दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पर सूरज निकलने से पहले घर की चौखट पर खड़ा दूल्हा अपनी दुल्हन को गीत गाकर पुकारता है। दुल्हन की बार-बार मनुहार करता है। 16 शृंगार कर दुल्हन आती है। बाद में दूल्हे के हाथ में लिए पंचमुखी दीपक में तेल डालती है। दूल्हा अपने दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ पूरे गांव में दिया लेकर घूमता है। इस दौरान पूरा गांव दूल्हे का स्वागत करता है और दोनों की खुशहाल जीवन की कामना करता है।
दीपावली के मौके पर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र डूंगरपुर में शुक्रवार को शादी के बाद पहली दिवाली पर यह रस्म नव-दंपती ने निभाई गई। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को दिवाली आणा और मेरियू (दीपक) में तेल डालने का नाम दिया गया है। बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि शादी के बाद नया सफर शुरू करने वालों के जीवन में खुशहाली के लिए ये रस्म अदा की जाती हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा के बारे में आदिवासी लोग ही जानते हैं। दैनिक भास्कर टीम ने पहली बार इस परपंरा से रू-ब-रू कराने के लिए आदिवासी बाहुल्य गांवों में जाकर इस परंपरा को जाना। भास्कर संवाददाता वस्सी,पुनाली, सीमलवाड़ा, सागवाडा, आसपुर, बिछीवाड़ा कई गांवों में पहुंचे।
दुल्हन सभी को दान देती हैं...
नव दंपती की पहली दीपावली पर आणा और मेरियू (दीपक) में तेल पुरने (भरने) की परंपरा को लेकर कई मान्यता है। दुल्हन को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। लक्ष्मी रूपी दुल्हन को उसके पीहर से आणा कर लाते हैं। गोवर्धन के दिन तेल के साथ दान-दक्षिणा की रस्म होती है। दुल्हन इस घर को हमेशा खुशियों से भरा रखे। अगर वह हार भी जाए तो दान देकर उसे भी खुश रखें। ऐसा कामना की जाती है। शादी के बाद पहली दिवाली आने पर हर घर में यह परंपरा निभाई जाती है। पंडित संजय पंड्या ने बताया कि दिवाली पर मेरियू की परंपरा वागड़ खासकर डूंगरपुर, बांसवाडा में है। इसके पीछे घर परिवार में सुख और समृद्धि के साथ खुशहाली की कामना करना है।
पीहर से दुल्हन को दिवाली 'आणा' कर लाते हैं ससुराल
आदिवासी क्षेत्रों में दिवाली 'आणा' की परंपरा सदियों से चली आ रही। बड़े-बुजुर्गों को देखकर आज की पीढ़ी भी इससे जुड़ गई है। रिवाज के अनुसार शादी के पहले साल दिवाली 'आणा' की रस्म को निभाया जाता है। इसमें नई नवेली दुल्हन अपनी पहली दिवाली से पहले मायके चली जाती है। करीब एक महीना वह अपने पीहर में रहती है। दिवाली से हफ्ते भर पहले दूल्हा अपनी दुल्हन को लेने जाता है। साथ में होते दूल्हे के दोस्त, भाई और घर के बड़े-बुजुर्ग होते हैं। शादी की तरह ही मेहमानों की तीमारदारी की जाती है। महिलाएं मंगल गीत गाकर पीहर से बेटी को विदा करती हैं। ढोल-नगाड़ों और आतिशबाजी के साथ दूल्हा अपनी दुल्हन को लेकर घर पहुंचता है। जहां नव-दंपती का स्वागत शादी की तरह की किया जाता है।
दूल्हा लेकर निकला मेरियू तो दुल्हन ने भरा तेल
दिवाली 'आणा' के बाद गोवर्धन के दिन दुल्हे के मेरियू में तेल डालने की रस्म निभाई जाती है। नई दुल्हन सूरज की किरणें निकलने से पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करती है। 16 श्रृंगार कर सजती है। इस दौरान गांव की महिलाएं एकत्रित होकर मंगल गीत गाती है। डूंगरपुर के वस्सी गांव में शुक्रवार तड़के मेरियू की परंपरा निभाई गई। दूल्हा ओजस पंड्या और उसकी पत्नी लक्की की शादी इसी साल हुई है। पहली दिवाली होने से दिवाली आणा था। दिवाली से पहले ओजस अपनी दुल्हन को उसके मायके से लेकर आया।
गोवर्धन के दिन शुक्रवार सुबह मेरियू में तेल डालने की रस्म निभाई। सुबह 5 बजे 5 दीपक वाला मेरियू लेकर दूल्हा ओजस घर की चौखट पर खड़ा हो गया। आज दिवारी काल दिवारी.... गीत गाकर दुल्हन को पुकारा। घर की महिलाएं मंगल गीत गाते हुए दुल्हन को लेकर आई। दूल्हे के दीपक में तेल भरा। दूल्हा गांव में दीपक लेकर घूमा। गांव की मणी देवी बताती है कि मेरियू पुरने (दीपक भरने) से सालभर की घर की दरिद्रता खत्म होती है और ख़ुशहाली आती है।
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