वक्त के साथ रहन सहन बदला तो खान-पान और उसका स्वाद भी बदलता चला गया, लेकिन राजस्थान के अजमेर में बनने वाले खास किस्म के हलवे का 500 साल पुराना जायका आज भी बरकरार है। सोहन हलवा, जो कभी मुगल सल्तनत के बादशाह अकबर की पसंदीदा मिठाई में शुमार था। राजवाड़ों के शाही खामसानों में इसे बनाया जाता था। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको ले चलते हैं अजमेर में सैकड़ों सालों से बन रहे सोहन हलवे की यात्रा पर।
दुनियाभर से अजमेर आने वाले जायरीन भी दरगाह पर जियारत के बाद अपने साथ सोहन हलवा ले जाना नहीं भूलते। इस मुगलकालीन रेसिपी का सबसे ज्यादा चलन करीब 100 साल से भी पुराना है। इसकी खासियत यह है कि यह मिठाई एक से दो माह तक खराब नहीं होती। विदेशों में इसका एक्सपोर्ट किया जाता है। आज इसका कारोबार 100 करोड़ रुपए सालाना से भी ज्यादा है।
ऐसे तैयार होता है सोहन हलवा
सोहन हलवा एक ट्रेडीशनल रेसिपी है, जो मैदा, दूध और मेवा को मिला कर तैयार किया जाता है। इसे बनाने में समय कुछ ज्यादा लग सकता है, मगर यह खाने में बहुत टेस्टी होता है। कारीगर मिठूराम ने बताया कि सबसे पहले गेहूं को भिगोया जाता है और उसे अंकुरित करते हैं। करीब 7 से 8 दिन बाद अंकुरित गेहूं को धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद इसे पीसकर आटा बना लेते हैं। इस आटे में मैदा, घी और शक्कर मिलाकर उसे प्रोसेस करते हैं।
स्वाद के लिए ड्राइफ्रूट्स का उपयोग
सोहन हलवे को डेकोरेट और स्वाद के लिए इसमें ड्राइफ्रूट्स का उपयोग भी करने लगे हैं। जिसमें काजू, बदाम और पिस्ता डाला जाता है। इसमें केसर का सोहन हलवा भी तैयार होने लगा है। इसे हार्ट, फ्लोवर, स्क्वायर और राउंड शेप दिया जाता है। इसके लिए मटेरियल को निर्धारित सांचों में डाला जाता है।
100 करोड़ से ज्यादा का कारोबार, 3000 को रोजगार
अजमेर में करीब तीन सौ से ज्यादा कारोबारी सोहन हलवा बना रहे हैं, जिनकी बदौलत 3000 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। सोहन हलवा सवा सौ रुपए से शुरू होकर 500 सौ रुपए किलो तक के भाव में मिलता है। वैसे तो इसे देशी घी में बनाया जाता है, लेकिन अलग-अलग भावों के मुताबिक इसमें पाम ऑयल या वनस्पति घी का उपयोग भी होता है।
घर बैठे मिल जाता है सोहन हलवा
सोहन हलवे का व्यापार करने वाले अनिल केसवानी ने बताया कि पिछले पांच सालों में इसका ऑनलाइन कारोबार भी बढ़ा है। अजमेर के कई कारोबारी ऑनलाइन फूड डिलीवरी ऐप पर लिस्टेड हैं, जो डिमांड के अनुसार इसे डिलीवर करते हैं।
अजमेर से बाहर देश में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, बेंगलुरु और विदेशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में इसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रोडक्शन अजमेर में ही होता है। यहीं से विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाता है।
अकबर को इसलिए पसंद था सोहन हलवा
सोहन हलवा बनाने में घी का उपयोग ज्यादा होता है। इससे मिठाई ज्यादा दिनों तक खराब नहीं होती। कहा जाता है कि जब अकबर किसी लंबी यात्रा पर जाता था तो अपने और लश्कर के लिए दो-तीन महीने तक खराब नहीं होने वाली खाद्य सामग्री रखता था। इसमें सोहन हलवा भी शामिल होता था। आज अजमेर आने वाले जायरीन ख्वाजा की दरगाह पर जियारत के बाद तबर्रुक (आशीर्वाद) के तौर पर इस सोहन हलवे को ले जाना नहीं भूलते।
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