाला सिगड़ी पापड़ भी खास है, जो लोगों को अपना दीवाना बना रहा है।

तो देर किस बात की, चलिए ले चलते हैं आपको इस स्वाद के सफर पर...

अजमेर के श्रीनगर रोड, राजा सर्किल चौराहे पर कमलेश स्वीट्स पर गर्मी के सीजन में इस खास रसगुल्ले की डिमांड अचानक बढ़ जाती है। क्योंकि पूरे शहर में ये खास रसगुल्ले केवल यहीं मिलते हैं। जिसे कमला भोग भी कहा जाता है। लक्ष्मीनारायण सोनी ने बताया कि चाहे बीकानेरी हो, बंगाली हो या कोई और रसगुल्ला, इसका टेस्ट बहुत अमेजिंग है। कोई केमिकल या फूड कलर इस्तेमाल नहीं होता, ओरिजिनल ऑरेंज का टेस्ट आता है, जो स्वाद को दोगुना कर देता है।

1986 में रेलवे की नौकरी छोड़ बने हलवाई
पाल बिचला निवासी अशोक जैन (63) हलवाई ने बताया कि वह पुश्तैनी हलवाई हैं। 43 सालों से हलवाई का काम कर रहे हैं। अशोक जैन ने बताया कि वह BA की पढ़ाई कर चुके हैं। 1986 में रेलवे के लोको रनिंग में उनकी नौकरी भी लगी थी। उन्हें रेलवे की तरफ से पर डे 11 रुपए 33 पैसे दिए जाते थे। जैन ने बताया कि उस जमाने में स्टीम इंजन चला करता था जिसमें काफी मेहनत हुआ करती थी।

एक दिन वह अपने पिता के साथ उनकी साइट पर गए और वहां अच्छा खाना देखकर और कम मेहनत को देखते हुए पिता के साथ काम करना शुरू कर दिया। हलवाई प्रभाती लाल उनके गुरु थे जिन्होंने उन्हें हलवाई का काम सिखाया। हलवाई का काम इतना जम गया कि अशोक जैन ने अपनी रेलवे की नौकरी छोड़ दी। जितनी तनख्वाह रेलवे देता था, उससे दोगुने वे इस काम में कमाने लगे।

टूरिस्ट की डिमांड, 8 घंटे में तैयार कर दी मिठाई
हलवाई अशोक जैन ने बताया कि उन्हें ऑरेंज रसगुल्ले बनाने का आईडिया 2013 में आया था। कोलकाता से एक अनजान व्यक्ति उनकी श्रीनगर स्थित शॉप पर पहुंचा। अजमेर घूमने आए उस टूरिस्ट ने ऑरेंज रसगुल्ले की डिमांड कर दी। जिसके बाद हमारे परिवार के सदस्य भी इस सोच में पड़ गए कि ऑरेंज रसगुल्ले को किस तरीके से बनाया जाए।

हमारे लिए ये नया चैलेंज था। ऐसे में एक्सपर्ट हलवाई और पिता प्रकाश चंद जैन से इसे लेकर चर्चा की। उन्होंने नारंगी के छिलके पीसकर रसगुल्ले बनाने का आइडिया दिया। उनके बताए अनुसार 3 बार तक रसगुल्ला नहीं बना, जबकि नुकसान ही हुआ। लेकिन प्रयास नहीं छोड़ा, चौथी बार ट्राई किया तो ऑरेंज रसगुल्ला सही तरीके से बनकर तैयार हो गया। जिसके बाद उन्होंने ग्राहक को 2 किलो ऑरेंज रसगुल्ले तैयार करके दिए। यहीं से इस सफर की शुरुआत हुई।

अमेजिंग टेस्ट, मुंह में घुल जाता है
स्वीट्स शॉप पर ऑरेंज रसगुल्ले लेने पहुंचे एक ग्राहक सुनील कुमार ने बताया कि रसगुल्ला मुंह में रखते ही घुल जाता है। कहीं और नहीं मिलता, इसलिए वे यहां केवल ऑरेंज रसगुल्ला लेने ही आते हैं। गर्मियों में इसे फ्रीज में ठंडा कर खाना बेहद पसंद है।

