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ट्रेनाें में टिकट रिजर्वेशन कराने के बावजूद यात्री टेंशन में रहते हैं। सीटिंग में वेटिंग 100 के पार पहुंच गई है। यह देख यात्री कंफ्यूज अाैर परेशान रहते हैं कि सीट कंफर्म हाेगी या नहीं? तीन अंकाें में वेटिंग काे देख यात्री 150-1100 रुपए तक ज्यादा देकर स्लीपर व एसपी का टिकट कराने काे मजबूर हैं।
इसमें चाैंकाने वाली बात यह है कि लंबी वेटिंग के बावजूद यात्रियाें के पास 6-10 घंटे में सीट कंफर्म हाेने का मैसेज आ जाता है। फिर सफर में यात्रियाें काे पता चलता है कि ट्रेन में 25-50 फीसदी ताे सीट खाली ही पड़ी हैं। ताजा उदाहरण बुधवार का है। एक यात्री ने यात्रा से एक दिन पहले 16 फरवरी काे इलाहाबाद ट्रेन में अलवर से दाैसा का सीटिंग (2एस) में रिजर्वेशन कराया था, जिसमें 105 वेटिंग थी।
दूसरे दिन यानी 17 फरवरी सुबह 3:44 बजे यात्री के माेबाइल पर सीट कंफर्म का मैसेज आ गया। पीएनआर नंबर 264-5100988 से जारी टिकट की काेच डी-3 में 22 नबंर सीट कंफर्म हाे गई। इसी प्रकार इलाहाबाद ट्रेन में ही 16 फरवरी की यात्रा के लिए 15 फरवरी काे बुक कराए टिकट की वेटिंग 88 थी, जिसकी डी-2 में 13 नबंर सीट 10 घंटे में कंफर्म का मैसेज आ गया।
जयपुर-चंडीगढ़ दाैलतपुरा चाैक ट्रेन में भी वेटिंग 75 तक पहुंच गई है। एक यात्री ने दाैसा से अलवर तक 16 फरवरी की यात्रा के लिए उसी दिन दाेपहर 3:00 बजे सीटिंग का रिजर्वेशन कराया, जिसका 2 घंटे के भीतर (शाम 4:41 बजे) ही यात्री के माेबाइल पर काेच डी-2 में 25 नबंर सीट कंफर्म का मैसेज आ गया।
कई ट्रेनाें में ताे बुकिंग फुल बताकर टिकट देने से मना कर दिया जाता है, ऐसे में यात्रियाें काे पीछे से यानी जयपुर, फुलेरा या किशनगढ़ आदि से टिकट बुक कराना पड़ता है। अन्य ट्रेनाें जैसे अहमदाबाद-दिल्ली आश्रम, उदयपुर सिटी-हरिद्वार एक्सप्रेस, अजमेर-जम्मू तवी पूजा, जैसलमेर-काठगाेदाम रानीखेत आदि ट्रेनाें में भी वेटिंग 100 के पार रहती है, लेकिन अधिकांश ट्रेनाें में 24 घंटे में वेटिंग कंफर्म हाे जाती है।
एसी-स्लीपर काेच फुल, सीटिंग में हाई वेटिंग के बाद भी सीट खाली
सीटिंग के काेच ताे अधिकांश ट्रेनाें में आगे-पीछे 2-2 ही है, लेकिन एसी-स्लीपर काेच की संख्या बढ़ गई है। इलाहाबाद ट्रेन की ही बात करें ताे काेराेना से पहले यानी पिछले साल फरवरी में एसी के 5 काेच थे, जिनकी संख्या अब बढ़ाकर 9 कर दी है।
इसी प्रकार कई अन्य ट्रेनाें में भी एसी के साथ स्लीपर काेच भी बढ़ाए गए है, जाे फुल चल रहे हैं। दूसरी ओर सीटिंग काेच यानी 2S में हाई वेटिंग के बावदूर सीट खाली रहती है। यात्रियाें काे यह बात कंफ्यूज करती है। इससे यात्रियाें के मन में सवाल उठता है कि कहीं उनके साथ धाेखाधड़ी ताे नहीं की जा रही है। एसी/स्लीपर के महंगे टिकट बेचने के लिए सीटिंग में कृत्रिम तरीके से हाई वेटिंग दर्शाकर यात्रियाें काे लूटा जा रहा हाे। यात्रियाें का सवाल जायज है, क्याेंकि जाे दिखाई देख रहा है उससे लगता है कहीं कुछ ताे गड़बड़ है।
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