28 साल के डॉ. मनीष सैनी ने प्राइवेट हॉस्पिटल कैंपस के रेजिडेंशियल फ्लैट में सुसाइड कर लिया। मौके से 7 पेज का सुसाइड नोट मिला है। उसमें लिखा है-
अपने फेल्योर से थक चुका हूं, चारों तरफ से घिर चुका हूं। रात-रात भर नींद ही नहीं आती थी। समझ नहीं आता क्या करूं?
सुसाइड नोट में मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया है। डॉ. मनीष ने खुद को बेहोशी की दवा का इंजेक्शन लगाया है। उसके रूम से इंजेक्शन की खाली पैकिंग मिली है। पुलिस ने इसे जब्त कर लिया है। मामला अलवर के बहरोड़ का है।
गुरुग्राम के फरुखनगर के रहने वाले डॉ. मनीष 6-7 महीने पहले ही यहां के कैलाश पार्क हॉस्पिटल में लगे थे। उनका ट्रांसफर गुरुग्राम से यहां हुआ था। बहरोड थाना के एसआई प्रदीप कुमार ने बताया कि मंगलवार सुबह 6.30 बजे सूचना मिली कि प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर ने सुसाइड किया है।
उसने अस्पताल परिसर में बने रेजिडेंशियल फ्लैट में खुद के लेफ्ट हैंड में इंजेक्शन लगाकर सुसाइड कर लिया। यह इंजेक्शन मरीजों को बेहोश करने के काम आता है। यह तभी लगाया जाता है जब मरीज वेंटिलेटर पर हो। बिना वेंटिलेटर के लगाने पर यह जानलेवा हो सकता है।
एसआई प्रदीप कुमार ने बताया कि सोमवार रात डॉक्टर मनीष की नाइट ड्यूटी थी। मंगलवार सुबह मनीष को एक मीटिंग में जाना था। अस्पताल स्टाफ ने मनीष को जगाने के लिए दरवाजा खटखटाया। काफी देर तक उसने नहीं खोला तो दरवाजा तोड़ा। तब वह अचेत मिला। जांच के बाद डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। कमरे में एक डायरी मिली, जिसमें 7 पेज का सुसाइड नोट था।
अस्पताल की तरफ से डॉक्टर के बड़े भाई पवन को हरियाणा सूचित किया गया था। उन्हें यह बताया गया था कि मनीष की तबीयत ठीक नहीं है। यहां आने के बाद भाई को सुसाइड की जानकारी हुई।
अलवर जिला अस्पताल के डॉ. आदर्श अग्रवाल ने कहा कि शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं मिले हैं। देखने पर यह खुद को इंजेक्शन लगाकर सुसाइड करने का मामला लगता है। बाकी एफएसएल और रिपोर्ट से चीजें साफ होंगी।
डॉ. मनीष नेशनल हाईवे-48 स्थित हॉस्पिटल कैलाश पार्क के परिसर में बने फ्लैट में रहते थे। उनके साथ 2 और डॉक्टर रहते थे। दोनों डॉक्टर छुट्टी पर गए हैं। डॉ. मनीष कुमार सैनी का ट्रांसफर पार्क अस्पताल गुड़गांव से बहरोड़ हुआ था। डॉ. मनीष की ड्यूटी रोजाना सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक रहती थी। मनीष अस्पताल में प्रबंधन का काम देखते थे।
डॉक्टर के परिवार में बड़ा भाई पवन, माता- पिता हैं। बड़ा भाई इंजीनियर है। पिता लालसिंह सैनी एक निजी कंपनी में काम करते हैं। मां हाउस वाइफ हैं।
सुसाइड नोट में क्या लिखा, पढ़िए...
खत्म में हो रहा हूं मैं... अपनी कहानी में !
हो सके तो मुझे माफ कर देना आप सभी।
मैं अपनी जिंदगी के फेल्योर से परेशान था। कब तक सहन करता। जो अब करूंगा, वो पहले ही कर लेना चाहिए था। बस रुका था तो लाइफ इंश्योरेंस की वजह से। उसको दिसंबर में कंपलीट होना था। उसके क्लेम से कुछ हेल्प मिल जाती आपको। लेकिन क्या करूं अब नहीं रहा जाता। इतना फेल्योर अब सहन नहीं हो रहा। ऐसी बात नहीं है कि मैंने मेहनत नहीं की। बहुत मेहनत की है। फिर भी मुझे उस मेहनत का फल नहीं मिला। मुझे कामयाब बनाने में आप लोगों ने सब दांव पर लगा रखा था। मुझे याद है वह सब...घर में कोई सामान नहीं आता था, जितनी इनकम थी, सब मेरी फीस और पीजी में खर्च हो जाती थी। आप सबके इतना कुछ करने के बाद भी मैं आपको उसका रिटर्न नहीं दे पाया।
बहरोड़ आने के बाद अकेलापन मेरी परेशानियों को ट्रिगर करने लगा था। रात -रात भर नींद ही नहीं आती थी। समझ नहीं आता क्या करूं। गुड़गांव था तो घर जाने के बाद मूड ठीक हो जाता था, फिर यहां भी एक फैमिली मिल गई थी। उनके साथ मेरी थोड़ी स्ट्रेस कम हो गई।
अब तो कलाम और अभिषेक भी आ गए थे मेरे पास। सब ठीक सा लगने लगा था। इसलिए मैं जब घर जा आता था तो कभी-कभी मूड ठीक हो जाता था। घर पहुंच कर मुझे बस एक ही डर लगता था कि आप सब के ऊपर क्या बीतेगी जब मैं चला जाऊंगा। इसलिए मैं किसी से बात नहीं करता था। ताकि आप लोगों का अटैचमेंट थोड़ा कम हो जाए। फिर भी आप लोगों का प्यार कम नहीं हुआ। कहते हैं न..अपने तो अपने ही होते हैं।
आप सबको मुझसे शिकायतें थी, लेकिन कभी बताया नहीं, बोला नहीं ये सोचकर कि मुझे बुरा न लग जाए। मैं सब समझता था। अपने फेल्योर से थक चुका हूं, चारों तरफ से घिर चुका हूं। एक स्मोकिंग की गंदी लत लग चुकी थी, जो अब छूटने वाली नहीं है। ड्रिंक और स्मोकिंग की लत से घर खराब हो इससे अच्छा है खुद को ही खत्म कर लेना।
मुझे पता है मैं सोच भी नहीं सकता कि आप सबको कितना दुख होगा मेरे जाने के बाद। लेकिन मैं मजबूर हूं। कोई और ऑप्शन या उम्मीद नहीं है। पवन (बड़ा भाई) अब सब कुछ तुझे संभालना है। फाइनेंशियली भी और वैसे भी, तुझे अकेला छोड़ कर जा रहा हूं। माफ करना मेरे भाई, बड़ा सेक्रिफाइज किया है तूने मेरे लिए।
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