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स्माइल प्राेग्राम के तहत सरकारी स्कूलाें के बच्चाें से हाेमवर्क देना और ऑनलाइन पढ़ाना शिक्षकाें के लिए चुनाैती बन गया है। अधिकांश अभिभावकाें के पास स्मार्ट फाेन नहीं हैं। कुछ अभिभावक मजदूरी पर चले जाते हैं, ऐसे में समय पर हाेमवर्क भी बच्चाें काे नहीं मिल पाता है। भास्कर पड़ताल में सामने आया कि स्माइल प्राेग्राम ने शिक्षकाें की स्माइल छीन ली है।
हालात यह है कि यदि बच्चों को होमवर्क दिया जा रहा उनमें से नामामात्र के बच्चे ही होमवर्क कर पा रहे हैं। शिक्षकों का तर्क है कि अधिकांश के पास एंड्राइड मोबाइल नहीं है। जिनके पास है वे रेस्पॉन्स नहीं देते हैं। शिक्षिकाओं ने बताया कि कुछ एरिया में लाेग कमेंट करने से भी नहीं चूकते हैं। ऑनलाइन की जगह स्कूलाें में पढ़ाई कराना शिक्षक बेहतर मानते हैं। शिक्षिकाओं ने कहा कि ईश्वर सबकुछ सामान्य करे और स्कूलाें में फिर पढ़ाई शुरू हाे जाए।
शिक्षिकाओं ने कहा-कई बस्तियाें में अभिभावक कमेंट करते हैं
राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल शहर के अधीनस्थ उप्रावि पांडनपाेल में 83 बालिकाएं हैं। इसमें 24 ऑनलाइन एवं 50 बालिकाओकाे ऑफलाइन घर-घर जाकर पढ़ाया जा रहा है। 9 बालिकाओं द्वारा दिए नंबर पर संपर्क नहीं हाे रहा है।
घर जाकर हाेमवर्क देना एवं चेक करने की प्रक्रिया के दाैरान परेशानी होती है। क्योंकि अधिकांश अभिभावकाें के पास स्मार्ट फाेन नहीं है। कुछ अभिभावक झाेपड़ियाें में रहते हैं। कई ताे नशे में मिलते हैं। ठीक से जवाब भी नहीं देते हैं। भद्दे कमेंट करने से भी नहीं चूकते हैं। कुछ अभिभावक यह भी कह देते हैं कि सरकार काे जब ऑनलाइन पढ़ाना था ताे फ्री में माेबाइल पहले देना चाहिए।
राजकीय उमावि पुरुषार्थी में नामांकित 272 में से 270 विद्यार्थी स्माइल प्राेग्राम से जुड़े हैं। इसमें 188 अाॅनलाइन एवं 82 ऑफलाइन हैं। शिक्षिकाओं ने बताया कि ऑनलाइन हाेमवर्क के प्रति अभिभावक जागरूक नहीं है। पांच-पांच बार फाेन करते हैं ताे भी बच्चे के हाेमवर्क पर ध्यान नहीं देते हैं।
घर जाते हैं ताे अभिभावक एवं बच्चे मिलते ही नहीं। मागदर्शन के लिए स्कूल बुलाते हैं ताे अभिभावक बच्चे काे लेकर नहीं आते। पहली एवं दूसरी के बच्चाें का स्माइल प्राेग्राम के तहत हाेमवर्क भी कठिन है। इसलिए शिक्षक खुद अपने स्तर पर हाेमवर्क तैयार करते हैं। अपने खर्चे पर हाेमवर्क की शीट बच्चाें तक पहुंचा रहे हैं।
जिसने स्कूल नहीं देखा उसे भी दे रहे होमवर्क
प्रोजेक्ट की पहली और बड़ी कमी यह है कि सेशन शुरू होने के बाद एक भी दिन क्लास नहीं लगी है। ऐसे में बच्चों को बेसिक ही नहीं पता है कि उसे करना क्या है। नतीजा बच्चों के सामने होमवर्क करने की समस्या आ रही है। सबसे बड़ा मजाक तो यह है कि पहली क्लास में एडमिशन लेने वाला बच्चा जिसने एक बार भी स्कूल नहीं देखा उसे भी होमवर्क दे डाला।
पूरा सिलेबस बदला, सबकुछ नया
सरकार ने इस सत्र में पुरानी किताबों को बदल दिया है। कक्षा पहली से 9 व 11वीं में एनसीईआरटी का सिलेबस लागू कर दिया। मतलब नए और पुराने बच्चे दोनों के लिए पढ़ाई नई है। ऐसे में शिक्षकों के सामने भी समस्या है। एक शिक्षक को पांच बच्चों से संपर्क करने के निर्देश हैं। स्थिति यह है कि यदि होमवर्क जमा नहीं करने वाले बच्चों में से रोजाना पांच-पांच बच्चों से संपर्क किया जाए तो दूसरे होमवर्क का समय हो जाता है।
भास्कर एक्सपर्ट: व्यवहारिक पक्ष अच्छा नहीं
सरकार के इस प्रोजेक्ट की मूल भावना अच्छी है, लेकिन इसका व्यवहारिक पक्ष उतना अच्छा नहीं है। सरकारी स्कूलों के बच्चों के पास ऐसे डिवाइस नहीं हैं जिससे कि उन तक शिक्षण सामग्री तरीके से पहुंच सके। अभी जो चल रहा है उसमें शिक्षक तो जुड़ा है, लेकिन बच्चों के जुड़े होने का बेहद सुखद आंकड़ा नहीं है। सरकार चैनलाें के माध्यम से खासकर बाेर्ड कक्षाओं का पाठ्यक्रम पूरा कराएं ताकि परिणाम भी ठीक रहे। माेबाइल से बच्चाें की आंखाें एवं मतिष्क पर रेडियेशन का प्रभाव पड़ रहा है।
राधेश्याम जाेशी, सेवानिवृत्त एडीईओ माध्यमिक शिक्षा
डाेर टू डाेर हाेमवर्क के दाैरान शिक्षक या शिक्षिकाओं से अभद्रता जैसी शिकायत नहीं मिली है। यह बात जरूर सामने आई कि फाेन करने के बाद भी पेरेंट्स जागरुकता कम दिखा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्राें में अभिभावकाें के पास स्मार्ट फाेन नहीं है।
अरुण कुमार दशाेरा, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी
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