बाड़ी शहर का ऐतिहासिक किला गेट जो चौदहवीं शताब्दी में अरबी और ईरानी शैली का मिश्रित नमूना है। आज बदहाल और दुर्दशा का शिकार हो रहा है। इस ऐतिहासिक गेट की चारदीवारी पर लोगों ने पहले ही कब्जा कर लिया है। वही रहा सहा गेट भी अब लगातार अतिक्रमण की भेंट चढ़ता चला जा रहा है। इस गेट के ठीक बगल में बनाए गए बाथरूम और टॉयलेट इसकी सुंदरता को बदसूरती में बदल रहे हैं।
जिसको लेकर ना तो स्थानीय प्रशासन का कोई ध्यान है ना ही शहर की साफ सफाई की जिम्मेदारी निभाने वाली नगर पालिका का। ऐसे में स्थानीय लोग आक्रोशित हैं और नगर पालिका एवं स्थानीय प्रशासन से गेट के बगल में बनाए गए टॉयलेट और बाथरूम को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग कह रहे हैं।
ऐतिहासिक किला गेट 14वीं शताब्दी मुगल काल की इमारत है। यह शहर का कभी मुख्य गेट हुआ करता था। जहां से इसके गेट बंद होने के बाद शहर पूरी तरह सुरक्षित हो जाता था लेकिन अब किले के दोनों गेट लगातार दुर्दशा के चलते खराब हो गए हैं और ऐतिहासिक इमारत जर्जर होती जा रही है।
प्राचीर पर लहराया जाता है तिरंगा
हालांकि हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को इस इमारत की प्राचीर पर देश का तिरंगा झंडा लहराया जाता है, लेकिन ध्वजारोहण करने वाले अधिकारी केवल वहीं तक सीमित होकर रह जाते है। इस इमारत को की सुंदरता को निहारने के लिए ना तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है ना ही स्थानीय प्रशासन।
ऐतिहासिक घंटाघर भी हो रहा अतिक्रमण का शिकार
वहीं दूसरी ओर शहर के बीच बाजार में ऐतिहासिक घंटाघर की इमारत स्थित है। इसके दोनों ओर कब्जा किया जा चुका है। अब केवल निकलने का रास्ता मुख्य घंटाघर ही बचा है। बाकी इमारत अतिक्रमण का भेंट चढ़ गई है। जिसको लेकर एक दो बार लोगों ने स्थानीय प्रशासन से शिकायत की है। जिस पर प्रशासन द्वारा कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। ऐसे में यह ऐतिहासिक इमारत भी लगातार अतिक्रमण का शिकार हो रही है और इसके नीचे भी लोग बाथरूम करते नजर आते हैं।
किला गेट और घंटाघर जैसी ऐतिहासिक इमारतों पर हो रहे अतिक्रमण और बदहाली को लेकर जब नगर पालिका के सिपाही निरीक्षक सीताराम शर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा की ऐतिहासिक किला गेट और घंटाघर की इमारत को लेकर कई बार कार्यवाही की है। शिकायत मिलने पर नोटिस भी दिए गए है।
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