सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स का झंडा शान औ शौकत के साथ बुधवार को दरगाह के बुलंद दरवाजे पर हजारों लोगों की मौजूदगी में चढ़ा दिया गया। इसके साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरूआत हो गई। झंडे की रस्म में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की। इस दौरान पुलिस व सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहे।
हिजरी संवत के जमादिल आखिर महीने की 25 तारीख को देखते हुए अस्र की नमाज के बाद झंडे के जुलूस की शुरुआत दरगाह गेस्ट हाउस से हुई। सैयद मारूफ चिश्ती की सदारत में और गौरी परिवार के फखरुद्दीन गौरी की अगुवाई में जुलूस रवाना हुआ। इस दौरान पुलिस बैंड के वादक सूफियाना कलामों की धुनें बिखेर रहे थे। शाही कव्वाल और साथी भी मनकबत के नजराने पेश करते हुए चल रहे थे। जुलूस के दौरान बड़े पीर साहब की पहाड़ी से तोप के गोले दागे जा रहे थे।लंगर खाना गली, नला बाजार और दरगाह बाजार से होते हुए जुलूस को दरगाह में ले जाया गया। जुलूस में खासी तादाद में अकीदतमंद शरीक थे। दरगाह परिसर में भी बड़ी संख्या में आशिकान ए ख्वाजा मौजूद थे। रोशनी के वक्त से पूर्व झंडे को बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया गया। इधर, गौरी परिवार के सदस्य आस्ताना शरीफ पहुंचे और अकीदत का नजराना पेश किया। इस दौरान पुलिस व प्रशासन की ओर से भी इंतजाम किए गए।
79 वर्षों से अदा कर रहा गौरी परिवार यह रस्म
भीलवाड़ा का गौरी परिवार 79 वर्षों से यह रस्म निभा रहा है। झंडा चढ़ाने की परंपरा 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्ला अलैह ने शुरू की थी। इसके बाद 1944 से भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार यह रस्म अदा कर रहा है। गौरी परिवार के लाल मोहम्मद गौरी ने 1944 से 1991 तक और उनके बाद मोइनुद्दीन गौरी ने 2006 तक यह रस्म निभाई। इसके बाद फखरुद्दीन गौरी ये रस्म अदा कर रहे हैं।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.