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उपखंड क्षेत्र के कापराऊ गांव में एक प्रगतिशील किसान ने मेहनत के बुत्ते आमदनी बढ़ाई। कापराऊ निवासी भैराराम गोदारा ने आज से पांच साल पहले अपने खेल में स्थानीय बेर के 300 पौधे लगाए। एक साल बाद पौधे बड़े होने पर उसने सभी बेर के पौधों पर एप्पल बेर की कलम की। 6 बीघा जमीन पर लगाए बेर अब उसे सीजन में प्रतिदिन छह हजार रुपए आमदनी देते है।
वर्तमान में सरकार किसानों की आय बढ़ाने को लेकर कई याेजनाएं बना रही है और उसके लिए किसानों को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। लेकिन कापराऊ के इस प्रगतिशील किसान ने आज से छह साल पहले ही स्थानीय स्तर पर सर्वसुलभ बेर के पौधे को आमदनी का जरिया बनाने का तरीका निकाला। उस समय सिंचाई के लिए उसके खेत में न तो पानी की सुविधा थी और न ही सिंचाई का कोई साधन। इसके बावजूद भैराराम व उसकी पत्नी कमला ने कम पानी से उत्पन्न होने वाले बेर को लगाने की ठान ली और अब उनकी मेहनत रंग लाई है।
ऐसे किया बेर के बगीचे काे विकसित
भैराराम ने छह बीघा जमीन पर बेर के पौधे लगाए और सिंचाई के लिए खेत के दोनों तरफ दो पानी की टांकलियां बनाई। इनमें वह आसपास के बेरों से पानी की ट्रैक्टर टंकी लेकर आता और टांकलियों को पानी से भर देता। इसके बाद उसकी पत्नी कमला चार दिन के अंतराल में डोली से पानी सींचकर बेर के पौधों में थोड़ी थोड़ी सिंचाई करती। इस तरह इन्होंने पांच साल लगातार इन पौधों के लिए मेहनत की। हालांकि यहां पर जीरे व अरंडी की फसलों की बुआई ज्यादा होती है लेकिन इनमें रोग लगने व प्राकृतिक आपदाओं का खतरा लगा रहता है। जबकि बेर में इस तरह का कोई खतरा नहीं होता है और इसमें सिंचाई की भी कम जरूरत रहती है। अब यह बेर के पेड़ आमदनी का जरिया बन गए है।
स्थानीय पौधे से आय बढ़ाने की सोची
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