तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित श्री हरिकृपा आश्रम पर हरि चैतन्यपुरी ने श्रद्धालुओं से कहा कि दुख,अशांति, क्लेश, उलझन शोक भय आदि से लाख प्रयास करके भी लोग बच नहीं पा रहे हैं। बहुत से लोगों को देखें तो उस हिरण की तरह है जो जाल में से निकलने की कोशिश करता है परंतु अपने सिंगो के ही कारण उस जाल में और भी फंसता चला जाता है। दुख-सुख, हानि-लाभ, जीवन-मृत्यु, अनुकूल-प्रतिकूल, यश-अपयश इत्यादि विभिन्न प्रकार की परिस्थितियां आती जाती रहती है। संसार परिस्थितियों प्राणी-पदार्थ इत्यादि सभी परिवर्तन शील है, परंतु विचारशील प्राणी कभी भी किसी भी हाल में धर्म व परमात्मा का साथ कभी नहीं छोड़ता। सुख के साधन होना व सुखी होना दोनों में बहुत अंतर है। सच्चा सुख धर्म व परमात्मा की शरण में ही प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि रोग, शोक, भय, चिंता, अशांति आदि के कारण खोज कर दूर करो तो उपाय निष्फल नहीं होंगे। ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास , रूढि़वादिता पर महाराज ने तीखा प्रहार किया। आज वास्तु शास्त्र के बढ़ते प्रचलन के बारे में कहा कि लोग आज वास्तु के अनुसार तोड़फोड़ कर मकान की दिशा बदलते हैं, लाभ तो स्वयं को बदलने से ही होगा। भाग्य-भाग्य का रोना रोने से कुछ नहीं होने वाला। अनेक अंगूठियां व नग पहनने व वार, दिशा के हिसाब से करने मात्र से कुछ नहीं होता। सही दिशा में प्रयास, हृदय से परमात्मा का स्मरण, यथासंभव सभी की शुभकामनाओं के प्रति लगन निष्ठा व उत्साह सफलता में सहायक होंगे। उन्होंने परिवार, नगर, राष्ट्र व समाज में आपस में मिलजुल कर प्रेम, एकता व सद्भाव को बनाए रखने व बढ़ावा देने पर बल दिया।
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