भारत भूषण ने नगर निगम से एकल हस्ताक्षर से पट्टा हासिल किया लेकिन अब पट्टे का रजिस्ट्रेशन नहीं हाे पा रहा है। मेयर सुशीला कंवर ने राज्यपाल की ओर जारी नियमों का हवाला देते हुए डीआईजी स्टांप काे लिखा है कि लीज से फ्री हाेल्ड के अलावा अगर किसी पट्टे में मेयर और आयुक्त के हस्ताक्षर ना हाें ताे उनका रजिस्ट्रेशन ना करें। मेयर के इस पत्र के बाद बने पांच एेसे पट्टे हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हाे पा रहा।
दरअसल विवाद 16 नवंबर काे कथित एम्पावर्ड कमेटी की बैठक से शुरू हुआ था। जिसमें एम्पावर्ड कमेटी ने निगम की सचिव काे एकल हस्ताक्षर से पट्टा जारी करने का अधिकार दे दिया। जबकि एम्पावर्ड कमेटी की अध्यक्ष मेयर हैं ताे मीटिंग उनकी अनुमति से हाेनी चाहिए। डीएलबी का एक दूसरा आदेश है, जिसमें अगर मेयर माैजूद नहीं हाेती ताे सर्वाेच्च अधिकारी कमेटी की अध्यक्षता कर सकेगा।
आयुक्त ने इस आदेश के तहत खुद की अध्यक्षता दिखाते हुए बैठक काे वैध करार दिया और एकल हस्ताक्षर से पट्टा जारी करने का अधिकार दे दिया। हालांकि मेयर ने अगले ही दिन आयुक्त का आदेश निरस्त कर दिया था और कहा था कि सिर्फ लीज हाेल्ड से फ्री हाेल्ड के पट्टे ही एकल हस्ताक्षर से दिए जा सकते हैं। इसके अलावा सारे पट्टाें पर मेयर-आयुक्त के हस्ताक्षर हाेंगे। फिर भी निगम ने पांच ऐसे पट्टे जारी कर दिए जाे एकल हस्ताक्षर से जारी हुए।
मेयर सुशीला कंवर और आयुक्त गाेपालराम विरदा से एक सवाल-विवाद दाेनाें के बीच है, जनता काे क्याें टूल क्याें बना रहे हैं?
मेयर : मैं नियमों के तहत ही बाेल रही हूं। काेई कानूनी ताैर पर भी अगर खुले में चर्चा करना चाहे दस्तावेज के साथ बहस काे तैयार हूं। मैं नहीं चाहती कि आज जिन्हें लुभावने सपने देकर पट्टे दिए जा रहे उनकी स्थिति बाद में यूआईटी के उन पट्टाें जैसी हाे जाए जाे आज भी नहीं निबटे। जनता की जमीन के पट्टे कानूनी तरीके से मिलना चाहिए ताकि वे आगे चलकर विवादाें में ना पड़े। कमिश्नर ने नियमों का मजाक बनाकर रख दिया। सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। हैरानी की बात ये कि ये मजाक उच्चस्तरीय अधिकारी और सरकार उड़ाने का माैका दे रही है।
पंजीयन विभाग काे गलत पत्र भेजा गया है। सरकार काे इसकी शिकायत की जाएगी। सरकार ने तमाम पत्र भेजे हैं। मैंने नियमाें के तहत ही किया है। पंजीयन विभाग ऐसे पट्टाें काे राेक नहीं सकता। उन्हें रजिस्ट्रेशन करना ही हाेगा। पट्टे एकल हस्ताक्षर से ही जारी हाेंगे। इसे काेई नहीं राेक सकता। आगे भी हाेंगे।
अधिकारी-मेयर विवाद में पिस रही जनता : जनता पुश्तैनी जमीन के पट्टाें के साथ हाे रही राजनीति में पिस रही है। कभी पट्टाें के झूठे आंकड़े ताे कभी निगम में मूल दस्तावेज समेत फाइलाें का गुम हाे जाना। कभी 501 रुपए का लालच देकर हजाराें रुपए पट्टे के एवज में निकालना अाैर अब पट्टा बनने के बाद भी उसका डीआईजी स्टांप में रजिस्ट्रेशन ना हाेने देना। ये सब कुछ मेयर और निगम आयुक्त के बीच तकरार की वजह से हाे रहा है। दाेनाें ही सरकार के नियमाें की अपने-अपने तरीके से व्याख्या कर रहे हैं। सरकार कांग्रेस की है। तीन-तीन मंत्री हैं। फिर भी पट्टा बनने बाद भी उसकी कीमत सिर्फ कागज के टुकड़े जितनी है। निगम आयुक्त और मेयर के बीच टकराव की वजह से ये अभियान सिर्फ मजाक बनकर रह गया। इसीलिए लाेगाें का विश्वास निगम से बने पट्टाें से ज्यादा गंगाशाही पट्टाें पर है। यही स्थिति रही ताे निगम में काेई पट्टे के लिए आवेदन नहीं करेगा।
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