कोरोना के कहर के बीच यहां एक मासूम अंधविश्वास की बलि चढ़ गई। 2 माह की बच्ची की तबीयत बिगड़ी तो परिवार वालों ने बेहतर इलाज कराने का प्रयास नहीं किया, बल्कि अंधविश्वास के चलते गर्म सलाखों से पेट पर 3 जगह दागा। इसकी वजह से गंभीर जख्म बने और मंगलवार देर रात मासूम ने शहर के महात्मा गांधी अस्पताल के शिशु वार्ड में दम तोड़ दिया। बाल कल्याण समिति के सदस्य ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी है। बुधवार को पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने शव परिजनों को सौंप दिया है। पिछले एक माह में इस तरह का यह दूसरा मामला है।
बाल कल्याण समिति के सदस्य फारूख खान पठान ने बताया कि राजसमंद जिले के रेलमगरा क्षेत्र की सपना पुत्री भेरूलाल बगड़िया मात्र 2 माह की थी। उसे 17 अप्रैल काे एमजीएच में भर्ती करवाया गया था। बताया गया कि बच्ची के बीमार हाेने पर परिजनाें ने उसके पेट पर 3 जगह डाम लगवाया (गर्म सलाखों से दगवाना) था। इससे उसकी तबीयत और बिगड़ गई। पठान ने बताया कि लगभग 25 दिन पहले भी आमेट राजसमंद में इस तरह की घटना हुई थी। तब भी इसी तरह पीड़ित बच्चे की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। फारूख ने राजसमंद बाल कल्याण समिति अध्यक्ष कोमल पालीवाल और रेलमगरा थाना पुलिस को सूचना दी है।
एक दर्जन मामले हर साल आते हैं
भीलवाड़ा जिले में बीमारी दूर करने के नाम पर बच्चाें काे गर्म सलाखों से दागने की बात कोई नई नहीं है। हर साल करीब दर्जनभर मामले सामने आ ही जाते हैं। इस तरह के मामले में तांत्रिक की बातों में आकर परिजन अंधविश्वासी बन जाते हैं और मासूमों पर जुल्म करते हैं। कुछ मामलों में तो तांत्रिकों की गिरफ्तारी तक हुई है। करीब 2 साल पहले तो ऐसे मामलों में 7 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।
3-5 साल की सजा का प्रावधान
इस मामले का एक पहलू ये भी है कि डाम लगाने वाले मामलों में सीधा कोई कानून नहीं है। ऐसे मामलों में बाल संरक्षण समिति बाल प्रताड़ना का मामला पुलिस में दर्ज कराती है। फिर आगे की कार्रवाई होती है। बाल प्रताड़ना के मामलों में 3 से 5 साल की सजा का प्रावधान है।
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