आउटडोर कैटरिंग से मार्केटिंग
अशोक जैन ने बताया कि ऑरेंज रसगुल्ला आमतौर पर राजस्थान में कहीं नहीं बनता। जब भी उन्हें आउटडोर कैटरिंग का काम मिलता है तो पार्टी को ब्रेकफास्ट में ऑरेंज रसगुल्ले रखने का आइडिया देते हैं, ताकि ये स्वाद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके। इसका फायदा भी मिल रहा है, अब लोग माउथ पब्लिसिटी से ही उनकी शॉप तक पहुंचने लगे हैं। गर्मियों में डिमांड ज्यादा रहती है।

आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का उत्तर...

240 रुपए किलो है भाव
ऑरेंज रसगुल्ले का टेस्ट संतरे जैसा होता है। एक किलो रसगुल्ले का भाव 240 रुपए है। रोजाना 25 किलो ऑरेंज रसगुल्ले आउटडोर कैटरिंग और शॉप पर बिक जाते हैं। उन्होंने बताया कि 2 दिन से ज्यादा इसे रखा नहीं जाता। क्योंकि 2 दिन से ज्यादा रखने पर इसमें खट्टापन आ जाता है और यह खराब हो जाते हैं।

ऐसे कर सकते हैं घर पर तैयार, जानिए झटपट रेसिपी
20 लीटर गाय का दूध लेकर उसे बॉयल करते हैं। इसके बाद इसे ठंडा करते हैं और छान लेते हैं। फिर छेने का खट्टा पानी डालकर दूध को फाड़ देते हैं। गरम ज्यादा होने पर इसे फिर से ठंडा करते हैं। छेने को कपड़े में डालकर इसका पूरा पानी निकाल देते हैं। इसके बाद 25 ग्राम संतरे के छिलके मिक्स करते हैं। इसके बाद इसके गोले बना लिए जाते हैं।
इन गोलो को 40 किलो शक्कर की चासनी में डाला जाता है, जिसे 25 मिनट तक बॉयल करते है। इसके बाद एक भगोने में चाशनी और गर्म पानी लेकर इनको डाल दिया जाता है। इसको लुक देने के लिए रेड ऑरेंज कलर भी डालते हैं।

रसगुल्ला, जिसके लिए झगड़ पड़े दो राज्य
रसगुल्ला एक ऐसी मिठाई है, जिसके पीछे दो स्टेट भी आपस में लड़ पड़े। कोलकाता और ओडिशा दोनों इस बात पर काफी सालों से लड़ते आए कि रसगुल्ला कहां का है? यह लड़ाई इतनी लंबी चली कि कोर्ट तक पहुंची। फिर कोर्ट ने जियोग्राफिक इंडिकेशन के जरिए इसे सुलझाने का काम किया।

ओडिशा के लोग दावा करते हैं कि रसगुल्ले का इतिहास वहां 700 साल से भी पुराना है। यह मिठाई भगवान जगन्नाथ ने रथ यात्रा के दौरान एक रस्म का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। वहीं, पश्चिम बंगाल का दावा है कि रसगुल्ला उनके यहां 1868 में कलकत्ता के सज्जन नबीन चंद्र दास ने बनाया था। आखिरकार बंगाल और ओडिशा के बीच कानूनी लड़ाई साल 2017 में समाप्त हो हुई, जब 14 नवंबर को पश्चिम बंगाल को रसगुल्ला पर GI टैग प्रदान किया गया।

राजस्थानी स्टाइल वाला सिगड़ी पापड़
अमजेर के CSM मॉल के सामने पंचशील में 'द टपरी' में राजस्थानी चीज और पनीर मसाला खींचा (पापड़) लोगों में काफी पॉपुलर हो रहा है। 35 से 45 रुपए की रेंज में खिंचा खाने वाले लोग यहां उमड़ रहे हैं। इसका आईडिया ऑनर को घर से ही मिला जब मालिक ने कुछ नया करने की सोचा तो उन्होंने खींचे में विशेष तरह के मसालों के साथ पब्लिक को सर्व किया तो बहुत खूब पसंद आने लगा।

