ये हैं समाजसेवी गाेपीराम अग्रवाल। बीते 3 साल से आंबापुरा-दानपुर क्षेत्र में घर-घर जाकर सीताफल के पाैधे बांट रहे हैं। अब तक ये 4 हजार पाैधे बांट चुके हैं और 5 हजार और बांटने के लिए तैयार कर रहे हैं। पाैधे उगाने के लिए वह बीज भी लाेगाें से ही मांगते हैं। उनकी इस अनूठी पहल पर लाेग भी उन्हें बीज दे जाते हैं। ऐसा करने के पीछे गाेपीराम की मंशा आंबापुरा-छाेटी सरवन क्षेत्र की सूखी पहाड़ियाें की हरियाली लाैटाना है।
गाेपीराम पहले पाैधाें काे अपने घर उगाते हैं, जिसके बाद अपनी कार की डिक्की में रखकर पहाड़ी क्षेत्राें में जाकर लाेगाें काे घर-घर जाकर बांटते हैं। उनका कहना है कि वह ग्रामीणाें काे पौधे गोद देकर उसके बारे में पूरी जानकारी देते हैं। हाथाेंहाथ घर बाहर और बाड़े में गड्ढा खुदवाकर ग्रामीण से ही पाैधा लगवाते हैं, जिससे कि उसका पाैधे से जुड़ाव बना रहेगा।
वन विभाग से मिले मदद ताे पहड़ियां हो सकती है हरी-भरी
गाेपीराम का कहना है कि उन्हें यह आइडिया 3 साल पहले कुंभलगढ़ यात्रा के दाैरान आया। वहां पथरीले, ऊंचे पहाड़ सीताफल के पाैधाें से लदे हुए देखे। क्योंकि यह पौधे यह पथरीली जगह पर कम पानी में आसानी से उग जाता है। सालभर यह हरा रहता है और इसके फल और पत्तियां मवेशी नहीं खाते। इस पर आंबापुरा और छाेटी सरवन की सूखी पहाड़ियाें पर इन्हें राेपने का आइडिया मिला। आंबापुरा-दानपुर क्षेत्र में ज्यादातर ऐसी पहाड़ियां है जाे सूखी है।
ऐसे में अगर वन विभाग अभियान चलाकर ग्रामीणाें काे साथ लेकर सीताफल के पाैधे लगाए ताे सूखे इलाके में हरियाली लाैटाने में काफी मदद मिल सकती है। वन विशेषज्ञाें मुताबिक सीताफल काफी पाैष्टिक फल है। हमारे यहां ज्यादातर सागवान के पाैधे है जिनकी पत्तियां गर्मियाें में झड़ जाती है जबकि सीताफल सालभर हरा रहता है। लाेगाें काे इसके लिए जागरूक करके बड़े स्तर पर पाैधराेपण किया जा सकता है।
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