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सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय काॅलेज अजमेर के उर्दू विभाग के तत्वावधान में मंगलवार काे एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। उर्दू शायरी में वतन परस्ती विषय पर आधारित वेबिनार में देशभर के मशहूर शायराें ने गालिब से लेकर वर्तमान दाैर के बड़े शायराें के शेर साझा करके अपनी बात रखी और वतन परस्ती के लिहाज से उर्दू शायरी का किरदार पेश किया। वेबिनार के संयोजक डॉ. काइद अली खान ने विषय और वक्ताओं की जानकारी साझा की। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. दीपक मेहरा और उच्च शिक्षा विभाग की अजमेर संभाग की सहायक निदेशक डॉ. सुनीता पचौरी ने मेहमानों का स्वागत किया। डाॅ. सैयद सादिक अली ने उर्दू शायरी के इतिहास और वतन परस्ती विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने इक़बाल चकबस्त, राम प्रसाद बिस्मिल सहित कई क्रांतिकारी शायराें के शेर काे पढ़ा और उनके बारे में जानकारी भी दी। उन्हाेंने बहादुर शाह ज़फर का यह शेर भी पढ़ा कि ‘न था शहर दिल्ली में था एक चमन, कहूं किस तरह था यां अमन, फ़क़त अब तो उजड़ा दयार है...’।
इसी तरह एक अन्य वक्ता दिल्ली की डॉ. नईमा जाफरी ने भी वतन परस्ती काे बयां करते शेराें काे पढ़ा। उन्हाेंने ‘तेरी इक मुश्तेखाक के बदले, लूं न हरगिज़ अगर बहिश्त मिले..’। डॉ. अज़रा नक़वी ने खुद का शेर पढ़ते हुए कहा कि ‘हज़ारों साल की तारीख के अमीन हैं हम, इसी यकीन पे हिन्दोस्तान में रहते हैं हम..’। इस माैके पर लालचंद तिलक का यह शेर भी पढ़ा गया कि ‘दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की ख़ुश्बू, मेरी मिट्टी से भी ख़ुश्बू-ए-वफ़ा आएगी..’। आखिर में वेबिनार सचिव डॉ फ़रखंदा ने आभार जताया।
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