पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
Install AppAds से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
मेडिकल कॉलेज डूंगरपुर से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए अच्छी खबर है कि उनको डेडबॉडी डिसेक्शन के लिए पहला देहदान मिल गया है। यह देह नीमच निवासी 64 वर्षीय वृद्धा की है और उसके परिजनों ने दान की है। वृद्धा की मौत डूंगरपुर शहर के शास्त्री कॉलोनी में उसकी पुत्री के घर हुई थी। वृद्धा जैन समाज के श्वेतांबर स्थानकवासी है।
वृद्धा की इच्छा पर उसके परिजनों ने देहदान किया है। मेडिकल कॉलेज को यह पहला देहदान होने के साथ ही शहर के ही 15 अन्य लोगों ने उनकी मौत के बाद देहदान करने का शपथ-पत्र दिया है। वर्ष 2017 में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के समय मेंटर कॉलेज आरएनटी उदयपुर ने डेडबॉडी दी थी। इसके बाद पहले साल तीन डेडबॉडी और दूसरे साल चार डेडबॉडी मिली थी। इस वर्ष कॉलेज का तीसरा साल है तथा प्रथम वर्ष में 150 छात्रों का बैच आने वाला है। छात्र संख्या के हिसाब से देखें तो डेडबॉडी 15 होनी चाहिए थी, लेकिन सिर्फ 4 ही थी।
गुरुदेव कहते थे देहदान ही महादान, इसलिए मां ने जताई थी देहदान की इच्छा: प्रवीण
दिवंगत वृद्धा शांताबाई के पुत्र प्रवीण कुमार बंब ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनके गुरुदेव रामलालजी महाराज सा. अपने प्रवचनों में देहदान को महादान बताते हैं। मां गुरुदेव के प्रवचनों से काफी प्रेरित थी। मां ने उनकी देह को दान करने की इच्छा पूर्व में जता दी थी। करीब 20 दिसम्बर 2020 को मां की तबीयत खराब हुई तो मां ने डूंगरपुर में रहने वाली पुत्री सुनीता पत्नी अमिताभ नलवाया निवासी शास्त्री कॉलोनी के यहां चलने की इच्छा जताई।
वह मां को डूंगरपुर लेकर आया और मां का इलाज शुरू किया। मां ने 28 दिसम्बर को संथारा ले लिया। संथारा पूर्व कहा था कि मैं बच जाऊंगी तो भगवान महावीर स्वामी आराधना में लग जाऊंगी, नहीं बचूं तो मेरी देह को मेडिकल कॉलेज को दान कर देना। 36 घंटे के संथारा के बाद 30 दिसम्बर को उनका देहावसान हो गया। परिवार के अन्य लोगों ने भी देहदान करने की इच्छा जताई है। प्रवीण बताते हैं कि श्वेतांबर स्थानकवासी है तथा अहिंसा परमोधर्म जैन समाज की मूल है। दाह संस्कार के दौरान लकडिय़ों जलाने से कई जीवों की हत्या हो जाती है। मां का देहावसान संथारा से हुआ था ऐसे में उनका दाह संस्कार न करते हुए देहदान कर गुरुदेव के आदेश और मां की अंतिम इच्छा को पूरा किया है।
150 छात्रों के लिए होनी चाहिए 15 डेडबॉडी, उपलब्ध 4, देहदान के लिए 233714 पर संपर्क करें
इस साल मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस छात्रों के छात्रों का तीसरा बैच आने वाला है। सरकार द्वारा बढ़ाई गई सीटों के बाद इस बार फस्र्ट ईयर में 150 सीटों पर प्रवेश दिया गया है। 150 छात्रों को शरीर रचना और अंगों की सर्जरी सिखाने के 15 डेडबॉडी चाहिए लेकिन मेडिकल कॉलेज के पास सिर्फ चार है। इनमें से दो डेडबॉडी आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर से दो, स्थानीय पुलिस से एक और एक डेडबॉडी हाल ही दान में मिली है। 150 छात्रों को पढ़ाने के लिए 10-10 छात्रों का बैच बनाकर डेडबॉडी डिसेक्शन कराया जाता है। इस तरह से 150 छात्रों के लिए 15 डेडबॉडी होनी चाहिए लेकिन डेडबॉडी सिर्फ चार होने से करीब 40-40 छात्रों का बैच बनाकर पढ़ाया जाएगा, जो व्यवहारिक रूप से सही नहीं है।
