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कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है। लोगों के मन में यह जिज्ञासा होना लाजिमी है कि आखिर इस संक्रमण की जांच होती कैसे है? इसकी प्रक्रिया क्या है, प्रक्रिया से जुड़े डॉक्टर-सहकर्मी और लैब टैक्नीशियन सहित स्टाफ संक्रमण से सुरक्षित रहें, इसके लिए क्या सावधानियां रखी जाती हैं? ऐसे ही सवालों की जानकारी दैनिक भास्कर ने अपने पाठकों के लिए जुटाई है। इस खबर को मेडिकल कॉलेज के माइक्रो बायलॉजी विभाग की एचओडी डॉ. वर्षा सिंह और जिला महामारी नियंत्रण अधिकारी डॉ. सुरेश चौधरी के सहयोग ने तैयार किया है। डॉ. चौधरी ने सैंपल लेने से लेकर मेडिकल कॉलेज तक सैंपल पहुंचाने के प्राेसेस बारे में और डॉ. वर्षा ने जांच का प्रोसेस और आखिरी रिजल्ट आने तक की पूरी प्रक्रिया बताई। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण की जांच 3 फेज में हाेती है और लैब में एक सैंपल की जांच करीब 5-6 घंटे में होती है। सैंपल टीम में डॉ. रोहित सचदेव, डॉ. चित्रा पुरोहित, डॉ. रजनी शर्मा, डॉ. मनीष पोखरा, डॉ. माया बराला, हर्षित कुमार टीम में शामिल है।
कोरोना वायरस जांच के तीन चरण जिनसे पता चलता है मरीज पॉजिटिव है या नहीं
पहला: आरएनए एक्सट्रेक्शन
सैंपल में कई वायरस होते हैं इसलिए सभी के आरएनए अलग किए जाते हैं। आरएनए वायरस की संरचना का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, उसे एक्सट्रैक्ट कर इसे निष्क्रिय (लाइसिस) किया जाता है ताकि अगले चरण में डिटेक्ट किया जा सके कि जो वायरस है वह कोरोना वायरस है या कोई दूसरा वायरस।
सैंपल लेने का प्राेसेस: छह डाॅक्टर्स की टीम तय करती है सैंपल लेना या नहीं गले के स्वाब का सैंपल लेकर -8 डिग्री तापमान वाले किट में रखते हैं
डॉ. चौधरी ने बताया कि सीएमएचओ ऑफिस के पास स्क्रीनिंग केंद्र पर जांच के लिए छह डॉक्टर्स की तीन टीमें हैं। यहां टोकन की व्यवस्था है। यहां जांच होने के बाद टीम तय करती है कि जांच होनी चाहिए या नहीं। भीलवाड़ा में दो प्रकार की जांच होती हैं। एक में गले और दूसरी में नाक का स्वाब लिया जाता है लेकिन अधिकांशतया गले का ही स्वाब लिया जाता है। यहां जांच के बाद जांच करवाने वाले को कलेक्शन सेंटर भेजा जाता है। यहां ऑनलाइन अावेदन हाेते हैं ताकि ओटीपी से मोबाइल नंबर कंफर्म हो जाए। इसके बाद वीटीएम (एक प्रकार का पात्र जिसमें स्वाब रखा जाता है। इसमें सोलिशन होता है जिससे सैंपल खराब नहीं होता है) में सैंपल लिया जाता है। स्वाब लेने के बाद वीटीएम को तीन तरह से पैक किया जाता है ताकि किसी के संपर्क में नहीं आ सके। इसे बर्फ लगे किट मे रखते हैं जो माइनस आठ डिग्री सेल्सियस तापमान का होता है। रिपोर्ट आने में 24 घंटे लगते हैं। 24 घंटे सैंपल लिए जा रहे हैं। यहां थोड़ी-थोड़ी देर में सेनेटाइजर किया जाता है। मेडिकल कॉलेज में तीन शिफ्ट में करीब 800 जांच राेज हाे रही हैं। सभी डॉक्टर्स व लैब टेक्नीशियन पीपीई किट पहनते हैं। ताकि संक्रमण से बच सकें।
तीसरा: पीसीआर सेक्शन
अलग किए आरएनए को लैब में तैयार रिएजंट ये एक वाॅयल में मिक्स कर मशीन में रखा जाता है। मशीन का तापमान 55 से 95 डिग्री के बीच होता है। आरएनए में बढ़ोतरी और परिणाम ग्राफ में आता है। ग्राफ में आरएनए मल्टीप्लाई हो, कोरोना के जैनेटिक कोड से मैच हो तो पॉजिटिव होता है।
दूसरा: प्री-पीसीआर सेक्शन
कोरोना वायरस को डिटेक्ट करने के लिए कई तरह के कैमिकल तैयार किए जाते हैं। ये कैमिकल तैयार होते ही इन कैमिकल और दूसरे चरण में अलग किए आरएनए को पीसीआर सेक्शन में लेते हैं। आरएनए को डिटेक्ट करने के लिए कोरोनो के जेनेटिक कोड तैयार किया है। उससे रिएजंट तैयार होता है।
स्वाब के बाद वीटीएम को तीन तरह से पैक होता है ताकि किसी के संपर्क में नहीं आ सके...इसे बर्फ लगे किट मे रखते हैं
डॉक्टर्स ने बताई पूरी प्रक्रिया
तरीका: आरएनए व रिएजंट को मिक्स कर 55 से 95 डिग्री के बीच रखते हैं, आरएनए मल्टीप्लाई हो, कोरोना के जैनेटिक कोड से मैच हो तो रिपाेर्ट पाॅजिटिव
डॉ. वर्षा सिंह ने लैब में हाेने वाली जांच के तरीके के बारे में बताया कि किसी भी संदिग्ध मरीज के नाक, गले के हिस्से से स्वाब लिया जाता हैं। इन्हें बायोसेफ्टी कैबिनेट के अंदर प्रोसेस किया जाता है। सैंपल की 3 मिलीलीटर मात्रा में से 200 माइक्रो लीटर हिस्सा अलग किया जाता है। इसके बाद इसमें कैमिकल शामिल कर वायरस को मारा जाता है। सैंपल में रिएजन्ट मिलाने से इसमें मौजूद सभी वायरस मर (लाइसिस) जाते हैं।
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