खास बात यह है कि इसे सिगड़ी पर तैयार किया जाता है। वर्षा जैन ने बताया कि अट्रेक्शन और अच्छे स्वाद के लिए सिगड़ी का उपयोग किया जाता है। राजस्थानी कल्चर को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह यूनिक पहल की है। खींचे के ऊपर धनिया चटनी और लाल मिर्च चटनी, खीरा काकड़ी, टमाटर, प्याज, हरा धनिया, बारीक़ नमकीन और मसाले से तैयार किया जाता है। वर्षा जैन ने बताया कि उनके घर पर ये पापड़ रूटीन में तैयार करते थे। कुछ नया करने के लिए ये ट्राइ किया, लोंगो ने पसंद किया।

अजमेर में ही मिलती है मैंगो कलाकंद
भले ही कलाकंद के मामले में अलवर फेमस हो, लेकिन फलों के राजा आम की सबसे बेहतरीन किस्म से तैयार होने वाली मैंगो कलाकंद केवल अजमेर में ही मिलती है। करीब 57 साल पहले एक हलवाई ने प्रयोग किया और एक लाजवाब स्वाद बन गया है। दीवाने विदेशों तक हैं।

मैंगो कलाकंद को बनाने का श्रेय हलवाई पन्ना सिंह को जाता है। करीब 57 साल पहले 1965 में पन्ना सिंह ने ही छोटी सी दुकान से इसकी शुरुआत की थी। सबसे पहले उन्होंने दूध को फाड़कर कलाकंद तैयार किया, लेकिन पन्ना सबसे यूनिक मिठाई तैयार करना चाहते थे। तब उन्होंने कलाकंद के स्वाद पर ही कई प्रयोग किए। पन्ना ने सबसे मीठे और बेहतरीन किस्म के अल्फांसो आम मंगवाए और नई मिठाई तैयार की। नाम रखा मैंगो कलाकंद।

कलाकंद में मैंगो के स्वाद ने लोगों इस कदर दीवाना बनाया कि डिमांड बढ़ने लग गई। तब पन्ना सिंह से ही कई हलवाइयों ने इसे बनाने का तरीका सीखा। अजमेर में करीब 100 से ज्यादा मिठाइयों की दुकान है, लेकिन मैंगो कलाकंद केवल चुनिंदा दुकानों पर ही बनता है। इसकी वजह है शहर की करीब चार-पांच दुकानों के पास ही मैंगो कलाकंद तैयार करने वाले कारीगर हैं, जो सही रेसिपी जानते हैं।

ये है जोधपुर के विजय रेस्टोरेंट का 'प्रेम-प्याला'। जैसा नाम-वैसा स्वाद, जो भी इस डिश को खाता है वास्तव में उसको इस डिश से प्यार हो जाता है। यही कारण है कि इसका नाम भी प्रेम प्याला रखा गया है। प्रेम प्याला में फ्रूट क्रीम, ड्राईफ्रूट से बनी सीक्रेट क्रीम और रबड़ी की लेयर डालकर एक मिक्सचर होता है।

रेस्टोरेंट के मालिक विजय भाटी बताते हैं कि उनके पिताजी जवरी लाल भाटी ने 1975 में यहां एक छोटे से ठेले से जायका बेचना शुरू किया था, जो आज एक रेस्टोरेंट बन गया है। यही कारण है कि लगभग 47 साल बात भी स्वाद बरकरार रहा है। प्रेम प्याला नाम यहां आने वाले लोगों ने ही रखा है। शुरुआती दौर में पिता जी के पास जो कस्टमर आते थे, वह कहते थे आपके यहां सब कुछ स्वादिष्ट है। आप प्रेम से जो परोसोगे वही खा लेंगे। जोधपुर में लंच या डिनर के बाद मीठा खाने के बहुत लोग शौकीन हैं।

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