सड़क हादसाें काे नियंत्रण के लिए सीएम की घोषणा के बाद प्रदेश में तमिलनाडु माॅडल अपनाने की तैयारी हाे रही है। तमिलनाडु में परिवहन कार्यों का विकेंद्रीकरण हाे रखा है, जबकि प्रदेश में यह व्यवस्था नहीं है। अगर प्रदेश में भी परिवहन कार्यालयों का विकेंद्रीकरण कर दिया जाए ताे लाेगाें काे काम कराने में ताे आसानी हाेगी, बल्कि सड़क हादसाें में भी कमी आएगी। इसके अतिरिक्त विभाग में लगे आला अफसरों का सदुपयोग हाे सकेगा।
टाेंक के लोगों को लाइसेंस के लिए अजमेर जाना पड़ता है
परिवहन विभाग में कुछ काम ऐसे है जाे आरटी ओ कार्यालयों में हाे सकते हैं। इसमें ड्राइविंग स्कूल का लाइसेंस, ट्रकाें - बसों का नेशनल परमिट, फिटनेस सेंटर का लाइसेंस, अंतरराष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस, ट्रांसपोर्ट कंपनी का लाइसेंस, ट्रैवल एजेंट का लाइसेंस, बस शैल्टर की स्वीकृति देने का काम शामिल हैं। इन कामाें के लिए जिले में आरटी ओ या एआरटी ओ का हाेना अवाश्यक हैं, लेकिन प्रदेश के 33 जिलाें में से मात्र 12 जिलाें में यह सुविधा उपलब्ध है। 21 जिलाें के लाेगाें काे 12 आरटी ओ ऑफिस में जाना पड़ता है, जो 150 किमी तक दूर हैं। जैसे- बंूदी के लाेगाें काे काेटा, टाेंक से अजमेर, कराैली-सवाईमाधाेपुर के लाेगाें काे दाैसा और बाड़मेर के लाेगाें काे जोधपुर आरटी ओ ऑफिस आना पड़ता है।
यहां तमिलनाडु जैसा विकेंद्रीकरण नहीं
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