ब्रज के मंदिरों में कान्हा के आगमन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। सावन की रिमझिम के बीच मथुरा के द्वारकाधीश, गोकुल, बरसाना, गोवर्धन समेत ब्रज मंडल के अन्य मंदिरों में हिंडोले (झूले) लग गए हैं। वृन्दावन के मंदिरों में भी ठाकुर जी के स्वागत और उन्हें झूला झुलाने की बेसब्री दिखने लगी है। बुधवार को हरियाली तीज के अवसर पर बांकेबिहारी मंदिर में सोने-चांदी से बने हिंडोले में ठाकुरजी भक्तों को दर्शन देंगे।
इसी के साथ ब्रजभूमि में हिंडोला उत्सव की शुरुआत हो जाएगी। ऐसी मान्यता है कि रिमझिम फुहारों और इत्र से महकते माहौल में ठाकुर जी कई बार राधारानी तो कभी सखियों और कभी अकेले हिंडोले में झूलने का आनंद लेते हैं। भक्तगण भी उनकी मनमोहक छवि के दर्शन करके खुद को धन्य समझते हैं। सावन मास लगते ही मंदिरों में ठाकुरजी के लिए हिंडोले लग जाते हैं।
पूरे महीने इनमें रोजाना अलग-अलग आकर्षक झांकियां सजाई जाती हैं। हिंडोलाें काे अलग-अलग दिन फल, फूल, मेवा, माेती, पवित्रा, लता-पता, जरी, मखमल, लहरिया, राखी, साेसनी, आसाेपालव, चुनरी आदि से सजाया जाता है। काली घटा के दर्शन प्रमुख हाेते हैं। माना जाता है कि ब्रज में हिंडाेले की परंपरा पुष्टिमार्ग संप्रदाय से शुरू हुई थी। बाद में इसे वैष्णव संप्रदाय की सभी शाखाओं नेे भी अपना लिया।
ब्रज कला और संस्कृति के जानकार डाॅ. भगवान मकरंद बताते हैं कि पुष्टिमार्ग में श्रीकृष्ण काे बाल स्वरूप में पूजा गया है, इसलिए सावन में सभी मंदिराें में बालकृष्ण को झुलाने के लिए हिंडोले डाले जाते हैं। बांकेबिहारी मंदिर प्रशासन के मुताबिक लोग कोरोना गाइडलाइन का ध्यान रखते हुए दर्शन कर सकेंगे।
हरियाली तीज पर मंदिर मेें सुबह 7 से दोपहर 12 बजे और शाम 4 से रात 12 बजे तक दर्शन हो सकेंगे। ठाकुरजी हिंडोले पर सुबह 11 बजे विराजमान होंगे। बांके बिहारी मंदिर के अलावा राधाबल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर, राधा स्नेह बिहारी मंदिर, राधा दामोदर मंदिर, श्री कृष्ण बलराम मंदिर, प्रेम मंदिर आदि में ठाकुरजी दर्शन भक्तों को दर्शन देंगे।
सोने-चांदी से बने 6.16 करोड़ के हिंडोले में 74 साल पहले विराजे थे ठाकुर जी, श्रृंगार के लिए पिटारी भी
बांके बिहारी मंदिर के हिंडोले में करीब 1000 तोला सोना, 2000 तोला चांदी और रत्न जड़े हैं। इसकी कीमत करीब 6.16 करोड़ रुपए है। मंदिर प्रबंधक मुनीश शर्मा ने बताया, इसे 1946 में सेठ हरगुलाल बेरीवाल ने बनवाया था। बनारस के कारीगर लल्लू ने सालभर नक्काशी कर साेने-चांदी की परत से 30 गुणा 40 फीट के इस हिंडाेले को सजाया। दोनों ओर सखियों की छवि बनी है।
ठाकुर जी को रेशम और सोने-चांदी के वर्क वाली हरे रंग की पोशाक पहनाई जाती हैं। 15 अगस्त 1947 को ठाकुर जी पहली बार इस हिंडोले पर विराजमान हुए थे। तभी से यह परंपरा निभाई जा रही है। हिंडोले के पीछे जगमोहन में ठाकुर जी के लिए सेज बनाई जाती है, जिस पर श्रंगार पिटारी रखी जाती है। क्योंकि हिंडोले की हवा से उनका श्रृंगार खराब हो जाता है।
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