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आरएएस (टीएसपी) में नेत्रहीन जयनीत का पहला स्थान:जन्मजात परेशानी के बावजूद बाबू रहे, थर्ड ग्रेड टीचर बने, हिन्दी के वरिष्ठ अध्यापक रहते हुए तय की जिंदगी की मंजिल

बांसवाड़ा2 वर्ष पहले
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परिवार के बीच खुशियों के पलों को साझा करते जयनीत पाठक। - Dainik Bhaskar
परिवार के बीच खुशियों के पलों को साझा करते जयनीत पाठक।

बांसवाड़ा के बड़ोदिया कस्बे में रहने वाले (जन्म से) नेत्रहीन जयनीत पाठक का चौथी बार सरकारी नौकरी में चयन हुआ है। उनका लक्ष्य आरएएस बनना था इसलिए जन्मजात बीमारी को जिंदगी में बाधा नहीं बनने दिया। बस लक्ष्य के पीछे लगे रहे।

जयनीत यहां बड़ोदिया के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में सेकंड ग्रेड टीचर हैं। नौकरी में रहते हुए आरएएस (टीएसपी) की डिसएबल सूची में उन्होंने पहला स्थान बनाया है। टीएसपी की सामान्य सूची में उनकी रैंक 52वीं है।

इससे पहले जयनीत ने 2013 से बागीदौरा पंचायत समिति और निठाउआ ग्राम पंचायत में बतौर एलडीसी (बाबू) सेवाएं दीं। इसके बाद 2018 में थर्ड ग्रेड टीचर में उनका चयन हुआ। राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक रहे।

तभी 2020 में सेकंड ग्रेड शिक्षक की सूची में उनका नाम आ गया। वह वर्तमान में बड़ोदिया स्कूल में हिन्दी के शिक्षक के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। जयदीप की जिंदगी दूसरों से हटके रही है।

सामान्य लोगों के बीच मिलनसार किरदार के तौर पर पहचान रखने वाले जयनीत हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। हर सफल किस्से की तरह उनकी पत्नी मंदाकिनी का भी उनकी सफलता में बड़ा सहयोग है।

परिवार में मां और दादी का आशीर्वाद लेते जयनीत।
परिवार में मां और दादी का आशीर्वाद लेते जयनीत।

हर कदम पर परिवार था साथ

जयनीत के पिता देवीलाल पाठक के अनुसार, नहीं देख पाने के बावजूद जयदीप का बचपन सामान्य बच्चों के साथ गुजरा है। वह उनकी आवाज सुनते हुए पूरे मौहल्ले में खेला करता था। उसके समझदार होने पर उसकी समस्या का पता लगा तो परिवार की चिंता बढ़ गई, लेकिन किसी ने हौसला नहीं खोया। परिवार का विरोध झेलकर उन्होंने जयनीत को उदयपुर के प्रज्ञा चक्षू शिक्षण संस्थान उदयपुर में दाखिला दिलाया।

कक्षा एक से 8वीं तक की पढ़ाई उसने ब्रेल सिस्टम से की। कक्षा 9 से 12वीं तक आदर्श नगर ब्लाइंड स्कूल अजमेर में पढ़ाई की। पॉलिटिकल, हिस्ट्री और हिन्दी साहित्य के साथ ग्रेजुएशन और पीजी भी अजमेर से किया।

टीटी कॉलेज अजमेर से बीएड की। 2014 में जयनीत की शादी हुई। उसके अभी 6 और 3 वर्ष की दो बेटियां हैं। गांव में 150 की संख्या वाले परिवार में अधिकांशत: टीचर की नौकरी में है। परिवार में यह पहला बच्चा है, जिसने आरएएस की मंजिल पूरी की।

बड़ोदिया स्थित जयनीत का पुश्तैनी मकान।
बड़ोदिया स्थित जयनीत का पुश्तैनी मकान।

बड़ोदिया में अंग्रेजी और हिन्दी का संजोगइससे पहले 1981 में इसी स्कूल में सेकंड ग्रेड के अंग्रेजी टीचर रहते हुए टीआर जोशी ने भी आरएएस में छलांग लगाई थी। हालांकि, तब बांसवाड़ा के लिए टीएसपी के नाम से अलग कोई कोटा नहीं था। अब जोशी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। स्कूल के दो शिक्षकों की ओर से इस मुकाम पर पहुंचने का उदाहरण अब शिक्षक उनके स्कूली बच्चों के बीच भी देते दिख रहे हैं।

जयनीत पाठक।
जयनीत पाठक।

साइकिल चलाने और क्रिकेट का शौक

जयनीत कहने को नेत्रहीन हैं, लेकिन उन्हें साइकिल चलाने का भी शौक है। घर के बाहर लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सूनी गलियों को परिजनों की उपस्थिति में साइकिल चलाने जैसे शौक भी पूरे किए।

हालांकि, सामान्य दिनों में वह इससे परहेज करते हैं। उन्हें किसी से टकराने का डर लगता है। जयनीत क्रिकेट के भी शौकिन है। वर्ष 2018 में इंडियन ऑयल की ओर से जयपुर में हुई प्रतियोगिता में उन्होंने विशेष तरह की गेंद के साथ टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया। उनकी टीम तीसरे क्रम पर रही थी। इसलिए उन्हें सांत्वना पुरस्कार ही मिल सका।

टॉकिंग सोफ्टवेयर का सहारा
जयनीत, विशेष योग्यता के साथ मोबाइल अच्छे से चलाते हैं। टॉकिंग सोफ्टवेयर के माध्यम से वह ग्रुप में आने वाले हर मैसेज को पढ़ लेते हैं। इसके अलावा पेटीएम, गूगल पे, ऑनलाइन जैसी शॉपिंग भी घर बैठे कर लेते हैं। बैंक का हिसाब भी वह आसानी से कर लेते हैं। वह उनकी उपलब्धि का श्रेय माता-पिता और गुरु के अलावा उनके मित्रों को देते हैं।

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