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(पंकज पारीक)
एक ओर देश में टेक्सटाइल उद्योग अच्छी स्थिति में है, लेकिन दूसरी ओर टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए इंजीनियर्स की खेप तैयार करने वाले राजस्थान के एक मात्र टेक्सटाइल काॅलेज की सीटें नहीं भर रही हैं। इस साल भी टेक्सटाइल की अलग-अलग ब्रांच में केवल 39.26 प्रतिशत सीटें ही भरी हैं।
यह स्थिति भी तब है जब अगस्त से लेकर 31 दिसंबर यानी पांच महीने तक प्रवेश हुए। इन पांच महीने में चार बार एडमिशन की अंतिम तारीख बढ़ाई गई थी। टेक्सटाइल केमेस्ट्री ब्रांच में अभी तक 14 सीटें और टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में 47 सीटें भरी हैं। जबकि इन दोनों ब्रांच की 194 सीटे हैं। यानी प्रदेश का एकमात्र टेक्सटाइल कॉलेज होने के बावजूद टेक्सटाइल ब्रांच की सीटें नहीं भर रही हैं।
इधर, कोरोना से दाे साल पहले की अवधि में भीलवाड़ा की टेक्सटाइल इंडस्ट्री में करीब 100 करोड़ रुपए का निवेश आया। स्पिनिंग, वीविंग, डेनिम में हर साल सात से आठ प्रतिशत तक ग्राेथ हो रही है। धीरे-धीरे कपड़ा उत्पादन बढ़ते-बढ़ते अब करीब 100 करोड़ मीटर पहुंच गया है। 60 से अधिक देशों में यहां के टेक्सटाइल उत्पादों का निर्यात हो रहा है।
कोरोना का असर... प्रवेश का दौर इतने समय तक पहले कभी नहीं चला
इस बार कोरोना के कारण जेईई परीक्षा काफी देरी से हुई। तकनीकी शिक्षा विभाग ने इससे पहले ही इंजीनियरिंग में प्रवेश शुरू कर दिया था। ऐसे में स्टूडेंट्स की एक स्तर पर प्रतिस्पर्धा खत्म हो गई। दूसरा, सिर्फ 12वीं में 45 प्रतिशत न्यूनतम योग्यता के आधार पर प्रवेश दिए। तीसरा, इस बार जितना लंबा प्रवेश का दौर चला उतना आज तक नहीं चला। अगस्त से शुरू हुए प्रवेश 31 दिसंबर तक हुए हैं। इस बीच चार बार प्रवेश की तारीख बढ़ाई गई। इसमें भी अधिकांश स्पेशल राउंड था, जहां सीधे फीस जमा करके इंजीनियरिंग में प्रवेश का मौका दे रहे थे। फिर भी 39.26 प्रतिशत सीटें ही भर सकी।
कैंपस प्लेसमेंट अच्छा होने पर भी इंजीनियरिंग में रुझान कम चिंताजनक...प्राचार्य डॉ. धीरेंद्रकुमार शर्मा ने बताया कि प्रवेश कम होने की एक वजह कोरोना भी रहा है। दूसरा इंजीनयिरिंग को लेकर प्रदेशभर में रुझान कम हुआ है। ऐसा नहीं है कि केवल टेक्सटाइल कॉलेज में सीटें नहीं भरी हैं। अन्य इंजीनियरिंग कॉलेज में भी सीटें भरने में परेशानी हो रही है। टेक्सटाइल कॉलेज से तो कोरोना काल में कैंपस प्लेसमेंट हुए हैं। कई विदेशी यूनिवर्सिटी से एमओयू हुए हैं फिर भी प्रवेश कम होना चिंताजनक है। वैसे कुछ सीटें सैकंड इयर में भी भरती हैं। इस साल सैकंड इयर के लिए 65 प्रवेश हो चुके हैं।
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