पानी की कमी और पानी के लिए जूझ रहे लोगों की कहानी राजस्थान में आम है। वहीं, भीलवाड़ा जिले का एक गांव ऐसा भी है। जहां रहने वाले लोगों ने सात पीढ़ियों से मीठा पानी अपने गांव में नहीं देखा है। गांव की बात करें तो यहां मेहमान आने से पहले भी 100 बार सोचते हैं। 600 लोगों की इस बस्ती को अगर मीठा पानी चाहिए तो गांव से 3 किलोमीटर दूर, महिलाएं सिर पर मटकी रखकर पानी लेकर आती हैं। इस गांव में जितने भी कुएं हैं वह सब खारे पानी के हैं और फ्लोराइड की मात्रा सबसे ज्यादा है।
भीलवाड़ा जिले की बदनोर तहसील के गायरिया खेड़ा पंचायत में आने वाली मोती मगरी गांव की कहानी इस क्षेत्र में लोगों की जुबान पर है। अगर इस गांव में मेहमान आएगा तो उसे मीठा पानी नसीब न होगा। अगर इन ग्रामीणों को अपने घर मेहमान बुलाना है तो पहले उनके लिए मीठे पानी की व्यवस्था करनी होगी। दरअसल, इस गांव की जमीन में फ्लोराइड की मात्रा सबसे ज्यादा है। इस गांव के 3 किलोमीटर के दायरे में करीब 70 पानी के कुएं है। 400 फीट गहराई की कई ट्यूबवेल भी इस गांव में उपलब्ध है। इन सब में इन ग्रामीणों को मीठा पानी नसीब नहीं हो रहा है। इस पूरे गांव के लिए मीठे पानी का स्त्रोत 3 किलोमीटर दूर एक कुआं है। जहां से पूरा गांव पीने का पानी भरता है।
हाई फ्लोराइड से हो रही बीमारियां
इस गांव में उपलब्ध हाई फ्लोराइड पानी से नहाने और पीने से ग्रामीण चर्म रोग का शिकार हो चुके हैं। इस गांव में रहने वाले हर पांचवें व्यक्ति को चर्म रोग हो चुका है। इसके बाद भी इन ग्रामीणों की मजबूरी है कि इस हाई फ्लोराइड पानी का उपयोग कर रहे हैं।
नहीं मिल रही सरकार की कोई भी सुविधा
ग्रामीणों का कहना है कि मोड़ी मगरी गांव को अभी तक सरकार की ओर से राजस्व गांव में नहीं लिया गया है। इस गांव के पास से ही चंबल परियोजना गुजर रही है। उसके मीठे पानी का फायदा इस गांव को नहीं मिल पा रहा है। मजबूरन इन ग्रामीणों को आज भी मीठे पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।
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