दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा पर अजमेर जिले के केकड़ी में लोगों ने एक-दूसरे पर जमकर पटाखे फेंके। दशकों से चली आ रही परंपरा के नाम पर पटाखों के हमले में एक पुलिसकर्मी सहित 10 लोग बुरी तरह झुलस गए। पुलिस की रोक के बावजूद सैकड़ों लोगों की भीड़ एक-दूसरे पर रॉकेट-बमों से हमला करती रही। इस जानलेवा खेल को रोकने के लिए यहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था, लेकिन सख्ती बेअसर दिखी।
दरअसल, केकड़ी में गोवर्धन पूजा की रात को घास भैरव की सवारी के दौरान लोग एक दूसरे पर पटाखे फेंक कर अंगारों की होली खेलते हैं। यह करीब 300 साल पुरानी परंपरा है। इसमें पहले सवारी निकाली जाती है, इसके बाद आमने-सामने मौजूद दो पक्षों के लोग एक-दूसरे पर पटाखे और अंगार फेंकते हैं।
बुधवार रात करीब नौ बजे जब सवारी निकली तो स्थानीय लोग आमने-सामने हो गए और पटाखों की होली खेलने लगे। यह लोग एक-दूसरे पर रॉकेट और बम बरसाने लगे। इस आतिशबाजी में 10 से ज्यादा लोग झुलस गए। हालांकि, इनकी हालत इतनी गंभीर नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इस खेल को खेल की तरह लेना चाहिए, न कि किसी को विशेष नुकसान पहुंचाना चाहिए।
इस बीच घास भैरव की सवारी सदर बाजार से शुरू होकर लोढ़ा चौक, माणक चौक,सुरजपोल गेट,माली मौहल्ला,भैरु गेट,बडा गुवाड़ा,सरसड़ी गेट,खिड़की गेट होते हुए रात करीब 12 बजे पुन: सदर बाजार पहुंचकर संपन्न हुई। केकड़ी थाना प्रभारी राजवीरसिंह ने बताया कि सवारी में शांति व कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस फोर्स लगाई गई। लोग एक दूसरे पर पटाखे न फेंके, इसलिए उन्हें दिनभर समझाया भी गया था।
इस दौरान जुवाड़िया मौहल्ला स्थित एक किराना स्टोर में आग लग गई। आग से नारियल व काउंटर सहित अन्य सामान जलकर राख हो गए। इसी तरह मंगल विहार काॅलोनी में भी आग लग गई। घटना की जानकारी मिलने पर फायर ब्रिगेड मौके पर पहुंची और आग पर काबू पाया।
ऐसे शुरू हुआ खतरनाक अंगारों का खेल
बताया जाता है कि घास भैरव की सवारी निकालने की परंपरा 300 वर्ष से अधिक पुरानी है। केकड़ी कस्बे में गणेश प्याऊ के समीप से घास भैरव की सवारी निकाली जाती है, जो पुराने कस्बे में घूमती हुई वापस देर रात तक गणेश प्याऊ के समीप पहुंचती है। घास सवारी खींचने के लिए बैल शामिल होते हैं। बैलों को हरकत में लाने के लिए उनके पैरों में पटाखे फोड़े जाते थे।
पिछले ढाई दशक से इस परंपरा का रूप बदरंग होता चला गया। अंगारों का यह खेल रात के अंधेरे में होता है। घास भैरव की सवारी में अब कस्बे की लोग ही नहीं बल्कि आसपास क्षेत्र के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में भाग लेने लगे हैं। इस कारण लोगों की संख्या भी काफी रहती है।
((इनपुट-मनोज गुर्जर, केकड़ी)
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