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काेराेना वायरस के कारण चिकित्सा विभाग में मरीजों के इलाज से लेकर अस्पताल आने तक में कई तरह के बदलाव आए हैं। ऐसा ही जिले के वजवाना अस्पताल में किया।
ये जिले का पहला सरकारी अस्पताल हैं, जहां टाेकन नंबर से मरीजों का इलाज किया जाता है। ताकि भीड़ न हाे। वहीं अस्पताल में आने वाले हर मरीज का तापमान नापने के लिए स्वचलित मशीन लगाई गई है। यह सारा बदला यहां के नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों ने मिलकर किया। सरकारी बजट के अलावा हाईटेक संसाधनों काे लाने के लिए वे खुद भामाशाह बने।
अस्पताल में आए इस बदलाव से अब वहां हर माह औसत 25 से 30 प्रसव हाेने लगे हैं। यहां पर निजी अस्पतालों की तरह बाकायदा हर माह का रिकॉर्ड वेटिंग रूम में डिस्पले भी किया जा रहा है। जिसमें जांच करवाने आने वाले मरीज, भर्ती होने वाले मरीज, प्रसव आदि की जानकारी संख्यात्मक दी गई है। प्रभारी चिकित्सक डॉ. वीरेंद्र यादव ने बताया कि अस्पताल में तापमान नापने से लेकर सेनेटाइज करने तक सभी मशीनें स्वचालित हैं।यहां पर किसी भी तरह से आने वाले मरीज को हाथ लगाने की जरूरत नहीं होती। सभी मशीनें डिजिटल टच से लैस है। मरीज के प्रवेश होते ही ओपीडी स्लीप के साथ उसे टोकन नंबर दिया जाता है। चिकित्सक रूम के सामने ही वेटिंग में मरीज अपने टोकन नंबर लेकर इंतजार करते हैं। जैसे ही सामने ही लगी एलईडी पर टोकन नंबर डिस्पले होता है तो मरीज चिकित्सक के पास जाता है। डाॅ. यादव ने बताया कि अस्पताल में महज 8 का स्टाफ है। फिर भी हर तरीके से प्रयास किया जाता है कि मरीज को कोई भी दिक्कत न हो। फिलहाल स्टाफ में जितेंद्र सिंह, एकता जोशी, ट्रीसा वर्गीस, राहुल दवे, नाथूलाल कार्यरत हैं। इसके अलावा स्टाफ सदस्य डेपुटेशन पर दूसरी जगह लगे हुए हैं। सीएमएचओ डाॅ. एचएल ताबियार ने बताया कि जल्द ही अस्पताल में बाउंड्रीवॉल बनाकर और गार्डन भी विकसित किया जाएगा। ताकि यहां आने वाले मरीजों काे प्राकृतिक अनुभव हाे।
आपातकालीन नर्सिंग कॉलिंग सिस्टम : अस्पताल में खास बात यह है कि जगह-जगह आपातकालीन नर्सिंग कॉलिंग सिस्टम लगाया है। जिसे नर्सिंग स्टाफ के कंट्रोल रूम से जोड़ा गया है। किसी भी मरीज को कोई भी दिक्कत होती है तो वह इस सिस्टम का उपयोग कर सकता है। यह छोटी सी मशीन होती है, जिसमें स्विच होता है। मरीज स्विच दबाता है तो उसका भर्ती होने वाला बेड नंबर कंट्रोल रूम में दिखता है। जहां से नर्सिंगकर्मी तुरंत सेवाएं देने के लिए मरीज के पास पहुंच जाते हैं। वैसे तो यह सुविधा भर्ती रहने वाले मरीजों के लिए है, लेकिन इसे ओपीडी में भी लगाया गया है, ताकी कोई मरीज को अर्जेंसी हो तो उसे समय पर इलाज मिल सके।
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