जनजाति बाहुल्य बांसवाड़ा जिले में गरीब परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने वाली गारंटी केवल कागजों तक सीमित है। कुशलगढ़ उपखण्ड क्षेत्र से जुड़े मध्यप्रदेश और गुजरात बॉर्डर वाले गांवों में तो ऐसे ही कुछ हाल हैं। शायद इसलिए ही यहां के परिवारों का पलायन थमता नहीं दिख रहा।
जमीनी सच जानने के लिए दैनिक भास्कर ने भगतपुरा (कुशलगढ़) वाले उस परिवार की टोह ली, जिस परिवार में करीब छह माह पहले एक साथ पांच मौतें हुई थी। सूरत (गुजरात) की कीम चौकड़ी में सड़क किनारे फुटपाथ पर सोते हुए इस परिवार के पांच सदस्यों को डंपर ने कुचल दिया था।
यहां कुल मरने वालों की संख्या 15 थी, जिनमें इस अकेले परिवार के 4 कमाऊ सदस्य शामिल थे। पड़ताल में पता चला कि स्थानीय जिला प्रशासन आज तक भी पीड़ित परिवार में बचे हुए दो बालिग लोगों को 100 दिन का रोजगार नहीं दिला सका है। जवान मौंतों को कंधा देने वाले पिता और उसकी पत्नी को इस वित्तीय वर्ष में स्थानीय स्तर पर केवल 19 दिन का काम ही दिया गया है। ऐसे में परिवार को एक बार फिर गांव छोड़कर गुजर बसर के लिए बाहर जाने पर विचार करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि सूरत में मरने वाले कुल 15 लोगों में 13 बांसवाड़ा के थे। तब जिला प्रशासन ने सरकार को भेजे गए जवाब में कहा था कि उनकी ओर से सभी परिवारों को 100 दिन का रोजगार दिया जा रहा है। लेकिन, पीड़ित परिवार के रिकॉर्ड के हिसाब से बीते चार साल में इस परिवार को कभी भी गारंटी योजना का पूरा लाभ नहीं मिला है।
नाम मात्र की गारंटी
छानबीन में ही पता चला कि भगतपुरा निवासी पीड़ित परिवार के मुखिया कैला मईड़ा और उसकी पत्नी मीठा को मनरेगा के तहत वर्ष 2018-19 में केवल 26 दिन का रोजगार मिला था। इसके एवज में परिवार को 26 सौ रुपए का भुगतान हुआ। वहीं वर्ष 2019-20 में कैला व मीठा को केवल 49 दिन (7 हजार 420 रुपए) का रोजगार मिला था।
इसी तरह 2020-21 में 14 दिन (2 हजार 520 रुपए) का रोजगार दिया गया था। यानी दुर्घटना के वक्त जब परिवार के आधे से ज्यादा सदस्य पलायन कर गुजरात में मजदूरी करने गए थे। दूसरी ओर हादसे के बाद से अब तक पीड़ित को ग्राम पंचायत की ओर से वर्ष 2021-22 में केवल 19 दिन (2 हजार 850 रुपए) का रोजगार मिला है।
आवेदन पर रोजगार
जिला परिषद के सीईओ भवानीसिंह पालावत ने बताया कि सरकारी व्यवस्था में रोजगार गारंटी के लिए आवेदन करना होता है। आवेदन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है। सूरत में हुई दुर्घटना परिवार की स्थिति का फिलहाल तो आइडिया नहीं है। ये मामला उनके जोइन करने से पहले का है। लेकिन, ऐसा है तो पीड़ित परिवार को सर्वाेच्च प्राथमिकता पर रोजगार दिया जाएगा।
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