क्योंकि एक डेडबॉडी के चारों तरफ 10 छात्रों को खड़ा कर देह को काटकर उसके अंगों की रचना को सिखाया जा सकता है लेकिन जब छात्रों की संख्या बढ़ती है तो डेडबॉडी से दूरी बढ़ती जाती है और छात्र मानव शरीर की रचनाओं की बारीकियों को समझ नहीं पाते हैं। ऐसे में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने जिलेवासियों से अपने परिजनों की प्राकृतिक मौत के बाद उनकी देह को दान करने की अपील की है। देहदान मिलने से मेडिकल कॉलेज में भविष्य के लिए बेहतर डॉक्टर तैयार किए जा सकें। देहदान के लिए मेडिकल कॉलेज डूंगरपुर के फोन नंबर 02964-233714, 9824381418 पर संपर्क कर सकते हैं।
कोई भी व्यक्ति स्वयं या फिर उसके परिजन कर सकते हैं देहदान, बस मौत के बाद देरी न करें और संक्रामक रोग से मृत्यु न हुई हो : डॉ. बाबेल, एनॉटोमी विभाग अध्यक्ष
मेडिकल कॉलेज के एनॉटोमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. हितेश बाबेल का कहना है कि कोई भी स्वयं या फिर उसकी मौत के बाद परिजन उसकी देहदान कर सकते हैं। इसके लिए प्रक्रिया भी काफी आसान है। व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में देहदान का एक शपथ पत्र मेडिकल कॉलेज या फिर किसी भी सरकारी अस्पताल को दे सकता है। मौत के बाद परिजनों द्वारा सूचना देने पर डॉक्टर आपके घर पहुंचकर देह को लेकर आ जाएंगे।
अगर शपथ पत्र नहीं दे पाते हैं तो मौत के बाद परिजन सरकारी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज को सूचना देकर बुला सकते हैं। देहदान के लिए व्यक्ति की मौत प्राकृतिक होनी चाहिए। दुर्घटना में क्षत-विक्षत शव, किसी संक्रामक बीमारी से मौत या फिर मेडिकोलीगल डेथ नहीं होनी चाहिए। दान में मिलने वाले देह से मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस छात्रों को पढ़ाया जाता है। एमबीबीएस पढ़ाई की शुरुआत ही शरीर रचना को समझाने के बाद ही होती है और शरीर रचना को समझने के लिए मानव शरीर ही एकमात्र विकल्प है।
एमबीबीएस के बच्चों को पढ़ने में मदद मिलेगी, भविष्य में अच्छे डॉक्टर तैयार होंगे
एमबीबीएस के प्रथम वर्ष के छात्रों को मानव शरीर रचना डेडबॉडी पर सिखाया जाता है। नाम्र्स तो 10 छात्रों के बीच में एक डेडबॉडी का है लेकिन डेडबॉडी सिर्फ दान में मिल सकती है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज डूंगरपुर से इस साल दो डेडबॉडी, पुलिस से एक और एक डेडबॉडी हाल ही दान में मिली है। यह कॉलेज को मिला देहदान है। लोगों को देहदान, अंगदान के लिए जागरूक कर रहे हैं। लोगों से अपील है कि देहदान महादान है, अपने परिजनों की देह का दान देकर भविष्य के अच्छे डॉक्टर तैयार करने में मेडिकल कॉलेज का सहयोग करें। डॉ. श्रीकांत असावा, प्रिंसीपल एवं कंट्रोलर मेडिकल कॉलेज डूंगरपुर
पॉजिटिव- आज आप बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से अपने काम संपन्न करने में सक्षम रहेंगे। सभी का सहयोग रहेगा। सरकारी कार्यों में सफलता मिलेगी। घर के बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन आपके लिए सुकून दायक रहेगा। न...
Copyright © 2020-21 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.