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ये है टोंक की मीराबाई:9 साल में 4 हजार किमी की दंडवत यात्रा, कृष्ण भक्ति में अन्न त्यागा, तीन साल में पूरा होता है द्वारकाधीश का सफर

बाड़मेर2 वर्ष पहले
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  • अटूट आस्था - प्रदेश में खुशहाली व भक्तों की रक्षा के लिए दंडवत यात्रा पर निकली मीराबाई रामदेवरा से होते हुए बाड़मेर पहुंची

नौ साल में चार हजार किलोमीटर का दंडवत सफर पूरा कर चुकी टोंक की मीराबाई कृष्ण भक्ति किसी मिसाल से कम नहीं है। प्रदेश में खुशहाली की मन्नत के साथ टोंक के जलदेव मंदिर से दंडवत यात्रा शुरू कर चुकी मीराबाई रामदेवरा होते हुए मंगलवार को बाड़मेर पहुंची। कृष्ण की भक्ति में तल्लीन मीराबाई अन्न त्याग चुकी है।

भीषण गर्मी में नंगे पैरों ही तपती सड़क पर रोजाना डेढ़ से दो किमी का सफर दंडवत पूरी कर रही है। वर्ष 2012 में टोंक से रामदेवरा होते हुए द्वारकाधीश तक का सफर शुरू किया। पिछले नौ साल में दो बार दंडवत यात्रा पूरी कर चुकी है। अब तीसरी बार द्वारकाधीश पहुंचने के साथ छह हजार किमी की यात्रा पूरी होगी।

मीराबाई ने भास्कर को बताया कि प्रदेश की जनता की खुशहाली व भक्तों की रक्षा के लिए दंडवत यात्रा पर है। कृष्ण भगवान के प्रति बचपन से गहरी आस्था थी। 31 साल की उम्र में दंडवत यात्रा करने की ठान ली। इसके बाद पिछले नौ साल से यह सिलसिला लगातार जारी है।

गौरतलब है कि मेड़ता की मीराबाई की कृष्ण भक्ति इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। टोंक की मीराबाई भी उसी तर्ज पर तीन साल में द्वारकाधीश तक की दंडवत यात्रा कर रही है।

420 में तपती सड़क पर दंडवत, आबू की 108 परिक्रमा बोली, 22 पूरी की

कृष्ण के प्रति गहरी आस्था के कारण मीराबाई बिना जूते पहने ही दंडवत यात्रा कर रही है। पारा 42 डिग्री पहुंचने से सड़क तप चुकी थी। बावजूद इसके मीरा के कदम नहीं डगमगाए और नारियल के साथ दंडवत यात्रा का सफर जारी रखा। रामदेवरा से बाड़मेर तक करीब दो सौ किमी का सफर पूरा करने के दौरान एक दिन भी आराम नहीं किया।

सुबह से शाम तक करीब 12 घंटे यात्रा जारी रहती है। रात्रि विश्राम के बाद दूसरे दिन फिर से दंडवत यात्रा शुरू होती है। मीराबाई ने माउंट आबू की 108 परिक्रमा लगाने की मन्नत मांग रखी है। पिछले नौ साल में 22 परिक्रमा पूरी कर चुकी है। इस बार द्वारिकाधीश की यात्रा पूरी करने के बाद वह वापस आबू पहुंचेगी। जहां पर पैदल परिक्रमा लगाने के बाद पुष्कर यात्रा पर जाएगी।

2000 किमी के सफर में भक्त ही रखते हैं ख्याल

द्वारिकाधीश तक करीब दो हजार किलोमीटर का सफर मीराबाई अकेले ही पूरा करती है। दिन में दंडवत यात्रा करने के बाद रात्रि विश्राम कर अगले दिन सुबह फिर यात्रा शुरू करती है। बड़ी बात यह है कि उनके साथ में कोई नहीं है। यात्रा जहां से गुजरती है वहां पर कुछ भक्त जरूर साथ देने पहुंचते हैं। रामदेवरा से बाड़मेर तक सफर के दौरान अशोकदान निंबला व ओमसिंह नागड़दा ने मीराबाई का साथ दे रहे हैं। यात्रा के दौरान चाय-पानी की व्यवस्था करते हैं।

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