साल 1995 का समय...अलवर से करीब 70 किलोमीटर दूर पहाड़ी गांव। यहीं से 13 किलोमीटर की दूरी पर है जैनपुरबास गांव। इस गांव की पहचान कभी पहलवानी के किस्सों से हुआ करती थी। दावा किया जाता था कि इस गांव के पहलवान दंगल में उतर गए तो जीत कर ही आएंगे और हार गए तो घर नहीं लाैटेंगे।
लेकिन 24 साल बाद यह गांव बदल चुका है। वजह है गैंगवार और यहां रहने वाले गैंगस्टर्स। यहां अब पहलवानी से ज्यादा गैंगवार के किस्से सामने आने लगे। गांव का माहौल बदल गया था। 6 जनवरी 2019 के बाद ये गांव दोबारा चर्चा में आया। कारण था बहरोड़ में दिन दहाड़े गैंगस्टर लादेन पर हुई फायरिंग। फायरिंग करने वाले आरोपी जसराम गुर्जर की गैंग के बदमाश थे।
फायरिंग की इस घटना के बाद दैनिक भास्कर की टीम पहाड़ी और जैनपुरबास गांव पहुंची। गांव के लोगों ने बताया कि अब यहां सब कुछ बदल गया है। बच्चे पहलवानी की जगह गैंगवार में यकीन लेने लगे हैं। अब यह पहलवानों की जगह गैंगस्टर्स का अड्डा बन चुका है।
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गांव के लोगों ने बताया कि 2014 तक सब कुछ सही चलता आ रहा था। इन गांवों के पहलवानों ने न जाने कितने दंगल जीते होंगे, अब याद भी नहीं। कुश्ती की वजह से खेल का माहौल बना तो गांव से 200 से ज्यादा जवान सेना में भर्ती हो गए।
लेकिन, 2014 के बाद विक्रम उर्फ लादेन और जसराम गुर्जर के बीच दुश्मनी शुरू हुई तो सब कुछ बदल गया। 29 जुलाई 2019 को जसराम की गांव के बीच में गोली मार कर हत्या कर दी गई। उस दिन जसराम शिवजी के मंदिर में पानी चढ़ाने गया था। उसे सुबह 11 बजे गोली मार दी। इसका शक विक्रम उर्फ लादेन पर आया, जो पास पहाड़ी गांव का रहने वाला है।
पुलिस ने गांव के ही राजेंद्र सहित कुछ लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और लादेन जेल से छूट गया। इसी के बाद जैनपुरबास के जसराम गुर्जर व पहाड़ी गांव विक्रम उर्फ लादेन के बदमाशों की गैंग खड़ी हो गईं।
पहाड़ी गांव बहरोड़ से 10 KM दूर
पहाड़ी गांव बहरोड़ से 10 KM दूर है और 3 KM दूरी पर ही जैनपुरबास गांव है। जैनपुरबास के आस-पास इंडस्ट्रियल एरिया है। बताया जाता है कि इन फैक्ट्रियों से मंथली वसूली से गैंग खड़ी होने की शुरुआत हुई।
साल 2014 तक यहां जसराम गुर्जर का बोलबाला था। इस परिवार को गांव की राजनीति में भी दबदबा रहा है। आज भी जसराम गुर्जर की पत्नी ही जैनपुरबास गांव की सरपंच है। जसराम गुर्जर के खिलाफ भी लूट, मारपीट, धमकी व रंगदारी के अनेक केस दर्ज थे। धीरे-धीरे जसराम ने अपने समाज में पकड़ बना ली।
गांव वाले बोले- कुछ ने बदनाम कर दिया
गांव के बुजुर्ग लीला ने कहा कि हमारे गांव में पहलवानी के बहुत किस्से हैं। दूध व घी ही खाते थे। पहले एक-एक गांव में 500 पहलवान थे। अब गैंगवार के बाद गांव का नाम बदनाम हो गया है। रामकुमार ने बताया कि मैं भी पहलवान रहा हूं। पहले चार दंगल होते थे। पहलवानों में आपस में स्वस्थ मुकाबला होता था। पहलवानों के बीच गैंग बिल्कुल अलग है।
उन्होंने कहा- पहले तो पहलवान सज्जन होते थे। गरीब की मदद करते थे। कमजोर का साथ देते थे। गांव में कुछ ही लड़के हैं, जिनके कारण बदनामी हुई है। जिन्होंने कुछ गलत भी किया है। कृष्ण कुमार गुर्जर ने कहा, हमारी कुश्ती की परंपरा रही है। सैकड़ों साल से कुश्ती चली आ रही है। कुश्ती से खेलों में नाम हुआ है। अब भी गांव में 70 से अधिक पहलवान हैं। जो बड़े-बड़े दंगल में जाते हैं।
उन्होंने कहा - हमारे गांव के नेशनल व इंटरनेशनल गेम खेलते हैं। गैंगवार से गांव के लोगों को मतलब नहीं है। यह सही है कि कुछ युवा दिशा भटके हैं। दूसरे पहलवानों का मतलब नहीं है। गैंगस्टर व ग्रामीणों का आपस में टकराव नहीं है। कुछ युवाओं का आपस में टकराव हो सकता है।
पहाड़ी गांव के पुराने नामचीन पहलवान के नाम
बीरबल, पूरण, रामशरण, खुशीराम, लालाराम, भैरू पहलवान। ये ऐसे नाम हैं, जिनका कई गांवों में दबदबा था। बड़े दंगलों में इनकी कुश्ती देखने के लिए हजारों लोग पहुंचते थे। अब अकेले पहाड़ी गांव में कृष्ण, दिनेश, सचिन, महेश, रतीराम योगी, राजू, लाला व शीशराम जैसे काफी पहलवान हैं। सभी अभ्यास करते हैं। बड़े मैडल जीते हैं।
स्कूल-कॉलेज में रिंकू, संजय, हवा सिंह, विक्की, संदीप, नितिन शर्मा कौशल सोनी जेसे कॉलेज व स्कूल के अच्छे कुश्ती के पहलवान हैं, जिन्होंने बड़े मैडल जीते हैं। सचिन पहलवान ने स्टेट कॉलेज में गोल्ड जीता है। अब कॉलेज की तरफ से नेशनल खेलने की तैयारी में जुटा है। जैनपुरबास गांव में भी पहले बड़ी संख्या में पहलवान थे।
हार के बाद घर नहीं आते थे
गांव के पुराने लोगों ने बताया कि पहले पहलवान जीतने की जिद करते थे। किसी पहलवान से हार जाने पर घर छोड़कर दूर रहने लग जाते थे। जिद करते थे कि कुश्ती जीतने के बाद ही घर जाऊंगा। ऐसा अनेक बार होता था। यही नहीं लंबी कुश्ती होती थी। एक-एक घंटे पहलवान कुश्ती करते थे। बहुत बार तो पहलवान बेहोश होने तक लड़ते रहते थे, लेकिन हार नहीं मानते थे।
खेतों में अखाड़े, पेड़ों पर रस्से
पहाड़ी व जैनपुरबास गांव में आज भी खेतों में अखाड़े बने हैं। पहलवान कुश्ती का अभ्यास करते हैं। पेड़ों पर रस्से लटके हैं, जिन पर चढ़कर और उनके खींचकर पहलवान प्रैक्टिस करते हैं। गांव में कुश्ती के कारण पहलवानों को सेना में नौकरियां मिली हैं। ताकत के दम पर दौड़ में इन गांवों के युवा अव्वल आते रहे हैं। उसी कारण यहां करीब 200 से अधिक सेना में जवान हैं। एक सैनिक शहीद भी हुआ है।
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