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सरकारी सिस्टम कैसे काम करता है। इसकी बानगी पुरानी कलेक्ट्री के पीछे स्थित सामुदायिक भवन के पास पड़े 119 वर्गगज के खाली प्लॉट के मामले में देखी जा सकती है। इस प्लॉट पर नगर निगम के ही कर्मचारियों ने 4 साल पहले कब्जा कर लिया। क्षेत्रवासियों ने शिकायत की। किसी अधिकारी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। फिर 4 लोगों ने मिलकर अपने खर्चे पर कोर्ट में मुकदमा किया।
कोर्ट से जमीन से कब्जा हटवाने के लिए फैसला कराया। आदेशों की कॉपियां तक निगम आयुक्त, मेयर, कलेक्टर, संभागीय आयुक्त और मंत्री को ले जाकर दीं। इन सभी से बार-बार गुहार करी लेकिन, फिर भी निगम अपनी ही जमीन का कब्जा लेने को तैयार नहीं हुआ। लोगों के प्रयास देख कर्मचारियों को लगा कि कहीं वास्तव में ही कब्जा न हट जाए। इसलिए वे अपील करके निचली अदालत के फैसले पर दो महीने बाद हाईकोर्ट से स्टे ले आए।
जिम्मेदारो जवाब दो, क्यों नहीं हटाया अतिक्रमण
ऐसा सिस्टम, कोई क्यों आगे आए
कोर्ट आदेश के बावजूद अफसर कटवाते रहे चक्कर
निगम की जमीन से अतिक्रमण हटवाने कोर्ट ने 9 दिसंबर को डिक्री जारी कर दी थी। इसके बाद कोर्ट आदेश की कॉपियों के साथ स्थानीय लोगों ने 18 दिसंबर को नगर निगम आयुक्त से जमीन से अनाधिकृत कब्जा हटाने का आग्रह किया। लेकिन, निगम अफसर टस से मस नहीं हुए। इसके बाद भी आयुक्त एवं मेयर से लेकर कलेक्टर, संभागीय आयुक्त और मंत्री तक को बार-बार ज्ञापन दिए गए। लेकिन, उनके ज्ञापन आगे फॉरवर्ड ही होते रहे। किसी ने भी कब्जा नहीं हटवाया।
इनका कहना है
सीधी बात: डॉ. राजेश गोयल, आयुक्त
जमीन से अतिक्रमण हटाने पब्लिक को इतनी मशक्कत क्यों करनी पड़ रही है?
- मेरे पद संभालने के 7 दिन में नोटिस जारी हो गए थे।
नोटिस की मियाद के बाद भी कब्जा हटाने की कार्रवाई क्यों नहीं की?
- प्रतिवादी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर चुका था।
क्या निगमकर्मियों के प्रोफेशनल मिसकंडक्ट का मामला नहीं है? निगम ने क्या कार्रवाई की?
- यह प्रोफेशनल मिसकंडक्ट तो है। कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब मैं इस पर विचार करूंगा।
पॉजिटिव- आपकी सकारात्मक और संतुलित सोच द्वारा कुछ समय से चल रही परेशानियों का हल निकलेगा। आप एक नई ऊर्जा के साथ अपने कार्यों के प्रति ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। अगर किसी कोर्ट केस संबंधी कार्यवाही चल र...
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