सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 811वें उर्स का झंडा बुधवार शाम को बुलंद दरवाजे पर चढ़ेगा। इसके साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरूआत हो जाएगी। झंडा लेकर भीलवाड़ा का गौरी परिवार यहां पहुंचा है। चांद रात को यानी 22 जनवरी को दरगाह में जन्नती दरवाजा जियारत के लिए खोला जाएगा। रजब का चांद दिखाई देने पर 22 की रात से ही उर्स की विधिवत शुरूआत हो जाएगी, अन्यथा 23 की रात से उर्स की रसुमात शुरू होंगी।
हर साल जमादिल आखिर महीने की 25 तारीख को गरीब नवाज के सालाना उर्स का झंडा बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया जाता है। गरीब नवाज की दरगाह के बुलंद दरवाजे पर सालाना उर्स का झंडा चढ़ने के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत मानी जाती है। आज अस्र की नमाज के बाद गरीब नवाज गेस्ट हाउस से जुलूस रवाना होगा। पुलिस बैंड सूफियाना कलाम पेश करेगा। 18 जनवरी से मजार शरीफ की खिदमत का वक्त बदल जाएगा। झंडे की रस्म बुधवार शाम को भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी के पोते फखरुद्दीन गौरी, सैय्यद मारूफ अहमद साहब नबीरा मुतवल्ली सैय्यद असरार अहमद साहब की सदारत में संपन्न कराई जाएगी। परंपरा के अनुसार अस्र की नमाज के बाद दरगाह गेस्ट हाउस से झंडे का जुलूस शुरू होगा। लंगर खाना गली, नला बाजार और दरगाह बाजार होते हुए रोशनी की दुआ से पहले जुलूस दरगाह में पहुंचेगा। बाद में झंडा बुलंद दरवाजे पर चढ़ा दिया जाएगा। इस रस्म में शरीक होने के लिए आशिकान ए ख्वाजा यहां पहुंचेंगे।
78 वर्षों से अदा कर रहा गौरी परिवार यह रस्म
भीलवाड़ा के गौरी परिवार के सदस्य व वर्तमान में झंडे की रस्म अदा करने वाले फखरुद्दीन गौरी ने बताया कि उनका परिवार 78 वर्षों से यह रस्म निभा रहा है। झंडा चढ़ाने की परंपरा 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्ला अलैह ने शुरू की थी। इसके बाद 1944 से भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार यह रस्म अदा कर रहा है। गौरी परिवार के लाल मोहम्मद गौरी ने 1944 से 1991 तक और उनके बाद मोइनुद्दीन गौरी ने 2006 तक यह रस्म निभाई। इसके बाद फखरुद्दीन गौरी ये रस्म अदा कर रहे हैं।
साल में चार बार खुलता है जन्नती दरवाजा
सालभर में जन्नती दरवाजा चार बार खोला जाता है। लेकिन उर्स में सबसे ज्यादा 6 दिन के लिए खुलता है। इसके बाद एक दिन ईद उल फितर के मौके पर, एक दिन बकरा ईद के मौके पर और एक दिन ख्वाजा साहब के गुरु हजरत उस्मान हारूनी के सालाना उर्स के मौके पर यह दरवाजा खुलता है। परंपरा के अनुसार जन्नती दरवाजा उर्स में आने वाले जायरीन के लिए खोला जाता है। इसी परंपरा के अनुसार यह दरवाजा कुल की रस्म के बाद 6 रजब को बंद कर दिया जाता है।
साल भर बांधते हैं मन्नत का धागा
जन्न्ती दरवाजे पर साल भर जायरीन मन्नत का धागा बांधते हैं। जन्नती दरवाजा खुलने के बाद से ही जायरीन की आवक बढ़ जाती है। दरगाह जियारत को आने वाले जायरीन जन्नती दरवाजा से जियारत करने के लिए बेकरार नजर आते हैं। जायरीन सिर पर मखमल की चादर और फूलों की टोकरी लिए अपनी बारी का इंतजार करते हैं।
सत्तार बादशाह ने लाल मोहम्मद गौरी को सौंपी थी झंडे की जिम्मेदारी
सैयद रऊफ चिश्ती ने बताया कि आजादी से पहले सत्तार बादशाह गरीब नवाज के उर्स का झंडा चढ़ाते थे। वह अकबरी मस्जिद में ही रहते थे और उनके मुरीद हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही मुल्कों में थे। मुल्क को आजादी मिलने के बाद सत्तार बादशाह पाकिस्तान में ही रह गए, वहीं उनकी मजार है। उन्होंने अपने मुरीद भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी को झंडे की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा, तब से ही यह झंडा भीलवाड़ा का गौरी परिवार चढ़ाता आ रहा है।
पीढ़ी दर पीढ़ी निभाई जा रही है परंपरा
चौंकाने वाली बात यह है कि ख्वाजा गरीब नवाज का झंडा एक हिंदू परिवार कई दशकों से सिलता आ रहा है। सैयद रऊफ चिश्ती ने बताया कि सबसे पहले ओमप्रकाश के बुजुर्गों में प्यारेलाल ने झंडा सिलने की शुरुआत की थी। उस समय उनकी दुकान दरगाह के पास ही थी। उसके बाद से हर साल यह झंडा उन्हीं के परिवार की ओर से सिला जाता है। उनके बाद गणपत लाल ने झंडे की सिलाई की। अब पुत्र ओमप्रकाश इस झंडे को सिलते हैं। ओमप्रकाश इसे अपने लिए फख्र की बात मानते हैं। पुष्कर रोड पर उनकी टेलरिंग की दुकान है।
फौजिया की तोप की गर्जना के बिना उर्स की रसूखात अधूरी है
उर्स का झंडा अजमेर की फौजिया के तोप दागने के दौरान ही बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया जाएगा। देश में अजमेर ही ऐसा शहर है जहां एक युवती धार्मिक रस्मों के लिए तोप दागती है। झंडे के मौके पर ही नहीं, बल्कि रजब का चांद दिखाई देने, जुमे की नमाज और कुल की रस्म के दौरान भी फौजिया ही तोप दागेगी। फौजिया की तोप की गर्जना के बिना उर्स की रसूखात अधूरी हैं। गरीब नवाज के उर्स के झंडे का जुलूस अस्र की नमाज के बाद दरगाह के पास स्थित गरीब नवाज गेस्ट हाउस से शुरू होगा। जुलूस की शुरुआत फौजिया के बड़े पीर साहब की पहाड़ी से तोप दागने के साथ ही होगी। 25 तोपें दागी जाएंगी। तोपों की सलामी के बीच ही उर्स का झंडा बुलंद दरवाजे तक पहुंचेगा।
सातवीं पीढ़ी में मिली विरासत
फौजिया का परिवार पिछली सात पीढ़ियों से तोप चलाने के काम को अंजाम देता आ रहा है। अब यह काम फौजिया कर रही है। उर्स के चांद पर भी गरजेगी तोप: रजब महीने का चांद होते ही तोप के गोले दागे जाएंगे। फौजिया काम बचपन से ही कर रही है। एक ओर जहां लोग ख्वाजा साहब की खिदमत को तरसते हैं, वहीं दरगाह के ठीक सामने वाली बड़े पीर साहब की पहाड़ी पर रहने वाली फौजिया खान को बचपन से ही ख्वाजा साहब की खिदमत का शर्फ हासिल हो रहा है।
पढे़ं ये खबरें भी...
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.