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ठंड में ठिठुरता भारत का किसान, भारतीय लोकतंत्र को गरमारहट दे रहा है। सरकार द्वारा किसानों पर थोपे गए तीनों कानून, भारत के किसान-मजदूर व पूरे समाज के लिए उद्योगपतियों की लूट हेतु भारत के लोकतंत्र की फांसी है।
वर्तमान सरकार अपनी हठ धर्मिता के कारण दिल्ली के चारों तरफ बैठे किसानों की आवाज की अनसुनी कर रही है। 43 दिनों से यह किसान आंदोलन चल रहा है। सरकार से आठ दौर में हुई बातचीत से भी समाधान नहीं खोज पायी। खेत का किसान और सीमा पर जवान दोनों की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर हमारी सरकार की इस प्रकार की हठधार्मिता, राष्ट्रहित में नहीं है। राष्ट्रहित चाहने वाली सरकार, मजदूर किसान व जवान को प्राथमिकता देकर बहुत ही सरलता से समाधान ढूंढ सकती है। हमारे देश की अच्छी बात यह है कि, इस आंदोलन ने हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने की एक पहल की है। जबकि सरकार ने जाति, धर्म आदि में विभाजित करने के प्रयास किए। लेकिन मजदूर-किसान बंटा नहीं, जवान भी इनके साथ खड़ा है।
किसानों की और ज्यादा परीक्षा लेना, अब अच्छा नहीं होगा। अब सरकार को जल्दी से जल्दी एक बार किसानों की बात मानकर, चर्चा करके, जो किसान चाहते है, उसकी पूर्ति करने वाला कानून बना देना चाहिए। अच्छी सरकारें वे मानी जाती है, जो अपने लोक के अधीन रहकर तंत्र को चलाती है। तंत्र हमेशा लोक के नीचे रहता है, तभी लोकतंत्र बना रहता है। भारतीय लोकतंत्र को बनाए रखने हेतु मजदूर किसान-जवान को तीनों कानूनों द्वारा दी जाने वाली फांसी हटाना चाहिए। सरकार को इनसे मिलकर ,उनकी राय से नया कानून बना लेना अच्छा होगा।
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