बिजली संकट से जूझ रहे प्रदेश में माही प्रोजेक्ट प्रशासन की गैर जिम्मेदारी परेशानी बन गई है। इसकी कीमत सरकार को 4.50 लाख रुपए प्रति घंटा का नुकसान उठाकर चुकानी पड़ रही है। बीते 36 घंटे के दौरान यह नुकसान 1 करोड़ 62 लाख को पार कर चुका है।
माही प्रोजेक्ट से लीलवानी (बागीदौरा) में 90 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाले पन बिजलीघर (पीएच)-2 को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। इसकी बजाय एक सेकंड में 1 करोड़ 13 लाख लीटर पानी कागदी नाले में छोड़कर बर्बाद किया जा रहा है। वहीं जरूरत वाले पीएच-2 को एलएमसी (लेफ्ट मैन कैनाल) से नाम मात्र प्रति सेकंड 17 हजार लीटर पानी मुहैया कराया जा रहा है। पानी की कमी से पीएच-2 पर 45-45 (कुल 90) मेगावाट क्षमता वाले सिस्टम बंद है। तैयारी के बावजूद राजस्थान राज्य उत्पादन निगम यहां बिजली पैदा नहीं कर पा रहा है।
इसलिए करोड़ों का नुकसान
र्तमान में प्रदेश की बिजली जरूरत को पूरा करने के लिए सरकार महंगे दाम पर बिजली खरीद रही है। यह बिजली 5 रुपए से ज्यादा प्रति यूनिट के हिसाब से खरीदी जा रही है। इधर, 90 मेगावाट क्षमता वाले पीएच-2 में हर घंटे करीब 90 हजार यूनिट बिजली बनती है। अगर, माही प्रोजेक्ट बिजली उत्पादन के लिए डिमांड के हिसाब से पानी मुहैया कराया जाता तो यहां बीते 36 घंटे में 32 लाख 40 हजार यूनिट बिजली का आंकड़ा पार हो चुका होता। खरीद के हिसाब से यह बिजली करीब 1 करोड़ 62 लाख की होती।
इस फार्मूला से पानी-बिजली का अनुबंध
माही परियोजना और उत्पादन निगम के बीच सरकारी अनुबंध है। मानसून में अच्छी आवक के बीच माही बांध के बेक वाटर से बिजली उत्पादन के लिए पानी दिया जाएगा। वर्तमान के समझौते के हिसाब से बांध का जल स्तर 278.4 मीटर होने के बाद बिजली घर के लिए पानी छोड़ना था, लेकिन माही प्रोजेक्ट ने इस बार जल स्तर 280 पार होने का इंतजार किया। यहां समय पर पानी नहीं दिया गया, जबकि मध्यप्रदेश से बांध में पानी की अच्छी आवक बनी हुई है।
एक पानी से दो बार बिजली उत्पादन
माही बांध के बेक वाटर से सबसे पहले 5 नंबर (रतलाम रोड) यानी पीएच-1 को पानी मिलता है। यह पानी करीब 4500 क्यूसेक (प्रति सेकंड करीब 28.317 लीटर) होता है। पीएच-1 पर 25-25 (कुल 50) मेगावाट क्षमता के दो टरबाइन हैं। इसमें बिजली बनाकर पानी आगे पहाड़ी हिस्से से गहराई वाले कागदी बांध में पहुंचता है। इस पानी को यहां तीन तरह से काम में लिया जाता है। शहर की जलपूर्ति, बांध से पानी सीधे नदी-नाले में छोड़ा जाता है और इस पानी को बाईं मुख्य नहर में छोड़ा जाता है। खेती के समय ये पानी सिंचाई के काम आता है। बारिश में ये पानी सीधे लीलवानी (बागीदौरा) डेम पहुंचता है। वहां 90 मेगावाट क्षमता वाले पीएच-2 में इस पानी से फिर बिजली बनती है। बाद में ये पानी अनास नदी होकर गुजरात पहुंचता है। फिर अरब सागर में मिल जाता है।
चिंता में माही के जिम्मेदार
बिजली उत्पादन से हो रहे आर्थिक नुकसान की बात अधिकारी मान रहे हैं। वे इस बात को छिपाने में लगे हैं कि कागदी डेम से जुड़ी हुई बायीं मुख्य नहर कमजोर है, जो तेज पानी के प्रेशर को नहीं झेल सकती है। यह नहरें 1982 में बनी थी और उनकी मरम्मत नहीं की गई है। इस कारण से माही प्रशासन रिस्क नहीं लेना चाहता है। पीएच-1 में बिजली उत्पादन रविवार दोपहर 2 बजे के करीब शुरू हुआ था। कुछ घंटे नहर में सफर तय करने के बाद यह पानी सीधे लीलवानी पहुंचता, लेकिन नहर की बजाय पानी को नाले में बहाया गया। इससे सोमवार रात तक भी पानी लीलवानी नहीं पहुंचा।
डेम भरेगा या नहीं कन्फ्यूजन था
मामले में माही प्रोजेक्ट के एसई प्रहलाद राय खोइवाल ने बताया कि सितंबर तक मानसून कमजोर था। डेम भरेगा या नहीं, इसे लेकर कन्फ्यूजन था। बीते पांच दिन के दौरान बांध में पानी भरने का इंतजार किया। पीएच-1 को वादे के मुताबिक पानी दे रहे हैं, लेकिन लीलवानी में पीएच-2 के लिए एक साथ पानी छोड़ना संभव नहीं है।
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